गांधी के नाम के बगैर कांग्रेस का सांस लेना मुश्किल।

गांधी के नाम के बगैर कांग्रेस का सांस लेना मुश्किल।

मल्लिकार्जुन खड़गे, अशोक गहलोत जैसे उपकृत नेता तो गांधी परिवार के साथ ही रहेंगे।
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13 मार्च को दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में पांच राज्यों की करारी हार पर मंथन हुआ, यह तो मल्लिकार्जुन खडग़े और अशोक गहलोत जैसे नेता ही जाने, लेकिन बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी ही संभालें। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का तो कहना रहा कि राहुल गांधी अकेले ऐसे कांग्रेसी हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर सकते हैं। कांग्रेस को सबसे कमजोर स्थिति में जाने में मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनकी संतानें राहुल गांधी व प्रियंका गांधी का कितना दोष है, इसकी समीक्षा तो कांग्रेस के अंकदर ही बने असंतुष्ट जी-23 समूह के नेता करेंगे, लेकिन यह सही है कि गांधी नाम के बगैर कांग्रेस का सांस लेना मुश्किल है। राहुल और प्रियंका अपने नाम के साथ सरनेम गांधी क्यों लगाते हैं, मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता, लेकिन कांग्रेस के वजूद को बनाए रखने में गांधी सरनेम की जरूरत है।
यदि गांधी परिवार से कांग्रेस को बाहर निकाला गया तो फिर कांग्रेस के साथ गांधी नाम भी छीन जाएगा। असल में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अपने नाम के साथ गांधी सरनेम लगा कर कांग्रेस को महात्मा गांधी से जोड़ते हैं। इसलिए राहुल बार बार कहते हैं कि हमारी विचारधारा महात्मा गांधी वाली है और भाजपा व आरएसएस की विचारधारा नाथूराम गोडसे वाली है। महात्मा गांधी के नाम का लाभ लिया जा सके, इसलिए कांग्रेस को गांधी परिवार की जरूरत है। कांग्रेस के गांधी सरनेम का लाभ सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ही दिलवा सकते हैं। यदि कांग्रेस को गांधी सरनेम से बाहर निकाला गया तो कांग्रेस के लिए सांस लेना भी मुश्किल हो जाएगा। कांग्रेस का बचा खुचा वजूद गांधी परिवार से ही है।
खडग़े और गहलोत का वजूद गांधी परिवार से:
गांधी परिवार यदि मल्लिार्जुन खडग़े और अशोक गहलोत को उपकृत नहीं करता तो कांग्रेस के असंतुष्ट गुट का नाम जी-25 होता। सब जानते हैं कि खडग़े गत लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता थे, लेकिन 2019 के चुनाव में खडग़े लोकसभा का चुनाव हार गए। लेकिन गांधी परिवार ने खडग़े को राज्यसभा का सांसद बनवाया और राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनवा कर खडग़े के राजनीतिक वजूद को कायम रखा। सवाल उठता है कि क्या राज्यसभा में कोई ऐसा सांसद नहीं था, जिसे कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाया जाता? आखिर क्यों लोकसभा का चुनाव हारे हुए खडग़े को ही राज्यसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया गया?
गांधी परिवार ने अपने नजरिए से ही लोकसभा में अधीर रंजन चौधरी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाया। लोकसभा में चौधरी की उछल कूद किसी से छिपी नहीं है। ये वे ही अधीर रंजन चौधरी है जिनके नेतृत्व में गत वर्ष पश्चिम बंगाल में विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन कांग्रेस को 274 में से एक भी सीट नहीं मिली। इसी प्रकार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भी स्थिति हे। गहलोत तीन बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन गांधी परिवार ने तीनों बार कांग्रेस के किसी न किसी कद्दावर नेता का हक मारा।
पहली बार प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष परसराम मदेरणा तो दूसरी बार सीपी जोशी की दावेदारी को नजरअंदाज कर गहलोत को सीएम पद दिया गया। 2018 में सचिन पायलट की दावेदारी तो जग जाहिर है। इस स्थिति में खडग़े और गहलोत जैसे नेता गांधी परिवार के गुणगान तो करेंगे। गांधी परिवार ने खडग़े और गहलोत को कभी असंतुष्ट होने ही नहीं दिया। यह बात अलग है कि ऐसे नेताओं की वजह से ही आज कांग्रेस रसातल में पहुंची है। गहलोत जब जब भी मुख्यमंत्री बने हैं, तब तब राजस्थान में कांग्रेस को बुरी हार मिली है।