भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (ट्राईफेड ) विश्वभर के भारतीय दूतावासों और मिशनों में आत्मनिर्भर कॉर्नर की स्थापना करेगा

विशेषताएं:  
 
 
“स्थानीय के लिए मुखर(वोकल फॉर लोकल) ” और “आत्मनिर्भर भारत” के निर्माण पर ध्यान देने के साथ ही  भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (ट्राईफेड) विभिन्न  मंत्रालयों जैसे संस्कृति मंत्रालय, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी), वाणिज्य मंत्रालय, डाक विभाग, पर्यटन मंत्रालय  और प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है ताकि आदिवासी शिल्पियों और कारीगरों के सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में जनजातीय उत्पादों सहित जीआई टैग उत्पादों को बढ़ावा देने के साथ ही उन्हें एक ब्रांड में बदला जा सके।  
इस संदर्भ में ट्राईफेड  विदेश मंत्रालय के सहयोग से विश्वभर में स्थापित 100 भारतीय मिशनों / दूतावासों में एक आत्मनिर्भर भारत कॉर्नर स्थापित करने वाला है। प्राकृतिक और जैविक उत्पादों के अलावा जीआई टैग युक्त जनजातीय कला और हस्तशिल्प उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए यह कोना एक विशेष स्थान होगा। जनजातीय उत्पादों की समृद्धि और विविधता को प्रदर्शित करने वाले सूचीपत्र (कैटलॉग) और  (ब्रोशर) भी मिशनों और दूतावासों के पास  भेजे  गए हैं। इस बारे में जिन मिशनों और दूतावासों से संपर्क किया गया, उनमें से 42 जमैका, आयरलैंड, तुर्की, केन्या, मंगोलिया, इज़राइल, फ़िनलैंड, फ़्रांस और कनाडा जैसे देशों से वापस लौटे हैं। ट्राइफेड आदिवासी उत्पादों की पहली खेप को इन कॉर्नेस में भेजने की प्रक्रिया चल रही है।
 

  हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह के एक अंग के रूप में न्यूयॉर्क में भारत के महावाणिज्य दूतावास ने न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर में योग, समग्र स्वास्थ्य, आयुर्वेद और स्वास्थ्यता को प्रदर्शित करने के लिए एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें 3000 लोगों ने भाग लिया। न्यूयॉर्क में एक प्रतिष्ठित स्थान पर आयोजित यह कार्यक्रम बहुत सफल रहा। कार्यक्रम का विशेष आकर्षण वे स्टॉल थे जिनमें रोग प्रतिरक्षण क्षमता को बढाने वाले  आयुर्वेदिक उत्पादों सहित अद्वितीय प्राकृतिक जनजातीय उत्पादों की एक पूरी श्रृंखला शामिल थी  जिसमें जैविक उत्पाद , प्राकृतिक प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाले आवश्यक उत्पाद जैसे बाजरा, चावल, मसाले, शहद, च्यवनप्राश, आंवला, अश्वगंधा पाउडर, हर्बल चाय और कॉफी तथा योग कारने के लिए  चटाई, बांसुरियां , हर्बल साबुन, बांस से बनी सुगंधित मोमबत्तियां इत्यादि। इन स्टालों पर भारी मात्रा में लोगों की भीड़ भी देखी गई और भारत की जनजातियों एवं आदिवासी उत्पादों की विशिष्टता के बारे में जानने के लिए भी बहुत उत्सुकता व्यक्त की गई। इस आयोजन के लिए भारतीय वाणिज्य दूतावास न्यूयॉर्क द्वारा आदिवासी उत्पादों की लगभग 8.5 लाख रुपये की खेप भेजने का आदेश दिया गया था।  
“स्थानीय के लिए मुखर वोकल फॉर लोकल)” के लिए प्रधानमंत्री की परिकल्पना को ध्यान में रखते हुए और अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के लिए समृद्ध आदिवासी विरासत का परिचय देते हुए इससे पहले, फरवरी 2021 में विदेश मंत्रालय के सहयोग से ट्राइब्स इंडिया आदि महोत्सव में ट्राइब्स इंडिया कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम को खूब सराहा गया और इसमें  भारत में कार्यरत 30 से अधिक विदेशी मिशनों के 120 से अधिक राजनयिकों ने भाग लियाI इसके अलावा विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी आदि महोत्सव का दौरा किया था।  
गणमान्य व्यक्तियों में ताइपे, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, म्यांमार, मलेशिया, बोलीविया, जाम्बिया, फिनलैंड, पोलैंड, ब्राजील, मिस्र, कोस्टारिका, कंबोडिया, केन्या, माल्टा, फिलीपींस, लाओस, ट्यूनीशिया, क्रोएशिया, टोगो, अफगानिस्तान ,संयुक्त राज्य अमेरिका, घाना, तुर्की, उज्बेकिस्तान, यूके, ईरान और  फ्रांस जैसे देशों के राजनयिक शामिल थे। संयुक्‍त राष्‍ट्र शरणार्थी उच्‍चायुक्‍त कार्यालय (यूएनएचसीआर) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि भी इस समारोह में आने वालों में शामिल थे।   भारत में स्वदेशी उत्पादों की एक समृद्ध विरासत है, चाहे वह हस्तशिल्प, हथकरघा हो या कोई और उत्पाद हों। राष्ट्रीय नोडल एजेंसी के रूप में ट्राईफेड ऐसे सभी स्वदेशी उत्पादों को बाजार में  लाने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर काम कर रहा है, जिनका उत्पादन देश भर के आदिवासी समूह कई शताब्दियों से कर रहे हैं। इसे देखते हुए भौगोलिक संकेत या जीआई टैगिंग का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता  है।
 

