केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सतत् स्टार्टअप्स निर्माण के लिए उन्हें शुरुआत से ही उद्योगों के साथ बराबरी के साझेदार के तौर पर जोड़ने की बात कही

केंद्रीय विज्ञान एवम् प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय राज्यमंत्री और कार्मिक, लोक शिकायत एवम् पेंशन राज्यमंत्री, परमाणु ऊर्जा एवम् अंतरिक्ष मामलों के राज्यमंत्री- डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि अब अब शुरुआत से ही स्टार्टअप्स को उद्योगों के साथ बराबर के साझेदार के तौर पर जोड़ने की जरूरत है, ताकि सतत् स्टार्टअप्स का निर्माण किया जा सके।

अहमदाबाद की साइंस सिटी में 2 दिनों की “केंद्र-राज्य विज्ञान संगोष्ठी” में पहले दिन, अलग-अलग राज्यों से आए मंत्रियों के सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि उनका मंत्रालय सक्रियता के साथ पूरे देश में स्टार्टअप्स तक पहुंच रहा है और उन्हें विकास करने व गुणवत्ता युक्त शोध करने के लिए 50 फीसदी निवेश उपलब्ध करवा रहा है। बाकी 50 फीसदी निवेश स्टार्टअप को खुद करना होता है।

इससे पहले अहमदाबाद में साइंस सिटी में दो दिन की इस संगोष्ठी का प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन किया था। 2015 में लाल किले से स्टार्टअप इंडिया की शुरुआत का जिक्र करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आज अपनी आजादी के 75वें साल में भारत में 75000 से ज्यादा स्टार्टअप काम कर रहे हैं, जबकि कुछ साल पहले यहां सिर्फ 300 स्टार्टअप ही थे। उन्होंने कहा कि स्टार्टअप इकोसिस्टम में भारत वैश्विक तौर पर तीसरे पायदान पर है। यूनिकॉर्न कंपनियों की संख्या के मामले में भी भारत तीसरे पायदान पर है।

डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि इस संगोष्ठी में 100 से ज्यादा स्टार्टअप्स और इंडस्ट्री के सीईओ के साथ एक विशेष सत्र में हर राज्य के हिसाब से विशेष समाधानों को खोजने की कोशिश की जाएगी। श्री जितेंद्र सिंह ने सभी 6 विज्ञान विभागों से राज्य सरकारों के साथ काम करने के इच्छुक संभावित स्टार्टअप्स को पूरी मदद करने का वायदा किया, जिसमें सभी भागीदारों से निवेश लिया जाएगा।

गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, हरियाणा के विज्ञान एवम् प्रौद्योगिकी मंत्री व मुख्य सचिव और दूसरे राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के विज्ञान एवम् प्रौद्योगिकी सचिवों ने अपने-अपने राज्यों की विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवम् नवाचार (एसटीआई) नीति और वैज्ञानिक प्रयासों के साथ-साथ स्टार्टअप पर एक संक्षिप्त प्रस्तुति भी दी।

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डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि शोध, स्टार्टअप्स, अकादमिक जगत और उद्योग जगत का समन्वय आज महज एक विकल्प नहीं, बल्कि जरूरत है, ताकि देश में युवा नवोन्मेषियों को उन्नत तकनीक युक्त और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी उत्पाद और समाधानों के निर्माण के लिए आकर्षित किया जा सके। उन्होंने कहा, “2030 तक शोध और विकास में निजी क्षेत्र का निवेश दोगुना करना” और देश व राज्यों की समग्र अर्थव्यवस्था में वृद्धि करना इस संगोष्ठी का एक अहम एजेंडा है, जो मोदी सरकार के आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के साथ भी मेल खाता है।

