नेपोटिज़्म आपको पहली फिल्म भले ही दिला दे, लेकिन अंत में आपका काम ही है जो आपके लिए बोलता है: निर्देशक लव रंजन

#इफ्फीवुड, 23 नवंबर 2022

इफ्फी-53 में ‘मनोरंजन उद्योग के बदलते दौर और इस उद्योग में कैसे प्रवेश करें’ विषय पर ‘इन-कन्वर्सेशन’ सत्र

गोवा में हो रहे 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में ‘मनोरंजन उद्योग के बदलते दौर और इस उद्योग में कैसे प्रवेश करें’ विषय पर एक ‘इन-कन्वर्सेशन’ सत्र में निर्देशक लव रंजन ने कहा, “मुझे लगता है कि नेपोटिज़्म रिश्तों की विरासत है। लेकिन हमारी इंडस्ट्री में ये एक कड़वा विषय बन जाता है। यहां तक ​​कि अगर आपके माता-पिता भी फिल्म उद्योग से हैं, तो भी इससे आपको सिर्फ आपकी पहली फिल्म या शायद दूसरी फिल्म ही मिलती है। लेकिन उसके बाद आपका काम ही बोलता है। बहुत सारे नवागंतुकों में “विक्टिम सिंड्रोम” होता है। हम इस धारणा में फंस जाते हैं कि मैं अच्छा हूं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि दूसरे बुरे हैं। लोगों को ये एहसास नहीं है कि फिल्ममेकिंग को कारोबार से अलग नहीं किया जा सकता है।”

इफ्फी-53 में ‘इन-कन्वर्सेशन’ सत्र में निर्देशक लव रंजन

निर्देशक कबीर खान ने उन दिनों की एक घटना को याद किया जब वे एक डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार हुआ करते थे। वो घटना बाद में उनकी पहली फिल्म ‘काबुल एक्सप्रेस’ का शुरुआती शॉट बन गया। उन्होंने कहा, “बॉलीवुड ने मेरी जान बचाई और तभी मैंने फैसला किया कि फिल्मों से ज्यादा शक्तिशाली कोई माध्यम नहीं है। और मुझे अपनी कहानियां सुनाने के लिए यहीं होने की जरूरत है। मैं युवाओं से अक्सर कहता हूं कि आपकी आवाज में विशिष्टता होनी चाहिए। मैं अपने छात्रों से कहता हूं कि जब मैं कोई फिल्म देखूं तो वो मुझे ये कहने पर मजबूर कर दे कि ये फिल्म तो सिर्फ उसी फिल्मकार द्वारा बनाई जा सकती है।”

नेपोटिज़्म और फिल्म उद्योग में आने वाले नए लोगों के सवाल के जवाब में कबीर ने खान ने कहा, “सही लोगों तक पहुंचने में समय लगता है। मैं सिर्फ एक स्क्रिप्ट लेकर मुंबई आया था। आपको मेहनत करनी होगी लेकिन आपको वास्तविकता को भी समझना होगा। अक्सर मैं ऐसे लोगों से मिलता हूं जो 4-5 साल तक एक ही आइडिया पर टिके रहते हैं। शायद स्क्रिप्ट में कोई समस्या होगी या; शायद उसका वक्त अभी नहीं आया है।”

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इफ्फी-53 में ‘इन-कन्वर्सेशन’ सत्र में निर्देशक कबीर खान

फिल्म निर्माता महावीर जैन बहुत सारे फिल्मकारों को एक साथ लाए हैं, उनका संकल्प नई प्रतिभाओं को तराशना और उन्हें मौका देना है। उन्होंने विस्तार से बताया कि ये विचार उन्हें विभिन्न फिल्मकारों से मिलने के बाद आया, जिन्होंने न्यूकमर्स के लिए कुछ करने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने ये भी बताया, “हम जल्द ही एक ऐप लॉन्च करेंगे जिसके माध्यम से नवागंतुक फिल्मकारों तक पहुंच सकेंगे।”

