एनएमसीजी ने ‘प्राकृतिक खेती’ विषय पर वेबिनार श्रृंखला ‘इग्‍नाइटिंग यंग माइंड्स, रीज्‍यूवेनेटिंग रिवर्स’ का 10वां संस्करण आयोजित किया

नदी संरक्षण प्रोत्‍साहन कार्यक्रमों के साथ युवाओं और छात्रों को जोड़ने के उद्देश्य से, भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय में स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन ने एपीएसी न्‍यूज नेटवर्क के सहयोग से 8 सितंबर 2022 को ‘इग्‍नाइटिंग यंग माइंड्स, रीज्‍यूवेनेटिंग रिवर्स’ पर वेबिनार के 10 वें संस्करण का आयोजन किया। वेबिनार का विषय प्राकृतिक खेती था। इस विशेष सत्र में अर्थ गंगा परियोजना के तहत गंगा बेसिन राज्यों में प्राकृतिक खेती के बारे में युवाओं को प्रभावी ढंग से शिक्षित करने की आवश्यकता पर चर्चा की गई।

वेबिनार के पैनलिस्टों में कृषि विशेषज्ञ और देहात के उपाध्यक्ष डॉ. दिनेश चौहान, जीएनएस विश्वविद्यालय, बिहार के कुलपति डॉ.एम.के.सिंह, आईएमएस यूनिसन विश्वविद्यालय देहरादून के प्रो कुलपति  डॉ. रविकेश श्रीवास्तव और एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम के प्रो वाइस चांसलर डॉ. विकास धवन के साथ उत्तरांचल विश्वविद्यालय के छात्र- अभिषेक सिंह और बंदना रावत शामिल थे। सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक  श्री जी. अशोक कुमार ने की। वेबिनार का समापन छात्रों के साथ बातचीत के एक सत्र के साथ हुआ।

 

मुख्य भाषण देते हुए एनएमसीजी महानिदेशक श्री जी. अशोक कुमार ने नमामि गंगे कार्यक्रम का संक्षिप्‍त विवरण दिया और गंगा को निर्मल और अविरल नदी बनाने के लिए उठाए जा रहे विभिन्न कदमों की जानकारी दी। श्री कुमार ने खेतों से रसायनों के रिसकर नदी बेसिन में जाने पर चिंता व्‍यक्‍त की और बेहतर जैव विविधता और पानी की गुणवत्ता के लिए गंगा नदी के तट पर रसायन मुक्त खेती की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती अर्थ गंगा के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है और यह गंगा कायाकल्प से जुड़े अनेक मुद्दों का समाधान कर सकती है।

राष्ट्रीय गंगा परिषद की 2019 में कानपुर में हुई पहली बैठक में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की परिकल्‍पना को याद करते हुए, उन्होंने अर्थ गंगा मॉडल का एक स्‍तम्‍भ होने के नाते प्राकृतिक खेती के साथ दीर्घकालिक कृषि की दिशा में एनएमसीजी के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करने और अशुद्ध पानी के उपचार के लिए डायवर्जन सिस्टम लगाने के नमामि गंगे के प्रयासों पर चर्चा की। उन्‍होंने बताया, “निर्मल जल केन्द्रों (एसटीपी) के साथ, गुणवत्ता वाले पानी को नदियों में वापस डाला जा रहा है।” प्राकृतिक खेती के बारे में उन्होंने कहा कि खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायनिक उर्वरक वर्षा के पानी के साथ नदी में बह जाते हैं और जलस्रोतों को प्रदूषित करते हैं। यह किसी एक जगह से नहीं निकलने वाला प्रदूषण का प्रमुख स्रोत बन जाता है। उन्होंने जैव विविधता पर रसायनों के खतरनाक प्रभावों और किस प्रकार प्राकृतिक खेती गंगा और हमारे पर्यावरण को स्वच्छ रख सकती है, इस बारे में बात की।

