तो फिर राष्ट्रपति जेलेंस्की ने अपने देश को बर्बाद क्यों करवाया?

यूक्रेन अब यूरोपियन यूनियन (नाटो) का सदस्य नहीं बनना चाहता।

तो फिर राष्ट्रपति जेलेंस्की ने अपने देश को बर्बाद क्यों करवाया?

रूस-यूक्रेन युद्ध के खत्म होने के आसार।

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9 मार्च को अमेरिका के एक मीडिया समूह को दिए इंटरव्यू में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा है कि अब यूरोपियन यूनियन (नाटो) का सदस्य बनने में यूक्रेन की कोई रुचि नहीं है। वे एक ऐसे देश के राष्ट्रपति नहीं कहलाना चाहते हैं जो दूसरों के सामने गिड़गिड़ाए। वे रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ बिना शर्त बात करने को तैयार है। इस इंटरव्यू के बाद सवाल उठता है कि जेलेंस्की ने आखिर यूक्रेन को बर्बाद क्यों करवाया? रूस की सैन्य कार्यवाही के मुकाबले यूक्रेन की कोई ताकत नहीं थी, लेकिन फिर भी जेलेंस्की ने पुतिन को चुनौती दी। रूस की सैन्य कार्यवाही का मुख्य कारण यूक्रेन नाटो का सदस्य बनने की जिद थी।
रूस नहीं चाहता था कि सदस्य बनने के बाद नाटो देशों की सेनाएं यूक्रेन में आए। यदि नाटो की सेनाएं यूक्रेन में आती तो फिर रूस को खतरा उत्पन्न हो जाता। यूक्रेन की सीमा रूस से लगी हुई है। लेकिन रूस की चेतावनियों की परवाह किए बगैर यूक्रेन अपनी जिद पर कायम रहा। अब जब पिछले 13 दिनों में रूस की सेना ने यूक्रेन को बर्बाद कर दिया है, जब जेलेंस्की का कहना है कि अब वे नाटो का सदस्य नहीं बनना चाहते। असल में रूस की सैन्य कार्यवाही से यूक्रेन के 20 लाख नागरिकों को पड़ोसी देशों में शरण लेनी पड़ी है।
अस्पताल, यूनिवर्सिटी, सरकारी इमारत आदि खंडहर में तब्दील हो गई है। इतना ही नहीं यूक्रेन को सैन्य दृष्टि से भी भारी नुकसान हुआ है। इन 13 दिनों में यूक्रेन के दो प्रांतों को आजाद भी घोषित कर दिया गया है। यानी इतनी बर्बादी के बाद यूक्रेन अब रूस के सामने सरेंडर होने की बात कह रहा है।
जेलेंस्की के इस सरेंडर को रूस कब स्वीकार करता है यह आने वाले दिनों में पता चलेगा, लेकिन जानकारों का मानना है कि रूस फिलहाल जेलेंस्की से कोई वार्ता नहीं करेगा, क्योंकि उसका मकसद अब जेलेंस्की को राष्ट्रपति के पद से हटाना है।
लेकिन जेलेंस्की ने जिस तरह सरेंडर किया है उससे माना जा रहा है कि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध जल्द खत्म हो सकता है। असल में जेलेंस्की को यूरोप और अमेरिका से मदद का भरोसा था, लेकिन रूस की सैन्य कार्यवाही को देखते हुए किसी भी देश ने यूक्रेन की मदद नहीं की। कुछ देशों ने सैन्य सामग्री तो यूक्रेन को दी, लेकिन अपने सैनिक नहीं भेजे। ऐसे में यूक्रेन रूस की सैन्य कार्यवाही का मुकाबला नहीं कर सका। यूक्रेन की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 13 दिनों में यूक्रेन ने एक भी मिसाइल रूस पर नहीं दागी है। यूक्रेन के अंदर रूस के जो टैंक, हेलीकॉप्टर आदि आए उन्हें ही निशाना बनाया गया। हालांकि रूस ने अपने नुकसान की परवाह किए बगैर यूक्रेन पर हमले जारी रखे।