“नितंतोई सहज सरल जीवन और इसके अर्थों की तलाश के लिए एक अत्यधिक विनम्र आइसक्रीम विक्रेता की खोज पर आधारित है”: इफ्फी 52 में डेब्यू निर्देशक सत्रबित पॉल अपनी फिल्म पर

यह फिल्म जीवन और इसके अर्थों की खोज के लिए एक सहज तथा अत्यधिक विनम्र आइसक्रीम विक्रेता की सरल खोज है। गोवा में चल रहे भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में फिल्म प्रेमियों को नितंतोई सहज सरल की बदौलत आम आदमी की मौलिक सादगी में खुद को खोने का एक आसान लेकिन बहुत खूबसूरत मौका मिला है। ग्रामीण बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित निर्देशक सत्रबित पॉल की यह बंगाली फिल्म साधारण लोगों और उनके सरल जीवन के बारे में बात करती है। अपने नाम (जिसका अर्थ है “बहुत आसान और सरल”) को ध्यान में रखते हुए, इसके कहानी एवं पात्र भी सादगी को बेहतरीन तरीके से चित्रित करते हैं।

फिल्म के निर्देशक सत्रबित पॉल ने इसके लिए अपनी प्रेरणा के स्रोतों के बारे में बताया जिससे फिल्म की उत्पत्ति हुई। उन्होंने कहा कि मैं बचपन से ही कहानी के किरदारों को देख रहा हूं। इसके नायक की भूमिका मेरे स्कूल के समय वास्तविक जीवन के आइसक्रीम विक्रेता पर आधारित है, जो अपनी साइकिल पर आकर छोटे बच्चों को आइसक्रीम बेचता था। मुझे अपने मुख्य किरदार की प्रेरणा उन्हीं से मिली। सत्रबित पॉल ने यह बात आज 23 नवंबर 2021 को गोवा में फिल्म महोत्सव के 52वें संस्करण से अलग एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही। फिल्म को भारतीय पैनोरमा खंड की फीचर फिल्म श्रेणी के तहत इफ्फी में प्रदर्शित किया गया है।

फिल्म को एक ब्लैक कॉमेडी करार देते हुए पॉल ने कहा कि यह फिल्म पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती शहर हल्दीबाड़ी के एक आइसक्रीम विक्रेता के इर्द-गिर्द घूमती है। वह अपने काम के सिलसिले में बंगाल के ग्रामीण इलाकों के सुदूर हिस्सों में खुशी-खुशी यात्रा करता है। अपने काम के लिए दूर-दराज के गांवों की यात्रा करते समय, वह अच्छी और बुरी दोनों तरह बातों का अनुभव करता है, जो उसे प्यार करना और जीवन का अर्थ सिखाती हैं।

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सत्रबित पॉल ने बताया कि फिल्म में आइसक्रीम विक्रेता एक मेले में जाता है, जो जीवन का ही प्रतीक है। जीवन की तरह, आइसक्रीम विक्रेता को अपने रास्ते में विभिन्न प्रकार के लोगों का सामना करना पड़ता है। जहां कुछ लोग उसे उसकी मंजिल तक पहुंचने में मदद करने की कोशिश करते हैं, वहीं कुछ व्यक्ति उसे गुमराह भी करते हैं। मेरा नायक काम के लिए शहर से गांव आ जाता है क्योंकि उसे शहर की भागदौड़ पसंद नहीं है, कभी-कभी वह आइसक्रीम नहीं बेचना चाहता है तो उसके लिए नायक को उसके प्रबंधक द्वारा डांटा जाता है, लेकिन वह परेशान नहीं होता है। एक दिन, वह एक आदमी से मिलता है जो उसे एक मेले में एक मिलन स्थल के बारे में बताता है।

सत्रबित पॉल ने कहा कि ब्लैक एंड व्हाइट में फिल्माई गई यह फिल्म कहानीकार की आंखों के माध्यम से चित्रित एक व्यंग्य है। ये घटनाएं तब होती हैं, जब वह मेले की यात्रा पर निकलता है। वह रास्ते में अपनी आजीविका के एकमात्र स्रोत साइकिल को खो देता है, लेकिन वह उसे फिर से वापस मिल जाती है। कहानी के अंत में, आइसक्रीम विक्रेता अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सका लेकिन वह एक ऐसे व्यक्ति से मिला जो मेले से लौट रहा था। उस आदमी ने कहा कि उसकी भूख तृप्त हो गई लेकिन उसके दिल की इच्छा अधूरी रह गई। पॉल ने कहा कि जीवन में भी हमारे कई सपने और इच्छाएं होती हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर अधूरी रह जाती हैं।

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निर्देशक ने फिल्म प्रतिनिधियों को बताया कि कैसे साइकिल की घंटी की आवाज से कहानी आगे बढ़ती है। फिल्म का कोई बैकग्राउंड म्यूजिक नहीं है, संगीत के नाम पर इस फिल्म में आइसक्रीम बेचने वाले की साइकिल की घंटी की आवाज ही है।

पॉल ने अपने करियर की शुरुआत एक टेलीविजन धारावाहिक में अभिनय से की थी और इसलिए वह कई वर्षों तक थिएटर से जुड़े रहे। पॉल ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि बतौर निर्देशक मेरी पहली फिल्म इतने बड़े प्लेटफॉर्म के लिए चुनी जाएगी। हालांकि मैं थिएटर में अभिनय करता था, लेकिन मैं हमेशा से एक फिल्म बनाना चाहता था। मैं संयोग से लेखक बन गया और 2015 में मैंने इस फिल्म की कहानी लिखी। उन्होंने कहा कि वह कोलकाता से सिनेमा के दिग्गज सत्यजीत रे और बुद्धदेव दासगुप्ता से बहुत प्रेरित हैं।

फिल्म के माध्यम से किसी संदेश के बारे में पूछे जाने पर, निर्देशक ने बताया कि सभी कहानियों में संदेश नहीं होता है। कुछ बहुत सीधी-सादी कहानियां होती हैं। हम सभी जीवन में कुछ न कुछ की तलाश में रहते हैं। कोई प्यार की तलाश में है, कोई रोजी-रोटी की तलाश में, तो कोई दौलत और शोहरत की तलाश में है। मेरी कहानी भी एक खोज के बारे में है – मेरा नायक क्या ढूंढता है और उसे क्या मिलता है, यही मेरी कहानी का मूल है।

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एमजी/एएम/एनके