जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर में करताल (छैना) बजाकर महिलाओं के साथ भजन गाए।

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर में करताल (छैना) बजाकर महिलाओं के साथ भजन गाए।
भक्ति आंदोलन के महान संत थे रविदास।
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16 फरवरी को भक्ति आंदोलन से जुड़े देश के महान संत रविदास की 645 वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के करोल बाग स्थित गुरु रविदास विश्राम धाम मंदिर में मंदिर की परंपरा के अनुरूप रस्मों को पूरा किया। पीएम मोदी जब संत रविदास की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर लौट रहे थे, तभी मंदिर परिसर में कुछ महिलाएं भजन गाते दिखाई दी। कुछ क्षण तो पीएम मोदी खड़े होकर भजन सुनने लगे, लेकिन अगले क्षण करताल (छैना) हाथ में लेकर बजाने लगे। इस बीच भक्ति भाव में डूबी एक महिला ने प्रधानमंत्री की बांह पकड़ कर कुछ समझाया भी। पीएम मोदी भी महिलाओं के साथ भक्ति भाव में डूब गए। पीएम मोदी ने रविदास जयंती पर जो सादगी और सहजता दिखाई, उससे मंदिर प्रबंधन के पदाधिकारी भी गदगद हो गए। 645 वीं जयंती पर पीएम मोदी मंदिर में जाकर संत रविदास को नमन करना बहुत मायने रखता है। हो सकता है कि कुछ लोग पीएम के इस कार्य को पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनाव से जोड़ दें, लेकिन इतिहास गवाह है कि संत रविदास ने भारत के हिन्दू समाज को तब एकजुट किया, जब मुस्लिम आक्रमणकारी हमारी सनातन संस्कृति को क्षति पहुंचा रहे थे। जातियों में विभाजित हिन्दू समाज को अपने दोहों से रविदास ने एकजुट किया। अपने परिवार के परंपरागत जूते बनाने के कार्य को करने में भी रविदास ने कभी शर्म महसूस नहीं की। संत रविदास का मानना रहा कि कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर छोटा बड़ा, ऊंचा नीचा, नहीं होता। वर्ण का निर्धारण व्यक्ति के कर्म तय करते हैं। संत रविदास ने ही कहा कि सभी धर्मों का ईश्वर एक ही है। सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने में रविदास के लिखे दोहों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। रविदास से जुड़ी घटनाएं बताती हैं कि ईश्वर का स्वरूप प्रकृति ने कभी भी ऊंच नीच का भेद नहीं किया। एक बार एक ब्राह्मण अपनी जूती की मरम्मत करवाने आया। जाते वक्त रविदास ने पूछा आप कहा जा रहे हैं? ब्राह्मण ने कहा कि गंगा स्नान करने। रविदास ने बहुत आदर भाव से कहा कि आप जब स्नान करें तो मेरा यह एक पैसा भी गंगा मां को अर्पित कर दें। गंगा मां मेरा पैसा अपने हाथ में लेंगी। रविदास के इस भरोसे पर ब्राह्मण को आश्चर्य हुआ। ब्राह्मण का कहना रहा कि मैं प्रतिदिन पूजा पाठ कर गंगा में स्नान करता हंू लेकिन आज तक भी गंगा मां ने मेरी सामग्री हाथ में नहीं ली तो इस चर्मकार की कैसे स्वीकारेंगी?
लेकिन जब ब्राह्मण ने रविदास का एक पैसा गंगा के पानी में अर्पित किया तो वाकई मां गंगा का एक हाथ बाहर निकाल आया। चर्मकार रविदास का एक पैसा मां गंगा ने अपने हाथ में लिया और दूसरे हाथ से सोने का कंगन ब्राह्मण के हाथ में रख दिया। कायदे से यह कंगन ब्राह्मण रविदास को देना था, लेकिन दरबार में वाहवाही लूटने के लिए ब्राह्मण ने सोने का कंगन राजा को दे दिया। राजा ने अपनी पत्नी को दिया तो पत्नी ने एक और कंगन की मांग राजा के सामने रख दी। ब्राह्मण से कहा गया कि यदि ऐसा कंगन नहीं आया तो मृत्युदंड मिलेगा। तब ब्राह्मण को सारी बात रविदास को बतानी पड़ी। रविदास इस बात से ही खुश थे कि मां गंगा ने उनका एक पैसा अपने हाथ में ले लिया। ब्राह्मण द्वारा सोने का कंगन नहीं दिए जाने का रविदास को कोई अफसोस नहीं था। इसे रविदास की महानता और उदारता ही कहा जाएगा कि ब्राह्मण को मृत्यु दंड से बचाने के लिए रविदास ने दोबारा से एक पैसा ब्राह्मण को दिया ताकि मां गंगा से दूसरा कंगन लिया जा सके। रविदास की भक्ति में इतनी शक्ति थी कि मां गंगा को एक पैसे की एवज में सोने का दूसरा कंगन देना पड़ा। यह घटना बताती है कि ईश्वर माने जाने वाली प्रकृति ने कभी भी मनुष्य में भेदभाव नहीं किया। भले ही कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ की खातिर समाज में भेदभाव किया हो, यही वजह है कि आज 600 वर्ष बाद भी संत रविदास के दोहों की प्रासंगिकता बनी हुई है।