आखिर मां गंगा के पुत्र का दायित्व निभाया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। जिस काशी विश्वनाथ मंदिर की भव्यता को आक्रमणकारियों ने क्षतिग्रस्त किया उसकी भरपाई मोदी-योगी की जोड़ी ने की।

आखिर मां गंगा के पुत्र का दायित्व निभाया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने।
जिस काशी विश्वनाथ मंदिर की भव्यता को आक्रमणकारियों ने क्षतिग्रस्त किया उसकी भरपाई मोदी-योगी की जोड़ी ने की।
सनातनधर्मी के अनुरूप नरेंद्र मोदी ने गंगा नदी में रह कर सूर्य की परिक्रमा की।
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कोई साढ़े सात पहले नरेंद्र मोदी ने जब उत्तर प्रदेश के बनारस संसदीय क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया था, तब अपने संबोधन में कहा- माँ गंगा ने बुलाया है, इसलिए बनारस आया हूं, तब यह सवाल उठा कि क्या नरेंद्र मोदी गंगा पुत्र का दायित्व निभाएंगे। इस सवाल का जवाब बनारस की जनता और देशवासियों को 13 दिसंबर को काशी विश्वनाथ मंदिर के कॉरिडोर के लोकार्पण से मिल गया है। पहले जहां सकड़ी और अतिक्रमणों से भरी गलियों से गुजर कर मंदिर तक जाना होता था वहां आज खुला और चौड़ा कॉरिडोर बन गया है। अब गंगा नदी से बाबा के मंदिर को देखा जा सकता हैै। आक्रमणकारी मुगल शासकों ने काशी विश्वनाथ मंदिर की भव्यता को क्षति पहुंचाई थी, उसकी भरपाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की है। आज वाकई बनारस बाबा विश्वनाथ की नगरी नजर आ रही है। यानी माँ गंगा के पुत्र का दायित्व निभाते हुए नरेंद्र मोदी ने बनारस को भगवान शिव की नगरी में बदल दिया। 13 दिसंबर को 800 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले कॉरिडोर के लोकार्पण के अवसर पर बनारस के लोगों ने माना मोदी-योगी की जोड़ी ने काशी नगरी की कायापलट कर दी है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार जो मात्र दो हजार स्क्वायर फिट का था, वह अब 52 हजार स्क्वायर फिट का हो गया है। इससे काशी नगरी में हुए पुनर्निर्माण के कार्यों का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा नहीं मोदी ने बनारस की कायापलट कर माँ गंगा के पुत्र का दायित्व पूरा कर दिया। 13 दिसंबर को देशवासियों ने न्यूज चैनलों के लाइव प्रसारण में देखा मोदी ने एक सनातन धर्मी का दायित्व भी निभाया। मान्यता है कि काशी नगरी में वही प्रवेश करता है, जो पहले काल भैरव से अनुमति लेता है। काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। नरेंद्र मोदी ने इस मान्यता के अनुरूप 13 दिसंबर को सबसे पहले काल भैरव मंदिर में ही पूजा अर्चना की। अग्नि से प्रज्ज्वलित विशेष थाली ( दीप आराधनई ) हाथ में लेकर मंदिर की परंपरा के अनुरूप काल भैरव की आरती की। इसके बाद मोदी ने एक सच्चे हिन्दुत्ववादी का फर्ज निभाते हुए गंगा नदी के किनारे ललिता घाट पर डुबकी लगाई। बिना किसी सहायता के मोदी ने कलश और पूजा की सामग्री अपने हाथ में ली और नदी में कई बार डुबकी लगाई। हो सकता है कि सुरक्षा अधिकारियों ने देश के प्रधानमंत्री को बहती गंगा नदी में डुबकी लगाने से मना किया हो, लेकिन मोदी ने सनातन धर्म की परंपरा का निर्वाह करते एक बार नहीं बल्कि अनेकों पर अपने पूरे शरीर को गंगा नदी में डुबोया। ऐसी जिद नरेंद्र मोदी जैसा सनातनधर्मी ही कर सकता है। अभी जब पहाड़ों पर लगातार बर्फबारी हो रही है और गंगा नदी का पानी बहुत ठंडा है, तब देश का प्रधानमंत्री यदि नदी में 15 मिनट तक रह कर अपने धर्म के अनुरूप पूजा अर्चना करता है तो यह कहा जा सकता है कि भारत देश सुरक्षित हाथों में है। मान्यता है कि गंगा नदी में खड़े होकर जो व्यक्ति सूर्य के सामने जल अर्पित करता है उसे यह माना जाता है कि उसने सूर्य की परिक्रमा पूरी कर ली है। मोदी ने इस मान्यता का भी निर्वाह किया। मान्यता यह भी है कि सनातन धर्मी को गंगा नदी के जल से ही काशी विश्वनाथ के मंदिर में पूजा अर्चना करनी चाहिए। यही वजह रही कि मोदी ने नदी से कलश में जल भरा और फिर स्वयं ही मंदिर तक कलश को ले गए। यहां पूरी विधि विधान से मोदी ने मंदिर में शिवलिंग की पूजा की। धर्म के बाद मोदी ने कर्म करने का दायित्व भी निभाया। काशी विश्वनाथ के कॉरिडोर का निर्माण करने वाले श्रमिकों के बीच भी मोदी ने उपस्थिति दर्ज करवाई। लोकार्पण के समारोह में कोई दो हजार साधु संतों ने भी उपस्थित होकर मोदी और योगी को आशीर्वाद दिया।