कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ क्यों नहीं बोलते विपक्षी दलों के नेता? दो घंटे में तीन बेकसूरों की हत्या।

कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ क्यों नहीं बोलते विपक्षी दलों के नेता? दो घंटे में तीन बेकसूरों की हत्या।
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कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेता लखीमपुर खीरी में जाने को तो आतुर हैं, लेकिन कश्मीर में 5 अक्टूबर को दो घंटे में तीन बेकसूरों की हत्या पर आतंकवादियों के खिलाफ कुछ नहीं बोला जाता है। कश्मीर के श्रीनगर में पिछले पचास वर्षों से मेडिकल स्टोर चलाने वाले माखनलाल बिंदरू और मदीना चौक में पानीपुरी का ठेला लगाने वाले वीरेंद्र पासवान तथा बांदीपुरा में ऑटो चालक शफी लोन को आतंकियों ने गोली मार दी। दवा विक्रेता माखनलाल के पुत्र डॉ. सिद्धार्थ बिंदरू का कहना है कि उनके पिता ने बिना भेदभाव के जीवन रक्षक दवाएं कश्मीर के लोगों को उपलब्ध करवाई। यही वजह रही कि 1990 के दशक में आतंक के दौर में जब हिन्दू समुदाय के लोग कश्मीर से पलायन कर रहे थे, तब कश्मीरी मुसलमानों ने हमारे परिवार की सुरक्षा की। मेरे पिता की हत्या के सबसे ज्यादा गम कश्मीर के मुसलमानों को ही है। वीरेंद्र पासवान तो बिहार के भागलपुर से रोजी रोटी कमाने के लिए श्रीनगर आया था। श्रीनगर आने वाले पर्यटकों को पानीपुड़ी खिलाने के लिए वीरेंद्र पासवान मदीना चौक में ठेला लगता था, लेकिन आतंकियों ने बिंदरू को दुकान में घुसकर और पासवान को सरेआम गोली मार दी। सब जानते हैं कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने के बाद कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं। श्रीनगर में भी पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है, लेकिन अफगानिस्तान में आतंकी संगठन तालिबान और हक्कानी गुट के कब्जे के बाद हमारे कश्मीर में भी आतंकी गतिविधियों में इजाफा हुआ है। यदि कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद फिर से पनपता है तो पूरे देश को खामियाजा भुगतना पड़ेगा। लखीमपुर खीरी का मामला तो हमारा आंतरिक है, जिसे आपसी बातचीत से सुलझा लिया जाएगा, लेकिन कश्मीर में आतंकी घटनाओं में पाकिस्तान का हाथ है। विपक्षी के जो नेता लखीमपुर खीरी जाने को उतावले हैं उन्हें कश्मीर में मारे गए तीन बेकसूर लोगों के मामले में आतंकियों की भी निंदा करनी चाहिए। लखीमपुर खीरी में तो किसान नेता राकेश टिकैत पहले से ही मौजूद हैं और स्थानीय प्रशासन से लगातार वार्ता कर रहे हैं। राकेश टिकैत की सभी मांगों को प्रशासन ने माना है। लोकतंत्र में राजनीति करने का अधिकार सभी दलों को है, लेकिन सवाल उठता है कि जब किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत मौजूद हैं तो फिर राजनेता लखीमपुर खीरी जाने को इतने उतावले क्यों हैं? क्या नेताओं को टिकैत पर भरोसा नहीं है? राकेश टिकैत ने मृतकों के परिजन की ओर से जो भी मांग रखी हैं, उन्हें प्रशासन ने स्वीकार किया है। पीड़ित परिवारों के साथ राकेश टिकैत खड़े हैं। विपक्षी दलों को यह भी समझना चाहिए कि लखीमपुर खीरी में चार युवकों की भी मौत हुई है। इन युवकों की अभी तक भी कोई सुध नहीं ली गई है। चार प्रदर्शनकारी किसानों की मृत्यु में जो दोषी हैं, उनके विरुद्ध भी सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। मृत्यु किसी की भी हो, हव दुखदायी होती है। सदस्य की मृत्यु के बाद परिजनों को भारी परेशानी होती है। अच्छा हो कि विपक्षी दलों के नेता लखीमपुर खीरी के साथ साथ श्रीनगर में मारे गए बेकसूर लोगों की भी सुध लें और उन आतंकियों की निंदा करें, जो कश्मीर का माहौल बिगाड़ना चाहते हैं।