रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्युटिकल विभाग ने परामर्श के लिए ‘राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति 2022 मसौदा’ पर दृष्टिकोण पत्र जारी किया

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) ने अपनी वेबसाइट पर राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति 2022 के मसौदा पर दृष्टिकोण पत्र जारी किया है जिस पर उद्योग और हितधारकों की प्रतिक्रिया और टिप्पणियों को 25 मार्च 2022 तक आमंत्रित किया गया है। चिकित्सा उपकरण उद्योग के पहलुओं को बढ़ावा देने की जरूरत के अनुरूप, फार्मास्युटिकल विभाग ने चिकित्सा उपकरण क्षेत्र के विकास में तेजी लाने और इसकी क्षमता का पता लगाने के लिए एक समग्र नीति की आवश्यकता को महसूस करते हुए हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद इस दृष्टिकोण पत्र को प्रकाशित किया है। चिकित्सा उपकरणों के इस उभरते क्षेत्र को लोकप्रिय रूप से मेडटेक सेक्टर कहा जाता है। 2025 तक इस क्षेत्र के बाजार आकार के मौजूदा 11 बिलियन अमरीकी डालर से 50 बिलियन अमरीकी डालर तक बढ़ने की उम्मीद है।

भारत में चिकित्सा उपकरण क्षेत्र भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग है, खासकर सभी चिकित्सा स्थितियों, रोगों, बीमारियों, और दिव्यांगताओं की रोकथाम, निदान, उपचार और प्रबंधन के लिए। चिकित्सा उपकरण क्षेत्र 2017 तक काफी हद तक अनियंत्रित रहा है जब सीडीएससीओ ने चरणबद्ध तरीके से चिकित्सा उपकरणों के समग्र विनियमन के लिए चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 तैयार किया गया था। यह विशेष रूप से ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक अधिनियम, 1940 के तहत गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता पहलुओं पर केंद्रित था।

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चिकित्सा उपकरण एक बहु-उत्पाद क्षेत्र है, जिसमें निम्नलिखित व्यापक वर्गीकरण किए गए हैं: (ए) इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण; (बी) प्रत्यारोपण; (सी) उपभोग्य सामग्री (कन्ज्यूमेबल) और उपभोग करके फेंकने योग्य सामग्री (डिस्पोजेबल); (डी) आईवीडी अभिकर्मक (रिएजेंट्स); और (ई) सर्जिकल उपकरण। भारतीय चिकित्सा उपकरण बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की खासी मौजूदगी है, जिनकी बिक्री का लगभग 80% आयातित चिकित्सा उपकरणों से उत्पन्न मूल्य से है। भारतीय चिकित्सा उपकरण क्षेत्र का योगदान और भी प्रमुख हो गया है क्योंकि भारत ने वेंटिलेटर, आरटी-पीसीआर किट, आईआर थर्मामीटर, पीपीई किट और एन -95 जैसे चिकित्सा उपकरणों और डायग्नोस्टिक किट के उत्पादन के माध्यम से कोविड-19 महामारी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में काफी मदद की थी।

इस क्षेत्र को अपनी विविध प्रकृति, निरंतर नवाचार और भिन्नता के कारण उद्योग और हितधारकों के बीच विशेष समन्वय और संचार की आवश्यकता है। विभाग का इरादा चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण और चिकित्सा उपकरण पार्क को बढ़ावा देने के लिए पीएलआई योजना जैसे विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाबद्ध हस्तक्षेपों के माध्यम से चिकित्सा उपकरणों के घरेलू निर्माण को प्रोत्साहित करना है। यह महसूस करते हुए कि इस क्षेत्र को उन नियामकों के बीच उच्च स्तर के समन्वय की जरूरत है, जिनके पास एक विशिष्ट कानूनी कार्य है, लेकिन वे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, उपभोक्ता कार्य विभाग, परमाणु ऊर्जा विनियमन बोर्ड, राष्ट्रीय जैविक संस्थान, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय आदि जैसे विभिन्न विभागों में फैले हुए हैं। फार्यास्यूटिकल विभाग ने स्टैंडिंग फोरम, रेगुलेटरी राउंड टेबल इत्यादि जैसे संस्थागत व्यवस्थाओं के माध्यम से कई मुद्दों को हल करने के प्रयास में लगा हुआ है।

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प्रस्तावित नीति एक सुसंगत नीतिगत ढांचे के माध्यम से क्षेत्र के निरंतर वृद्धि और विकास को सुनिश्चित करने और नियामक तालमेल, मानव संसाधनों को कुशल बनाने और आधुनिक उपकरणों एवं उपयुक्त बुनियादी ढांचे के लिए प्रौद्योगिकी की कमी जैसी क्षेत्र की आगे की चुनौतियों को दूर करने के लिए उपायों के एक व्यापक सेट को स्थापित करने का एक प्रयास है।

राष्ट्रीय नीति के मसौदे का उद्देश्य आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र के व्यवस्थित विकास को सुगम बनाना है। यह नीति जहां चिकित्सा उपकरणों की सुलभता, खर्च वहनीयता, सुरक्षा और गुणवत्ता के मुख्य उद्देश्यों को पूरा करती है वहीं यह स्व-स्थायित्व और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करती है। इसकी मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं;

 

इस नीति की परिकल्पना है कि 2047 तक हमारा देश

मसौदा नीति को https://pharmaceuticals.gov.in/policy  पर देखा जा सकता है।

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