ओटीटी और डिजिटल प्लेटफॉर्म की बदौलत अभिनय के क्षेत्र में अवसरों में वृद्धि हुई है: कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा

प्रसिद्ध कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा ने कास्टिंग डायरेक्टर की भूमिका के विकास और भारतीय फिल्म उद्योग में कास्टिंग की प्रक्रिया के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि कास्टिंग एक बहुत पुरानी प्रक्रिया है, हालांकि, एक अलग विभाग के रूप में कास्टिंग डायरेक्शन नई बात है। कास्टिंग डायरेक्टर, अभिनेता और निर्देशक के बीच में एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। उन्होंने कहा कि पहले निर्देशक और निर्माता जो भी उपलब्ध होता था, उसे कास्ट कर लेते थे, लेकिन अब प्रक्रिया अधिक व्‍यवसायी बन चुकी है।

मुकेश छाबड़ा 53वें इफ्फी के “इन-कन्वर्सेशन” सत्र में ‘कास्टिंग इन न्यू इंडियन सिनेमा’ विषय पर अपने विचार प्रकट कर रहे हैं।

53वें भारतीय अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्‍म महोत्‍सव के दौरान आज के “इन-कन्वर्सेशन” सत्र में भारतीय फिल्म जगत में कास्टिंग के क्षेत्र को सुव्यवस्थित करने की प्रेरक शक्ति मुकेश छाबड़ा और भारत में कास्टिंग के क्षेत्र की एक अन्‍य प्रसिद्ध हस्‍ती क्षितिज मेहता ने भाग लिया। उन दोनों ने ‘कास्टिंग इन न्यू इंडियन सिनेमा’ विषय पर अपनी बात रखी । उन्होंने कास्टिंग प्रक्रिया के विकास, भारतीय फिल्म उद्योग में कास्टिंग उद्योग पर ओटीटी प्लेटफार्मों के प्रभाव और किसी विशेष भूमिका के लिए अभिनेताओं की कास्टिंग में सोशल मीडिया के प्रभाव के बारे में अपने विचार साझा किए।

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भारत में फिल्म उद्योग में कास्टिंग पर ओटीटी प्लेटफॉर्म और डिजिटल दुनिया के प्रभाव के बारे में बोलते हुए मुकेश छाबड़ा ने कहा कि ओटीटी और डिजिटल प्लेटफॉर्म के उदय से अभिनय के क्षेत्र में अवसरों में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि डिजिटल ने प्रयोग की संभावना को जन्‍म दिया है।

मुकेश छाबड़ा की बात को आगे बढ़ाते हुए क्षितिज मेहता ने कहा कि ओटीटी प्लेटफार्मों ने कास्टिंग की प्रक्रिया को और अधिक रोमांचक बना दिया है। उन्होंने कहा कि पहले जो अभिनेता फिल्मों में बहुत छोटी भूमिएंका निभाया करते थे, वे अब ओटीटी प्लेटफॉर्म पर वेब सीरीज और शो में प्रमुख भूमिका निभाते नजर आते हैं। क्षितिज ने कहा कि इसके अलावा ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दबाव कम है, इसकी बदौलत कास्टिंग आसान हो गई है और इसने प्रक्रिया अधिक खुला बना दिया है।

अभिनेताओं के लिए वर्कशॉप आयोजित करने की जरूरत और महत्व पर प्रकाश डालते हुए मुकेश छाबड़ा ने कहा कि ये वर्कशॉप फिल्म की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए आयोजित की जाती हैं और नए अभिनेताओं को उनकी भूमिका के लिए सहज करने व तैयार करने में बड़ी कारगर होती है। ये वर्कशॉप अभिनेताओं को आगे तैयार करने और संवारने में मदद करती हैं। वर्कशॉप्स को लेकर अपने विचार साझा करते हुए क्षितिज मेहता ने कहा कि अगर कोई प्रक्रिया से गुजरे बिना सफलता हासिल करता है, तो उसे इससे गुजरने की आवश्यकता महसूस नहीं होगी, लेकिन अगर वे इनमें हिस्सा लेते हैं तो उन्हें फर्क जरूर महसूस होगा। लंबी अवधि में इससे फर्क पड़ेगा।

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क्या सोशल मीडिया पर लोकप्रियता का कास्टिंग प्रक्रिया पर कोई असर पड़ता है, इस सवाल के जवाब में मुकेश छाबड़ा ने कहा कि सोशल मीडिया पर लोकप्रिय होने और एक अभिनेता के रूप में कास्ट किए के बीच कोई संबंध नहीं है। संबंधित भूमिका के लिए सभी को ऑडिशन देना होता है। मुकेश ने कहा, अभिनय करना है तो सीखो और प्रशिक्षण पाओ, प्रक्रिया का पालन करो, अपना 100 प्रतिशत दो। क्षितिज मेहता ने इस विषय में मुकेश छाबड़ा के विचारों का समर्थन किया।

भारतीय फिल्म उद्योग में नेपोटिज़्म के मुद्दे पर मुकेश छाबड़ा और क्षितिज मेहता ने अपने विचार और राय साझा की। इसी विषय पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि राजकुमार राव, आयुष्मान, फातिमा शेख, रसिका दुग्गल, सान्या मल्होत्रा, मृणाल ठाकुर जैसे प्रतिभाशाली लोगों को अवसर मिल रहे हैं और वे फिल्म उद्योग में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।

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