राज्य के मंत्रियों द्वारा विज्ञान एवम् प्रौद्योगिकी में केंद्र और राज्यों के बीच सक्रिय सहयोग, और इससे संबंधित जानकारी व डेटा का दोनों के बीच सतत प्रवाह को सुनिश्चित करने वाले तंत्र की मांग को मानते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि दो दिन के मंथन के बाद केंद्र और राज्यों के अलग-अलग समूहों के बीच छोटी-छोटी संयुक्त समितियों का निर्माण किया जाएगा, ताकि एसटीआई नीति को अपनी तार्किक परिणिति की तरफ ले जाया जा सके। माननीय मंत्री ने कहा कि राज्यों के तकनीकविदों और पेशेवरों के साथ-साथ वैज्ञानिकों की क्षमता विकास पर मुख्य ध्यान रहेगा। साथ ही केंद्र और राज्य, राज्यों में शोध एवम् विकास के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए कोशिशें करेंगे। साथ ही उच्चतम स्तर पर एसटीआई में एक तेजतर्रार और दीर्घकालीन केंद्र-राज्य सहयोग एवम् निगरानी तंत्र के निर्माण की दिशा में काम करेंगे।

प्रधानमंत्री के भाषण से उच्च शिक्षा संस्थानों में ज्यादा नवोन्मेषी प्रयोगशालाएं खोलने की बात का संकेत लेते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने वायदा किया कि केंद्र में विज्ञान एवम् तकनीकी विभाग राज्यों में बेहतरीन नवोन्मेषी केंद्रों की स्थापना करने के लिए पूरा सहयोग करेगा, जिसमें मौद्रिक सहयोग भी शामिल होगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि देश में नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री के अथक प्रयासों के साथ समानांतर रहते हुए, अपने आपमें पहली तरह की यह संगोष्ठी केंद्र-राज्य सहयोग को मजबूत करेगी, जो सहयोगात्मक संघवाद के भी अनुरूप होगा, ताकि एक तेजतर्रार विज्ञान, तकनीकी एवम् नवचार (एसटीआई) इकोसिस्टम का निर्माण देश में किया जा सके।

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नेतृत्व सत्र के विषय “अनुसंधान से समाधान” की बात करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि इस दो दिन के सम्मेलन में कृषि, डिसेलेनाइजेशन जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर पीने के पानी का निर्माण, डीएसटी द्वारा विकसित हेलीबॉर्न पद्धति, सभी के लिए स्वच्छ ऊर्जा, जिसमें हाइड्रोजन मिशन में विज्ञान एवम् तकनीकी की भूमिका, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के गहरे सागर के मिशन और तटीय राज्यों के लिए इसकी प्रासंगिकता, सभी के लिए डिजिटल स्वास्थ्यसेवा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के साथ विज्ञान के सम्मेल जैसे विषयों पर राज्यों के विज्ञान एवम् प्रौद्योगिकी मंत्रियों के साथ अहम सत्र रखे जाएंगे।

इससे पहले संगोष्ठी में स्वागत भाषण देते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोलने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण और अहम कदम की प्रशंसा और कहा कि अब हम आगे गगनयान मिशन की तरफ देख रहे हैं। इसी तरह, परमाणु ऊर्जा विभाग में साझा उपक्रमों के चलते नए संस्थान का निर्माण हो रहा है और नए शोध कार्यक्रम शुरू हो रहे हैं। माननीय मंत्री ने कहा कि “डीप सी मिशन” में आगे एक अंतर्निहित खनन तंत्र भी होगा, जिससे पोलिमेटालिक नोड्यूल्स का उत्खनन किया जा सके। यह उत्खनन केंद्रीय हिंद महासागर में 6000 मीटर की गहराई पर किया जाएगा।

डॉ जितेंद्र सिंह ने अंत में कहा कि दो दिन की यह विज्ञान संगोष्ठी भारतीय युवाओं की आंतरिक क्षमताओं और नवाचार की भावना पर केंद्रित होगी, ताकि भारत को इस अमृत काल में शोध और नवाचार का एक वैश्विक केंद्र बनाया जा सके, जिससे प्रधानमंत्री मोदी का वह सपना पूरा हो सके, जिसके तहत वे भारत को उसकी आजादी के सौवें साल में अग्रिम पंक्ति का एक देश बनाने की संकल्पना रखते हैं।

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