लखीमपुर खीरी में जिन चार युवाओं को पीट पीट कर मार डाला आखिर उनकी सुध कौन लेगा? क्या ये चारों युवा भारत के नागरिक नहीं है। काश! विपक्षी पार्टियां चार युवाओं की हत्या की भी निंदा करें।

लखीमपुर खीरी में जिन चार युवाओं को पीट पीट कर मार डाला आखिर उनकी सुध कौन लेगा? क्या ये चारों युवा भारत के नागरिक नहीं है।
किसानों की मौत का मामला भी संवेदनशील है। काश! विपक्षी पार्टियां चार युवाओं की हत्या की भी निंदा करें।
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उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में हुई चार किसानों की मौत के विरोध में कांग्रेस में पांच व छह अक्टूबर को देशभर में विरोध प्रदर्शन का आव्हान किया है। सपा और अन्य विपक्षी पार्टियों ने भी किसानों की मौत पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की खिलाफत की है। प्रियंका गांधी को हिरासत में लिए जाने के कारण कांग्रेस ज्यादा नाराज है। मृत्यु किसी की भी हो, निंदनीय है। लखीमपुर खीरी में चार किसानों की मौत की घटना भी गंभीर मामला है। इन मौतों के लिए जो लोग जिम्मेदार हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। लेकिन सवाल उठता है कि लखीमपुर खीरी में ही जिन चार युवाओं को डंडों और घातक हथियारों से पीट पीट कर मार डाला, उनकी सुध कौन लेगा? न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर जो वीडियो वायरल हो रहे हैं, उनमें ये चारों युवक अपने जीवन की भीख मांग रहे हैं, लेकिन अत्याचारी हत्यारे बड़ी बेरहमी से डंडे मार रहे हैं। जमीन पर बेसुध हो जाने के बाद भी डंडे मारे जा रहे हैं। इतनी बेदर्दी से मौत के घाट उतारा गया है, इसे देखकर रुह कांप जाती है। वीडियो में दिखाया गया है, प्रदर्शन करने वालों ने किस तरह से वाहनों को रोक और फिर उसमें तोड़ फोड़ की। जान बचाने के लिए जब ड्राइवरों ने वाहनों को तेज गति से चलाया तो हालात बिगड़ गए। बीच रास्ते में बैठे प्रदर्शनकारी यदि वाहनों को गुजरने देते तो यह हादसा नहीं होता। यह सारे वीडियो बता रहे हैं कि 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में क्या हुआ? जो लोग लोकतंत्र और कानून की बात करते हैं, वे बताएं कि चार युवाओं को इतनी बेरहमी से क्यों मारा गया। युवक शुभम मिश्रा तो अपने माता पिता की इकलौती संतान था। शुभम की मौत के बाद अब उनके परिवार का भरण पोषण कौन करेगा? कांग्रेस के कार्यकर्ता प्रियंका गांधी को हिरासत में लिए जाने पर तो नाराज हैं, लेकिन चार युवकों की दर्दनाक हत्या पर कोई विरोध प्रकट नहीं कर रहे। क्या विपक्षी दलों के लिए देश के चार युवाओं की हत्या कोई मायने नहीं रखती है। लोकतंत्र में आंदोलन करने की सभी को छूट हैं, लेकिन आंदोलन में यदि उपद्रवी तत्व हिंसा करें तो कौन जिम्मेदारी लेगा? जो लोग लखीमपुर खीरी की घटना के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं, उसी योगी सरकार ने किसानों की मौत पर परिजनों को 45-45 लाख रुपए का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने वाला समझौता किया है। लेकिन चार युवकों की हत्या पर चुप्पी बनाए रखी गई है। अच्छा हो विपक्षी दल अपने विरोध प्रदर्शन में चार युवकों की हत्या का मामला भी शामिल करें। वीडियो में साफ पता चल रहा है कि कौन लोग युवकों को मौत के घाट उतार रहे हैं। कांग्रेस और विपक्षी दल बताएं कि क्या ऐसे हत्यारों की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए? भारत में कानून का राज है। यदि किन्हीं लोगों ने प्रदर्शनकारियों पर वाहन चढ़ाए हैं तो कानून के अनुसार कार्यवाही होगी। लेकिन यदि आरोपियों को पकड़ कर मार डाला जाए तो फिर कानून का क्या होगा? प्रदर्शनकारियों के रास्ता जाम करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी लाचार है। सुप्रीम कोर्ट यह तो मानता है कि सीमाओं पर रास्ता जाम होने से देश की राजधानी दिल्ली का दम घुट रहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस स्थिति में नहीं है कि प्रदर्शनकारियों से रास्ता खाली करवा सके। सुप्रीम कोर्ट यह भी मानता है कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानून अभी लागू नहीं हुए हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसा कोई उपाय नहीं है जो देश के प्रमुख नेशनल हाइवे को जाम से मुक्त करा सके। लोकतंत्र में वोट के माध्यम से किसी भी सरकार को बदलने का अधिकार है। लेकिन कुछ लोग वोट की ताकत को दरकिनार कर डंडे के बल पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते हैं।