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इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि  जनजातियां हमारी जनसँख्या के  8 प्रतिशत से अधिक हैं I हालांकि  वे समाज के वंचित वर्गों में आती हैं। देश मुख्यधारा के बीच एक गलत धारणा यह  बनी हुई है कि “हमें उन्हें सिखाना है और उनकी सहायता करनी है”, जबकि सच्चाई कुछ और ही है – आदिवासियों को शहरी भारत बहुत कुछ सिखाता है और वे बिना बोले भी बहुत कुछ बता जाते है। प्राकृतिक सादगी से सराबोर उनकी कृतियों में एक कालातीत आकर्षण है। हस्तशिल्प की इस विस्तृत श्रृंखला में हाथ से बुने हुए सूती, रेशमी कपड़े, ऊन, धातु शिल्प, मृत्तिका भांड (टेराकोटा), मनकों से बने हस्तशिल्प शामिल हैंI इन सभी को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है।  
भौगोलिक संकेत अर्थात जीआई टैग को विश्व व्यापार संगठन द्वारा मान्यता दी गई हैI इसका उपयोग उस भौगोलिक क्षेत्र को बताने के लिए किया जाता है जहां किसी भी प्रकार का विशिष्ट  उत्पाद होता है – चाहे वह कृषि उत्पाद हो, प्राकृतिक उत्पाद हो या जिसका निर्माण किया गया  होI साथ ही यह संकेतक उन गुणों या विशेषताओं का आश्वासन भी देता है जो उस विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र की अनूठी  विशिष्टता है। भारत इस सम्मेलन का एक हस्ताक्षरकर्ता तब बना जब विश्व व्यापार संगठन के सदस्य के रूप में  उसने भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण अधिनियम), 1999 को अधिनियमित किया थाI यह 15 सितंबर, 2003 से लागू हुआ था।    
इस प्रचार को बढ़ावा देने के साथ यह भी आशा की जाती है कि इन अद्वितीय उत्पादों को एक बड़ा बाजार मिलेगा और तब ही “स्थानीय के लिए मुखर, जनजातीय उत्पाद खरीदें – वोकल फॉर लोकल बाय ट्राइबल) की अवधारणा को वास्तविकता में बदला जा सकता है जिससे देश के जनजातीय लोगों की स्थायी आय का सृजन होने के साथ ही उनके रोजगार के क्षेत्रों में वास्तव में परिवर्तन हो सकेगा।
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