जान बचाने के लिए हजारों बंगालियों को असम में शरण लेनी पड़ी है। कश्मीर जैसे हालातों की शुरुआत।

पश्चिम बंगाल को बचाने की जिम्मेदारी ममता बनर्जी की भी है। नहीं तो फारुख अब्दुल्ला और महबूबा की तरह अप्रासंगिक हो जाएंगी।
जान बचाने के लिए हजारों बंगालियों को असम में शरण लेनी पड़ी है। कश्मीर जैसे हालातों की शुरुआत।
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6 मई को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन के काफिले पर हमले की घटना बताती है कि वहां हालात कितने गंभीर है। पश्चिम बंगाल को चरमपंथियों से बचाने की जिम्मेदारी नरेन्द्र मोदी और भाजपा की ही नहीं बल्कि ममता बनर्जी की भी है। आखिर ममता बनर्जी भी भारत की नागरिक हैं और उन्हें बंगाल की जनता ने लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया है। ममता की जीत के बाद यदि एक राजनीतिक दल के 10 कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिए जाएं और हजारों लोग जान बचाने के लिए पड़ौसी राज्य असम में चले जाएं तो अनेक सवाल उठना लाजमी है। जिन लोगों ने असम में शरण ली है, क्या ममता बनर्जी उनकी मुख्यमंत्री नहीं है? ममता बनर्जी माने या नहीं लेकिन उनके पिछले 10 वर्ष के शासन में पश्चिम बंगाल में चरमपंथ को बढ़ावा मिला है। ममता बनर्जी इस बात से खुश हो सकती है कि चरमपंथियों के सहयोग और समर्थन से वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बन गई है। मुख्यमंत्री तो जम्मू कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार की तीसरी और मुफ्ती परिवार की दूसरी पीढ़ी भी बन गई, लेकिन पिछले 50-70 सालों में कश्मीर का क्या हाल हुआ है, यह पूरा देश देख रहा है। पहले 4 लाख हिन्दुओं को कश्मीर से भगा दिया गया। यही अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार देखता रह गया, क्योंकि इन्हें चरमपंथियों का समर्थन था। कश्मीर के चरमपंथी अब खुलेआम पाकिस्तान का समर्थन करते हैं। चरमपंथियों से सेना को मुकाबला करना पड़ रहा है। बदले हुए हालातों में फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी अप्रासंगिक हो गई है। अनुच्छेद 370 हटने से पहले तक कश्मीर घाटी पूरी तरह चरमपंथियों के नियंत्रण में थी। ममता बनर्जी ने तो चुनाव प्रचार के दौरान मंच से चंडी पाठ भी किया है। यानी ममता को संस्कृत भाषा का भी ज्ञान है। ऐसे में बंगाल को बचाने की जिम्मेदारी ममता की भी है। कश्मीर में लगातार मुख्यमंत्री तो शेख अब्दुल्ला, पुत्र फारुख अब्दुल्ला और उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला भी बने हैं, लेकिन अब्दुल्ला परिवार के शासन में कश्मीर के हालात बद से बदतर हो गए। कांग्रेस हमेशा इस बात से खुश रही कि जम्मू कश्मीर में उन्हीं के समर्थक चुनाव जीत रहे हैं। आज बंगाल में कांग्रेस की स्थिति कश्मीर जैसी हो गई है। 292 सीटों में से कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है। लेकिन इसके बावजूद भी कांग्रेस खुशियां मना रही है। असल में कांग्रेस का समर्थन भी चरमपंथियों के साथ है। कश्मीर घाटी से जब चार लाख हिन्दुओं को भगाया गया तब केन्द्र में कांग्रेस का ही शासन था। तब केन्द्र ने कश्मीर में कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की। यदि वोटों की राजनीति के खातिर पश्चिम बंगाल भी कश्मीर की राह पर चलता है तो यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। ममता को यह भी समझना चाहिए कि पश्चिम बंगाल की सीमाएं पाकिस्तान से अलग हुए बांग्लादेश से लगी हुई है। बांग्लादेश में भी चरमपंथियों का बोल बाला है।