सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के लिए शहरों और भवनों को डिकार्बोनाइज करना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए और प्रणालीगत दक्षता लाने के लिए एकीकृत तथा डिजिटलीकृत दृष्टिकोण का उपयोग करके किया जाना चाहिए : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एवं विद्युत, नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के उच्च स्तरीय संयुक्त मंत्रिस्तरीय शिष्टमंडल का नेतृत्व कर रहे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने आज कहा कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के लिए शहरों और भवनों को डिकार्बोनाइज करने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए और व्यवस्थित दक्षता लाने के लिए इसे बड़े पैमाने पर, गति और एकीकृत तथा डिजिटलीकृत दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए किए जाने की आवश्यकता है।

अमरीका के पीट्सबर्ग में ग्लोबल क्लिन एनर्जी एक्सनफोरम-2022 में “नेट जीरो बिल्ट एनवायरनमेंट विथ कनेक्टेड कम्युनिटीज” विषय पर गोलमेज सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हम अपने शहरों और इमारतों को बदले बिना जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान नहीं कर सकते हैं और इसके लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र को व्यापक स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है और यह आज की  प्रौद्योगिकियों के साथ ही सम्भव है।

डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि कूलिंग को तेजी से विकास की आवश्यकता के रूप में माना जा रहा है जो अनेक सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने से जुड़ा है। उन्होंने कहा वैश्विक स्तर पर नेट जीरो कनेक्टेड कम्युनिटीज के लक्ष्य को हासिल करने में प्रदर्शन और तैनाती, निवेश, टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं।

डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बताया कि मजबूत अनुसंधान विकास तथा नवाचार इको-सिस्टम के विकास में अन्य बातों के साथ-साथ क्षेत्र में वैज्ञानिक मानव शक्ति का और अधिक विकास, अपेक्षित शैक्षिक और अनुसंधान तथा विकास की संस्थागत क्षमताओं, कुलिंग के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान और विकास गतिविधियों के लिए मदद शामिल हैं जिसमें रेफरिजरेंट, कूलिंग उपकरण, ठोस भवन डिजाइन कार्यक्रम, वैकल्पिक टेक्नोलॉजी तथा नई उभरती टेक्नोलॉजी अपनाने के लिए उद्योग की तैयारी शामिल हैं।

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भारत ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने का आह्वान किया। इन कदमों में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ाने के संबंध में एक वैश्विक समझौता ज्ञापन (एमओयू) और मांग प्रेरित समाधानों से संबंधित ज्ञान और प्रौद्योगिकी साझाकरण अनुरूप वित्त योजना जो व्यावहारिक वित्त पोषण स्वरूपों को देखेगी और वैश्विक निविदा/खरीद प्रक्रिया की संभावित डिजाइन के लिए सदस्य देशों की मांग एकत्रित करेगी, शामिल हैं।

डॉ. जितेन्द्र सिंह ने प्रतिनिधियों और मंत्रियों को बताया कि उनके मंत्रालय ने विशेष रूप से प्रदर्शन और तैनाती के लिए उद्योग जगत की कई कंपनियों को सक्रिय रूप से शामिल किया है और आज हमारे पास भवन ऊर्जा दक्षता तथा स्मार्टग्रिड कार्यक्रमों में 78 से अधिक उद्योग भाग ले रहे हैं।

डॉ. जितेन्द्र सिंह ने स्वीकार किया कि शहरों को डिकार्बोनाइज करना बहुपक्षीय चुनौती है और इसमें समग्र दृष्टि और प्रणालीबद्ध दक्षता की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भवनों के साथ-साथ निजी तथा सार्वजनिक परिवहन का विद्युतीकरण न केवल शून्य उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है बल्कि शहरी वायु गुणवत्ता सुधार में भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अनुसंधान परिणामों को लागू करने के काम को सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों को निकटता से काम करने की आवश्यकता है।

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डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि तीन प्रमुख कार्यों में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र नेट जीरो कनेक्टेड कम्युनिटिज योजना और प्रदर्शन के लिए एक साथ आ सकते हैं। ये हैं प्रभावी पूंजी का पुनः आवंटन तथा नए वित्त पोषण संरचनाओं को प्रेरित करना, इसमें जलवायु वित्त को बढ़ाना, अनुसंधान एवं विकास के साथ टेक्नोलॉजी लागत को कम करना, औद्योगिकी इको-सिस्टम का पोषण करना, लागत कम करने के लिए मूल्य श्रृंखलाओं में आर्थिक विविधिकरण कार्यक्रमों, पुनःकौशल और पुनर्नियोजन कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक आर्थिक प्रभावों के समाधान के लिए क्षतिपूर्ति तंत्र स्थापित करना शामिल है।

भारत द्वारा उठाए गए कदमों की चर्चा करते हुए डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पिछले दशक में 34.3 मिलियन डॉलर के निवेश से अनुसंधान विकास और प्रौद्योगिकियों की तैनाती को समर्थन दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमने अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना ढांचे को मजबूत बनाया है तथा ऊर्जा दक्षता और स्मार्टग्रिड के निर्माण में अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों के माध्यम से द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय सहयोग किया है।

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