Russia Ukraine crisis : युद्धग्रस्त यूक्रेन से भारतीय छात्रों को सुरक्षित निकालने की मुहिम और तेज। 5 मार्च तक 15 हजार छात्र आ जाएंगे।

जब इराक और अफगानिस्तान में मुसलमान को मारा गया, तब क्या अमेरिका युद्ध का अपराधी नहीं था?
1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में अकेला रूस, भारत का समर्थक था।
युद्धग्रस्त यूक्रेन से भारतीय छात्रों को सुरक्षित निकालने की मुहिम और तेज। 5 मार्च तक 15 हजार छात्र आ जाएंगे।
जयपुर लौटी छात्रों ने कहा कि तिरंगा ही हमारा बचाव रहा।
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रूस ने यूक्रेन पर जो सैन्य कार्यवाही की उसका 3 मार्च को 8वां दिन रहा। रूस ने यूक्रेन के कई बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया है। रूस ने गोलाबारी कर यूक्रेन को भारी क्षति पहुंचाई है। रूस, यूक्रेन में घुसकर हमला कर रहा है। जबकि रूस पर मिसाइल दागने की हिम्मत अभी तक यूक्रेन ने नहीं दिखाई है। भले ही यूरोपियन देशों से यूक्रेन को हथियार मिल रहे हैं। रूस ने यूक्रेन में जो तबाही मचाई है, उसे देखते हुए अमेरिका और नाटो देशों ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में युद्ध अपराधी का मुकदमा चलाने की मांग की है। अमेरिका का बस चले तो पुतिन को गिरफ्तार कर फांसी पर चढ़ा दे। लेकिन सवाल उठता है कि जब इराक और अफगानिस्तान में अमेरिका ने घुसकर हजारों मुसलमानों को मारा, तब क्या युद्ध अपराध नहीं था? यदि इराक और अफगानिस्तान में मुसलमानों को मारने के बाद भी अमेरिका लोकतंत्र का झंडा बरदार बना रह सकता है तो फिर रूस और उसके राष्ट्रपति यूक्रेन हमले को लेकर युद्ध के अपराधी कैसे हो सकते हैं? जो कृत्य अमेरिका ने इराक और अफगानिस्तान में किए, वहीं अब रूस यूक्रेन में कर रहा है। रूस को दादागिरी का रास्ता तो अमेरिका ने ही दिखाया हैे। अलबत्ता अमेरिका फिलहाल यह समझदारी दिखा रहा है कि रूस के विरुद्ध कोई सैन्य कार्रवाई नहीं कर रहा है। यदि अमेरिका कोई सैन्य कार्यवाही करता है तो विश्व युद्ध छिड़ जाएगा। अमेरिका ने अभी जो रणनीति अपनाई है उससे अमेरिका को भारी मुनाफा हो रहा है। यूक्रेन की मदद के लिए नाटो देश बड़ी मात्रा में हथियार भेज रहे हैं। स्वाभाविक है कि नाटो देश अपने शस्त्र भंडारों के लिए अमेरिका से और हथियार खरीदेंगे। यानी इस युद्ध में भी अमेरिका को फायदा हो रहा है।
रूस अकेला समर्थक:
सब जानते हैं कि जब पाकिस्तान बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) के नागरिकों पर अत्याचार कर रहा था, तब 1971 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना को भेज कर बांग्लादेश के नागरिकों को पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। उस समय भी संयुक्त राष्ट्र संघ में अफरा तफरी मची। अमेरिका की शह पर अनेक देशों ने भारत की इस कार्यवाही की निंदा की। इसे दूसरे देश में दखल माना गया। लेकिन तब अकेला सोवियत रूस था जो भारत के समर्थन में खड़ा था। तब रूस ने पाकिस्तान में भारत के दखल को समर्थन दिया था। आज भले ही भारत यूक्रेन पर सैन्य कार्यवाही को लेकर रूस का समर्थन न कर रहा हो, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठकों में रूस के विरुद्ध रखे गए निंदा प्रस्ताव का समर्थन भी नहीं कर रहा है। 3 मार्च को तीसरी बार संयुक्त राष्ट्र संघ ने रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव रखा गया, लेकिन भारत उन 33 देशों में शामिल रहा जिन्होंने प्रस्ताव पर वोटिंग के समय अनुपस्थिति दर्ज करवाई। हालांकि निंदा प्रस्ताव के समर्थन में 141 वोट पड़े।
छात्रों को लाने की मुहिम तेज
यूक्रेन के युद्ध ग्रस्त क्षेत्रों में जो भारतीय छात्र फंसे हुए हैं, उन्हें लाने की मुहिम और तेज हो गई है। यूक्रेन के सीमा से लगे पौलेंड, रोमानिया, हंगरी आदि देशों में भारत के विमान तैयार है, जो फंसे हुए छात्रों को लाने का काम कर रहे हैं। इन देशों से भारतीय विमानों का आना लगातार जारी है। 3 मार्च को भी करीब दो हजार छात्रों को भारत लाया गया। उम्मीद है कि 5 मार्च तक 15 हजार छात्रों को यूक्रेन से भारत ले आया जाएगा। युद्ध ग्रस्त क्षेत्रों से सीमावर्ती देशों तक छात्रों को लाने में भारतीय दूतावास लगातार सक्रिय है। 3 मार्च को भारत के विदेश मंत्रालय ने खबरों का खंडन किया है जिनमें यूक्रेन में भारतीय छात्रों को बंधक बनाने की बात कही गई थी। मंत्रालय का कहना है कि यूक्रेन में एक भी छात्र बंधक नहीं है।
तिरंगा ही बचाव:
3 मार्च को जयपुर लौटे कई छात्रों ने बताया कि यूक्रेन के युद्धग्रस्त क्षेत्रों में भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा ही बचाव का एकमात्र साधन है। जिन छात्रों के पास तिरंगा होता है, उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने में रूस और यूक्रेन की सेना भी सहयोग करती है। छात्रों ने कहा कि यूक्रेन से निकल कर जब हम सीमावर्ती देशों में आए हैं,तब से किसी भी प्रकार की परेशानी महसूस नहीं हुई है। भारत सरकार के अधिकारी लगातार हमारी सुविधाओं का ख्याल रख रहे हैं। सभी छात्रों को भारत में उनके घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था भी निशुल्क की गई है। वायुसेना के विमान में आने वाले किसी भी छात्र से एक रुपया भी नहीं लिया जा रहा है।