राहुल गांधी से मुलाकात के बाद अशोक गहलोत ने कहा कि अब मैं ही कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनूंगा।

राहुल गांधी से मुलाकात के बाद अशोक गहलोत ने कहा कि अब मैं ही कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनूंगा।
40 साल के राजनीतिक जीवन में यह पहला अवसर है, जब अशोक गहलोत को गांधी परिवार के प्रति सही मायने में वफादारी दिखानी है।
पहली बार नर्वस नजर आए गहलोत।
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23 सितंबर को सुबह अशोक गहलोत ने केरल के कोच्चि में राहुल गांधी से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद गहलोत ने कहा कि अब मैं ही कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनूंगा। इसके लिए संभवत: 27 सितंबर नामांकन दाखिल करुंगा। यानी अब अध्यक्ष का चुनाव लडऩे में गहलोत के नाम पर कोई सस्पेंस नहीं रहा है। गहलोत की उम्र 71 के पार है और उनका राजनीतिक जीवन 40 वर्ष से अधिक है। गहलोत को राजनीति में जो सफलता मिली, वह शायद ही किसी कांग्रेस के नेता को नहीं मिली। पांच बार सांसद रह कर कई बार केंद्रीय मंत्री रहे। चार बार विधायक बन कर तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।
जब केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री नहीं होते, तब गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री बनते रहे हैं। गांधी परिवार की मेहरबानी के कारण गहलोत ने राजनीति में कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार ने परसराम मदेरणा, सीपी जोशी और सचिन पायलट जैसे कद्दावर नेताओं का हक मार कर गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया। चूंकि गहलोत गांधी परिवार से कुछ न कुछ प्राप्त करते रहे, इसलिए वफादारी दिखाने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन चालीस वर्ष के राजनीतिक जीवन में यह पहला अवसर है, जब गहलोत को सही मायने में गांधी परिवार के प्रति वफादारी दिखानी होगी। यह वफादारी भी तब दिखानी है, जब गहलोत से मुख्यमंत्री का पद वापस लिया जा रहा है।
गहलोत के कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने में कोई संशय नहीं है। लेकिन गहलोत के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को बनाए रखना है। अब तक गहलोत ने स्वयं की सरकार को बचाया, लेकिन अब कांग्रेस सरकार को बचाने की चुनौती है। गहलोत बार-बार कहते हैं कि मैं कांग्रेस का निष्ठावान कार्यकर्ता हंू। मेरे लिए पद कोई मायने नहीं रखता है। गहलोत को अब अपने इस बयान पर खरा उतरना है। सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री का पद छोड़ कर कांग्रेस का अध्यक्ष बनने में गहलोत की भी कोई रुचि नहीं थी। यानी यह पहला मौका है, जब गहलोत की अरुचि के बाद भी उन्हें मुख्यमंत्री के पद से राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर स्थानांतरित किया जा रहा है। चूंकि मुख्यमंत्री का पद जरबन लिया जा रहा है, इसलिए 23 सितंबर को राहुल गांधी से मुलाकात के बाद अशोक गहलोत बेहद नर्वस नजर आए। गहलोत ने जयपुर रवाना होने से पूर्व जब कोच्चि के मीडिया से संवाद किया तो गहलोत के चेहरे पर साफ लग रहा था कि इस बार वे गांधी परिवार के फैसले से खुश नहीं है।
जानकारों की मानें तो सोनिया गांधी इस पर सहमत हो गई थी कि अशोक गहलोत अध्यक्ष पद के साथ साथ मुख्यमंत्री पद पर भी बने रहेंगे। लेकिन राहुल गांधी ने मुलाकात में गहलोत से दो टूक शब्दों में कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ेगा। सूत्रों के अनुसार गांधी परिवार की प्रमुख सदस्य और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी भी गहलोत को सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ही देखना चाहती है। जब देखना होगा कि अशोक गहलोत राजस्थान में कांग्रेस की सरकार किस तरह बचाते हैं। राजस्थान में कुल 200 विधायक है।
बसपा के विधायकों के समर्थन से कांग्रेस के पास 107 विधायकों का बहुमत है। इसे गहलोत का राजनीतिक कौशल ही कहा जाएगा कि प्रदेश के सभी 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी ले रखा है। लेकिन बसपा वाले 6 विधायक और 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन अशोक गहलोत कांग्रेस सरकार को दिलाते रहेंगे। इसकी अब कोई गारंटी नहीं है, जो लोग अशोक गहलोत की राजनीति को समझते हैं उन्हें पता है कि अशोक गहलोत सरकार और कांग्रेस की सरकार में बहुत अंतर है।