राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग(एनसीएसटी) ने जनजाति अनुसंधान- अस्मिता, अस्तित्व और विकास पर 27 और 28 नवंबर को दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया

मुख्य विशेषताएं:

एनसीएसटी ने ‘जनजाति अनुसंधान- अस्मिता, अस्तित्व और विकास’ विषयों पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया

प्राकृतिक संसाधनों का अपकर्षण, कुपोषण, पलायन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा और विचार-विमर्श किया गया

एनसीएसटी के ‘जनजाति अनुसंधान- अस्मिता, अस्तित्व एवं विकास’ विषयों पर दो दिवसीय कार्यशाला का आज समापन हुआ। कार्यशाला का उद्घाटन 27 नवंबर को विज्ञान भवन, नई दिल्ली के प्लेनरी हॉल में किया गया था। इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री जतिंदर के. बजाज, आईसीएसएसआर के अध्यक्ष थे जबकि श्री हर्ष चौहान, एनसीएसटी के अध्यक्ष, श्री अनंत नायक, एनसीएसटी के सदस्य और श्रीमती अलका तिवारी, सचिव, एनसीएसटी, नई दिल्ली भी उपस्थित हुए।

श्रीमती अलका तिवारी, सचिव, एनसीएसटी ने झारखंड के अर्की ब्लॉक, खूंटी (पहले रांची जिला) में एक प्रशासक के रूप में अपने अनुभवों और जानकारी को साझा किया और कहा कि संसाधनों का सही उपयोग करने के लिए योजना बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हम उन लोगों को ठीक से नहीं समझ पाते हैं जिनके लिए हम योजना बना रहे हैं, तो यह निरर्थक है।

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कार्यशाला के पहले दिन अनुसूचित जनजातियों की अतीत से लेकर वर्तमान तक के संबंधों और जनजातीय अनुसंधान के आख्यानों को राजनीतिक स्वाधीनता प्रदान करने की आवश्यकता पर चर्चा की गई।

कार्यशाला में वक्ताओं ने जनजातीय इतिहास में सुधार करने के लिए मौखिक परंपरा का प्रलेखीकरण करने की आवश्यकता पर बल दिया।

कार्यशाला के दूसरे दिन प्राकृतिक संसाधनों के अपकर्षण, कुपोषण, पलायन, बीपीएल के अंतर्गत जनसंख्या वृद्धि, विकास प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी में कमी, पारंपरिक विकास प्रणाली का विनाश और सामाजिक संकट में बढ़ोत्तरी जैसे प्रमुख मुद्दों पर चर्चा का आयोजन किया गया।

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कार्यशाला में ज्ञान आधारित फीडबैक प्राप्त करने के लिए जमीनी स्तर पर अनुसंधान और प्रभाव मूल्यांकन की आवश्यकता पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।

चर्चा में जनजातीय अनुसंधान में उच्च शिक्षण संस्थानों की भूमिका के बारे में बताया गया और इस बात पर प्रकाश डाला गया कि ये संस्थान इसमें अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं

कार्यशाला के पहले दिन का विवरण जानने के लिए यहां क्लिक करें

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