यह सही है कि कश्मीर में मुसलमान भी मारे गए। लेकिन क्या मुसलमानों को हिन्दुओं ने मारा?

यह सही है कि कश्मीर में मुसलमान भी मारे गए। लेकिन क्या मुसलमानों को हिन्दुओं ने मारा?
हिन्दू तो अजमेर में ख्वाजा साहब की मजार पर सजदा करता है।
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द कश्मीर फाइल्स फिल्म को लेकर इन दिनों टीवी चैनलों और मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर जबरदस्त बहस हो रही है। चैनलों के स्टूडियो में जब पीड़ित हिन्दू रोते हैं तो धर्मनिरपेक्षता और संविधान की दुहाई देने वालों का तर्क होता है कि कश्मीर में बड़ी संख्या में मुसलमान भी मारे गए हैं। इसलिए मुसलमानों के दर्द को भी बताया जाना चाहिए, लेकिन द कश्मीर फाइल्स फिल्में सिर्फ हिन्दुओं के दर्द को ही दिखाया गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कश्मीर की हिंसा में बड़ी संख्या में मुसलमान भी मारे गए हैं लेकिन सवाल उठता है कि क्या किसी हिन्दू या फिर हिन्दुओं के समूह ने किसी मुसलमान को मारा? क्या किसी मंदिर के माइक से मुसलमानों को कश्मीर छोड़ने की चेतावनी दी गई? क्या किसी मुसलमान परिवार के घर के बाहर कोई आदेश मौत का फरमान चस्पा किया गया? क्या किसी मुस्लिम महिला के साथ उसके परिवार के पुरुष सदस्यों के सामने कोई ज्यादती हुई? इन सब सवालों का जवाब न में ही मिलेगा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कश्मीर में मुसलमानों को किसने मारा? इसका जवाब धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ने वालों को पता है, लेकिन वो सच्चाई नहीं बोलते असल में कश्मीर से चार लाख हिन्दुओं को भगाने में पाकिस्तान से आए जिहादियों की भूमिका रही। जब जेहादी हिन्दुओं पर अत्याचार कर रहे थे, तब कश्मीर के मुसलमान चुपचाप तमाशा देखते रहे। किसी ने भी हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों का विरोध नहीं किया। जब जेहादियों ने कश्मीर से सभी हिन्दुओं को भगा दिया, तब जेहादियों ने कश्मीरी मुसलमानों को भी मारा।
कश्मीर की आजादी का ख्वाब लेकर पाकिस्तान से जिहादियों ने अपने मकसद में कामयाबी के लिए कश्मीरी मुसलमानों को भी नहीं बख्शा। यदि कश्मीर से अनुच्छेद 370 को नहीं हटाया जाता तो कश्मीर को जिहादियों के चंगुल से निकालना मुश्किल था। अब जब धीरे धीरे हिन्दुओं की वापसी हो रही है तो कश्मीर में मुसलमान भी सुकून के साथ रहने लगा है। कश्मीर के विकास में हिन्दुओं की हमेशा से ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज भी यदि कश्मीरी मुसलमान अपने हिंदू भाइयों का समर्थन करें तो कोई जेहादी जम्मू कश्मीर का अमन चैन नहीं छीन सकता है। द कश्मीर फाइल्स फिल्म को देखने के बाद धर्मनिरपेक्षता के चेहरे वाले लेखकों, बुद्धिजीवियों आदि को हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों का विरोध करना ही चाहिए। मौत किसी की भी  हो परिवार के लिए दुखदायी होती है। यदि 90 के दशक में हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों का विरोध किया जाता तो जिहादियों के हाथों कश्मीरी मुसलमान भी नहीं मारे जाते।
हिन्दू तो सजदा करता है:
जो लोग कश्मीर में हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों पर पर्दा डालना चाहते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि हिन्दू समुदाय तो अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में सूफी परंपरा के अनुरूप सजदा भी करता है। यह सजदा तब भी जारी था, जब 90 के दशक में कश्मीर में हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहे थे। धर्म निरपेक्षता के झंडाबरदारों को एक दिन अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह के बाहर आकर बैठना चाहिए और जियारत करने वाले हिन्दू की संख्या का पता लगाना चाहिए। जो हिन्दू ख्वाजा साहब की मजार पर सजदा करता है वह किसी मुसलमान को कैसे मार सकता है? फिल्म में जो सच्चाई दिखाई गई है उसे धर्म निरपेक्षता का चोला ओढ़ने वालों को स्वीकार करना चाहिए। यदि हिन्दू और मुसलमान मिल कर रहेंगे, तभी यह देश बच सकता है। जिहाद के नाम पर हिंसा करने वाले लोग मुसलमानों को भी नहीं बख्शेंगे। देश के आम मुसलमान को कश्मीर की घटना से सबक लेना चाहिए।