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उन्होंने ‘मोर नेट इनकम पर ड्रॉप’ अभियान का आह्वान किया, जो ‘मोर क्रॉप पर ड्रॉप’ के नारे से एक कदम आगे है। यह प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसानों के खर्च को कम करके मौद्रिक अर्थव्यवस्था में फसलों की बिक्री से शुद्ध आय पर जोर देता है। यह रसायनों के उपयोग में कमी और फसल उत्पादन के प्राकृतिक साधनों का उपयोग करने की तर्ज पर है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के साथ हम अर्थव्यवस्था में 50-70 प्रतिशत पानी बचा सकते हैं, जिसमें से कम से कम 85-90 प्रतिशत पानी कृषि क्षेत्र में उपयोग किया जाता है। यह पानी के कुशलता से उपयोग और पीने के पानी के उपयोग जैसे अन्य उद्देश्यों के लिये पानी की बचत को सुनिश्चित करेगा।

उन्होंने उल्लेख किया कि किसानों को प्राकृतिक खेती के लाभों के बारे में शिक्षित करने और उनकी खेती के तरीकों में व्यवहारिक बदलाव लाने के लिए नमामि गंगे ने किसानों और विशेषज्ञों के साथ कई दौर की बातचीत की है। उन्होंने इस प्रक्रिया के माध्यम से किसानों के लिए शुरूआत में सावधानीपूर्वक सहायता का प्रावधान करने के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने इन किसानों से आने वाली उपज को ब्रांड देने में मदद करने के लिए कटाई के बाद विपणन रणनीतियों की वकालत की। उन्होंने कहा, “इससे प्राकृतिक खेती के माध्यम से फसल उगाने वाले किसानों की आय में वृद्धि करने में मदद मिलेगी। इसलिए, नमामि गंगे की प्राकृतिक खेती परियोजना के माध्यम से लोगों को नदियों से जोड़ने की माननीय प्रधानमंत्री की परिकल्‍पना को हकीकत में बदला जा सकता है”।

 

 

जागरूकता और भागीदारी के महत्व के बारे में अपनी अंतर्दृष्टि साझा करते हुए, श्री रविकेश श्रीवास्तव ने स्कूली शिक्षा के माध्यम से स्वच्छ पानी के महत्‍व के बारे में मानसिकता में सुधार की बात की। उन्होंने गंगा बेसिन के पास प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रहने वाले समुदायों  की सक्रिय भागीदारी की चर्चा की। उन्होंने दिया गंगा परियोजनाओं के जमीनी प्रभाव को देखने के लिए मौद्रिक मूल्यांकन प्रयोग पर बल दिया। उन्होंने प्राकृतिक खेती के माध्यम से उत्पादित फसलों को प्रीमियम उत्पाद का दर्जा देने के महत्व पर भी गौर किया। उन्होंने भारत के कृषि विश्वविद्यालयों में प्राकृतिक खेती पर अधिक केंद्रित शोध जारी रखने के सुझाव के साथ अपना संबोधन समाप्त किया।

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डॉ. एमके सिंह ने प्राकृतिक और रसायन आधारित खेती की कार्य प्रणाली को मिलाने के बारे में बात की। उन्होंने शून्य बजट खेती और विभिन्न अध्ययनों पर भी चर्चा की, जिसमें कम लागत की खेती और प्राकृतिक खेती की कार्य प्रणालियों के कारण किसान की आय में वृद्धि हुई। प्राकृतिक खेती के साथ, मिट्टी के जैविक और कुदरती स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है।

प्राकृतिक और जैविक खेती के बीच अंतर के बारे में, श्री दिनेश चौहान ने उल्लेख किया कि भारत को उन कृषि कार्य प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो पर्यावरण और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर कम से कम प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। उन्होंने ‘बीज से बाजार तक’ के नारे को याद किया और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को चुनने के महत्‍व पर प्रकाश डाला। जैविक खेती से फसलों को बेचने के लिए आवश्यक प्रमाणपत्र हासिल करने के मुद्दों के साथ, छोटे किसान उचित प्रमाणन के बिना अपनी उपज के लिए उचित धनराशि प्राप्त करने में असमर्थ होने का जोखिम उठाते हैं। उन्होंने बारकोड की मदद से की जा रही प्राकृतिक खेती के माध्यम से खेतों में उत्पादित फसलों का पता लगाने के कार्य पर भी प्रकाश डाला। यह नोट किया गया कि फसलों के सत्यापन के साथ, फसलों की लाभप्रदता बढ़ेगी और स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा मिलेगा।

डॉ. विकास धवन ने आधुनिक युग में प्राकृतिक भोजन के माध्यम से स्वस्थ जीवन जीने के तरीके पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है, जिससे पर्यावरण और उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित हो सके।

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