पंजाब में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में अजय माकन और हरीश चौधरी पर्यवेक्षक। तो क्या अजय माकन ने राजस्थान में कांग्रेस के संकट का समाधान कर दिया है?

पंजाब में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में अजय माकन और हरीश चौधरी पर्यवेक्षक।
तो क्या अजय माकन ने राजस्थान में कांग्रेस के संकट का समाधान कर दिया है?
पंजाब कांग्रेस में राजनीतिक संकट गहराया। 77 में से 40 विधायक मुख्यमंत्री अमरिंदर के खिलाफ।
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सब जानते हैं कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन राजस्थान के प्रभारी है। अजय माकन पिछले एक वर्ष से राजस्थान कांग्रेस के संकट का हल निकालने में लगे हुए हैं। माकन ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रतिद्वंदी माने जाने वाले पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट से अलग अलग मुलाकात भी की है, लेकिन एक वर्ष पहले जो स्थिति थी वो आज भी बनी हुई है। न मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ और न ही गहलोत व पायलट में तालमेल। दोनों के बीच राजनीतिक तलवारें खींची हुई है। यह बात सही है कि कांग्रेस सरकार को कोई खतरा नहीं है। इससे अजय माकन की कोई होशियारी नहीं है, बल्कि यह अशोक गहलोत की राजनीतिक कुशलता है। अभी राजस्थान के संकट का हल नहीं हो पाया है, इससे पहले ही कांग्रेस हाईकमान ने अजय माकन को पंजाब के संकट के समाधान की जिम्मेदारी सौंपी है। राजस्थान के राजस्व मंत्री और सीएम गहलोत के भरोसे के हरीश चौधरी को माकन का सहयोगी बनाकर पंजाब भेजा गया है। 18 सितंबर को सायं पांच बजे चंडीगढ़ में हो रही कांग्रेस विधायक दल की बैठक में माकन और चौधरी पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद है। अब तक पंजाब के संकट का समाधान निकालने में प्रभारी हरीश रावत लगे हुए थे, लेकिन अब माकन और चौधरी की भी एंट्री करवा दी है। विधायक दल की बैठक के बाद माकन और चौधरी जो रिपोर्ट देंगे उसी पर कांग्रेस हाईकमान निर्णय लेगा। हालांकि ऐसी रिपोर्ट प्रभारी हरीश रावत भी कई बार दे चुके हैं। लेकिन फिर भी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तालमेल नहीं हो पाया है। हाईकमान ने भले ही सिद्धू को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया हो, लेकिन कैप्टन अमरेंद्र सिंह, सिद्धू की सलाह पर मुख्यमंत्री का दायित्व निभाने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि सिद्धू समर्थक 40 विधायकों की मांग पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। पंजाब में कुल 117 विधायक हैं, जिनमें से 77 कांग्रेस, 22 आम आदमी पार्टी, 16 अकाली दल तथा 2 विधायक भाजपा के हैं। 77 में से 40 विधायकों द्वारा विधायक दल की बैठक बुलाने से प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह की पकड़ कमजोर हो गई है। लेकिन हाईकमान के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगला विधानसभा चुनाव कैप्टन के चेहरे पर ही लड़ने का निर्णय हो चुका है। देखना होगा कि अजय माकन अब पंजाब के संकट का हल कैसे निकालते हैं। पंजाब में अगले वर्ष मार्च में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं, जबकि राजस्थान में अभी सवा दो वर्ष शेष हैं। राजस्थान में अजय माकन ने निर्णयों को टाल रखा है, जबकि पंजाब में ऐसा संभव नहीं होगा, क्योंकि अशोक गहलोत और अमरेंद्र सिंह के मिजाज में बहुत फर्क है। इसी प्रकार नवजोत सिंह सिद्धू और सचिन पायलट की तुलना भी नहीं की जा सकती है। पायलट भी समझते हैं कि राजस्थान के चुनाव में सवा दो साल शेष है, इसलिए कांग्रेस हाईकमान भी समस्याओं को टालने वाली नीति पर चल रहा है, जबकि पंजाब में यह नीति नहीं अपनाई जा सकती है, क्योंकि 6 माह बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। अलबत्ता राजस्थान और पंजाब में चल रही राजनीतिक खींचतान की वजह से अजय माकन ने अपना कद बढ़ा लिया है। अजय माकन तो राजस्थान में कांग्रेस विधायकों ने वन टू वन मुलाकात भी कर चुके हैं। समस्याओं को टालने में अजय माकन को विशेषज्ञता हासिल हो गई है। इस समय सचिन पायलट भी धैर्य दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
अमरिंदर सिंह खफा:
जानकार सूत्रों के अनुसार कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाने पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सहमति नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद भी बैठक बुलाने की घोषणा कर दी गई है। इससे सीएम अमरेंद्र सिंह बेहद खफा हैं। उन्होंने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को फोन पर भी अपनी नाराजगी जताई है। सूत्रों के अनुसार कैप्टन ने सोनिया से कहा है कि यदि उन्हें इसी तरह अपमानित किया जाता रहा तो वे पार्टी छोड़ देंगे। वहीं माना जा रहा है कि विधायक दल की बैठक में अमरिंदर सिंह पर मुख्यमंत्री का पद छोड़ने का दबाव बनाया जाएगा। यदि अमरेंद्र सिंह नाराज होकर सीएम के पद से इस्तीफा देते हैं तो पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगने की संभावना है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह राज्यपाल के पास जाकर विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं। ऐसे में पंजाब में कांग्रेस को चुनाव से पहले नुकसान उठाना पड़ेगा।