जब पंजाब में ही कोई बदलाव नहीं हो रहा तो राजस्थान में क्या होगा? सचिन पायलट तो दिल्ली में है।

अब चाहे माकन आएं या वेणुगोपाल, राजस्थान में अशोक गहलोत पर कोई दबाव नहीं डाला जा सकता।
जब पंजाब में ही कोई बदलाव नहीं हो रहा तो राजस्थान में क्या होगा? सचिन पायलट तो दिल्ली में है।
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कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान के प्रभारी अजय माकन 6 व 7 जुलाई को जयपुर में रहेंगे। कुछ मीडिया कर्मी माकन के दौरे को अशोक गहलोत और सचिन पायलट के गुटों के बीच तालमेल बैठाने के उद्देश्य से देख रहे हैं, लेकिन अब माकन आएं या संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल कोई नेता मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर दबाव नहीं डाल सकता। राजस्थान में संगठन और सरकार में वही होगा, जो गहलोत चाहेंगे। यदि अजय माकन के दौरे का महत्व होता तो पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट दिल्ली नहीं होते। पायलट भी अब यह समझते हैं कि जब पंजाब में ही कोई बदलाव नहीं हो रहा है, तब राजस्थान में उम्मीद करना बेकार है। पंजाब में असंतुष्ट नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक से मुलाकात कर ली है, लेकिन फिर भी मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह पर कोई दबाव नहीं बनाया जा सकता है। अमरेन्द्र सिंह ने अपने तल्ख रुख से साफ कर दिया है कि सिद्धू न तो प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाएगा और न मंत्री। अमरेन्द्र सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि जबरन दबाव बनाया गया तो फिर पंजाब में गांधी परिवार की कांग्रेसी सरकार चली जाएगी। पंजाब में अगले वर्ष मार्च में चुनाव होने हैं, जबकि राजस्थान में ढाई वर्ष बाद चुनाव होंगे। सचिन पायलट ने भले ही गत वर्ष जल्दबाजी में कोई निर्णय लिया हो, लेकिन अब पायलट भी सूझबूझ निर्णय ले रहे हैं। पायलट अच्छी तरह जानते हैं कि गहलोत के सामने अजय माकन की क्या राजनीतिक हैसियत है। गत वर्ष जब अविनाश पांडे को हटाकर अजय माकन को राजस्थान का प्रभारी बनाया गया, तब माकन राष्ट्रीय महासचिव नहीं थे, लेकिन बाद गहलोत की सिफारिश से माकन को महासचिव बनाया गया। अब यदि केसी वेणुगोपाल की तरह राजस्थान से राज्यसभा का सांसद बनना है तो अजय माकन को भी वही करना पड़ेगा जो गहलोत चाहेंगे। पायलट के अब यह भी समझ में आ गया है कि अशोक गहलोत गांधी परिवार से भी ताकतवर हैं। इसीलिए अब पायलट सीधे तौर कोई हमला करने के बजाए छापा मार कार्यवाही कर रहे है। गत माह जून में तीन-चार विधायकों से जो बयान दिलवाए, उसकी वजह से गहलोत को निर्दलीय और बसपा वाले 6 विधायकों की शरण में जाना पड़ा। पायलट को यह भी पता है कि अभी कुछ नहीं होगा, क्योंकि सत्ता की मलाई बिखेर कर गहलोत ने 100 से ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल कर रखा है। भले ही पायलट के पास अभी भी 15 से ज्यादा कांग्रेसी विधायकों का समर्थन हो, लेकिन सरकार पर कोई खतरा नहीं है। वसुंधरा राजे की वजह से पायलट को भाजपा की स्थिति का भी पता है। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू ने भले ही कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पर प्रतिकूल टिप्पणी की हो, लेकिन राजस्थान में सीएम गहलोत को लेकर पायलट ने कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है। इसे अब पायलट की परिपक्वता ही कहा जाएगा। ऐसा नहीं कि प्रदेश में पायलट की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई है। आज भी पायलट के नाम भीड़ उमड़ती है। इसका आभास पायलट की किसान पंचायतों से लगाया जा सकता है। पायलट की लोकप्रियता से घबरा कर ही गहलोत ने किसान पंचायतों पर रोक लगाई। इस जानते हैं कि कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान गहलोत सरकार ने राजनीतिक हालातों को देखकर निर्णय लिए हैं। जूनियर आईएएस निरंजन आर्य को मुख्य सचिव बना कर गहलोत ने प्रशासनिक तंत्र को पहले ही अपने हाथों में ले रखा है। सरकार की स्थिति का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री के पास 20 विभाग हैं। गहलोत देश के पहले मुख्यमंत्री होंगे जो लंबे अरसे से 20 विभागों का बोझ ढो रहे हैं।