डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम इंसा की रिहाई से पंजाब के चुनावों में अकाली और बसपा के गठबंधन को फायदा होने की उम्मीद।

डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम इंसा की रिहाई से पंजाब के चुनावों में अकाली और बसपा के गठबंधन को फायदा होने की उम्मीद।
कांग्रेस को सत्ता से बाहर खदेड़ने के लिए हरियाणा की भाजपा सरकार का बड़ा खेल।
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पंजाब के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा के गठबंधन को जीत मिलने की उम्मीद नहीं है। लेकिन भाजपा और कैप्टन का मकसद पंजाब की सत्ता से कांग्रेस को बाहर खदेड़ने का है। जानकारों की मानें तो पंजाब में अकाली और बसपा के गठबंधन को फायदा पहुंचाने के लिए ही डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम इंसा को 7 फरवरी को 21 दिनों के लिए पैरोल पर छोड़ दिया गया है। राम रहीम दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी होकर हरियाणा की सुनारिया जेल में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं। हरियाणा की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि मतदान से माताजी का इलाज करवाने के लिए राम रहीम को पैरोल पर रिहा किया गया है। लेकिन राम रहीम की रिहाई का असल मकसद पंजाब की सत्ता से कांग्रेस को बाहर खदेडऩा है। पंजाब में 20 फरवरी को मतदान होना है। यानी राम रहीम 28 फरवरी तक जेल से बाहर रहेंगे। हर चुनाव में डेरा सच्चा सौदा की सक्रिय भूमिका रहती है। पंजाब के मालवा क्षेत्र की 47 सीटों पर डेरा का प्रभाव बताया जाता है। डेरा के अनुयायियों में ज्यादातर पिछड़े वर्ग के लोग हैं। पंजाब में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की संख्या को देखते हुए ही कांग्रेस में मौजूदा सीएम चरणजीत सिंह चन्नी को ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है। चन्नी के प्रभाव को कम करने के लिए ही राम रहीम का उपयोग किया जाता है। बेअदबी के मामले में डेरा के अनुयायियों को आरोपी बनाए जाने से डेरा प्रमुख राम रहीम भी कांग्रेस सरकार से नाराज हैं। सूत्रों के अनुसार पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा के गठबंधन की स्थिति कोई ज्यादा मजबूत नहीं है, इसके मुकाबले में अकाली (शिरोमणि) और बसपा का गठबंधन ज्यादा मजबूत नजर आ रही है। बसपा अकाली गठबंधन के साथ आम आदमी पार्टी भी मजबूत स्थिति में है। अब जब भाजपा की हरियाणा सरकार ने डेरा प्रमुख राम रहीम को मतदान से 13 दिन पहले जेल से रिहा कर दिया है तो उसका कुछ तो राजनीतिक मकसद होगा ही। इस बार डेरा प्रमुख भले ही किसी दल को समर्थन देने की सार्वजनिक घोषणा नहीं करे, लेकिन अपने अनुयायियों को इशारा जरूर कर सकते हैं। यह इशारा कांग्रेस के प्रतिकूल ही होगा। वैसे भी इन चुनावों में कांग्रेस के अंदर ही घमासान मचा हुआ है। गत चुनावों में कांग्रेस को एक तरफा जीत दिलवाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी नई पार्टी बनाकर भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया है। नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भी कांग्रेस आलाकमान की लगातार आलोचना कर रहे हैं। सिद्धू के कारण कांग्रेस को फायदा होने के बजाए नुकसान ज्यादा हो रहा है। चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए जाने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं उसका पता 10 मार्च को परिणाम वाले दिन पता चलेगा। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ सांसद मनीष तिवारी पहले ही अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस अब पूरी तरह चन्नी पर निर्भर है। एक ओर कांग्रेस की आंतरिक स्थिति कमजोर है, तो दूसरी ओर बसपा-अकाली दल तथा आम आदमी पार्टी की स्थिति पंजाब के चुनाव में लगातार मजबूत हो रही है।