एक गायिका और एक अदाकारा के रूप में अपनी यात्रा के बारे में पूछे जाने पर अनन्या बिड़ला ने जवाब दिया, “मैं एक कारोबारी, रूढ़िवादी परिवार से आती हूं इसलिए मेरे खातिर अभिनेता बनना एक बड़ा कलंक था। शुरू में मुझे बहुत नफरत मिली क्योंकि लोगों को लगा कि मेरे पिता ने मेरे सिंगिंग करियर के लिए पैसा खिलाया है। लेकिन मुझे खुद को साबित करने में और जहां आज मैं हूं वहां तक पहुंचने में चार साल लग गए। उन्होंने कहा कि जब वे लॉस एंजिलिस में थी तो उन्होंने बाहरियों के नजरिए से अपनी संस्कृति को देखा और फिर अपनी आवाज को वैश्विक दर्शकों तक ले जाने के लिए अपनी जड़ों का इस्तेमाल करने का फैसला किया।”

इफ्फी-53 में ‘इन-कन्वर्सेशन’ सत्र में अनन्या बिड़ला

निर्देशक आनंद एल. राय से जब ये पूछा गया कि न्यूकमर्स के साथ जोखिम उठाना कितना मुश्किल है तो उन्होंने जवाब दिया, “यहां पर जितने भी बड़े फिल्मकार मौजूद हैं, ये सभी कभी न्यूकमर हुआ करते थे। मुझे लगता है कि हमारा फिल्म उद्योग हमेशा नए लोगों के लिए खुला रहा है। मुझे नहीं लगता कि मल्टीप्लेक्स के आने से मेकर्स और न्यूकमर्स के बीच रिश्ते बदले हैं।”

नवागंतुकों के पास यूएसपी है या नहीं, इसका वे कैसे पता लगा सकते हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए निर्देशक आनंद एल राय ने कहा, “ये जानने के लिए कि आपको मैदान में उतरना होगा और खुद को अभिव्यक्त करना होगा, चाहे वो ऑडिशन हो या स्क्रिप्ट। ये जरूरी नहीं है कि आप किसी और के जैसे हो या नहीं। मेरे जैसा कोई नहीं है यही पैमाना अच्छा है।”

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निर्देशक आनंद एल. राय ने कहा, “ये बहुत महत्वपूर्ण है कि हम नई प्रतिभाओं को पाते रहें। हर 5-10 साल में हमें नए अभिनेताओं, पटकथा लेखकों, निर्देशकों आदि की कमी महसूस होती है।”

इसके बाद चर्चा इस ओर बढ़ गई कि क्या प्रोडक्शन हाउस की तुलना में ओटीटी प्लेटफॉर्म नए लोगों को मौका देने के मामले में ज्यादा खुलेपन वाले हैं। निर्देशक कबीर खान ने जवाब दिया, “मुझे लगता है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म नए लोगों के साथ प्रोजेक्ट करने में ज्यादा साहसी रहे हैं।”

अनन्या बिड़ला ने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी के बारे में बात करते हुए कहा, “हमारे लिए जरूरी ये है कि एक अच्छा मिश्रण पा सकें। हमारे पास एक तरह का मॉडल है जिसमें हम ओटीटी प्लेटफॉर्म पर पिच करने से पहले इन-हाउस काम करते हैं।”

निर्देशक लव रंजन ने कहा, “दर्शक सब्सक्रिप्शन फीस चुकाने के बाद नए लोगों को देखने को लेकर इच्छुक हैं। लेकिन सच कहूं तो स्थिति पिछले 20 सालों से काफी बेहतर है। आप दर्शकों को तो छोड़ ही दो, नए कलाकारों वाली अपनी फिल्म को मीडिया में कवर करवाना भी एक मुश्किल काम हो चुका है। क्योंकि आखिरकार ये एक उपभोक्ता बाजार है।” फिल्म विश्लेषक कोमल नाहटा ने इस सत्र का संचालन किया।

सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एसआरएफटीआई), एनएफडीसी, फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) और ईएसजी द्वारा संयुक्त रूप से मास्टरक्लास और इन-कन्वर्सेशन सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। फिल्ममेकिंग के हर पहलू में छात्रों और सिनेमा के प्रति उत्साही लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए इस वर्ष कुल 23 सत्रों का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें मास्टरक्लास और इन-कन्वर्सेशन शामिल हैं।

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