केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, भविष्य प्रौद्योगिकी संचालित अर्थव्यवस्था का है और देश में इनोवेशन इकोसिस्टम बनाने की जरूरत है

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक और लोक शिकायत राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि भविष्य प्रौद्योगिकी संचालित अर्थव्यवस्था का है।

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस 2022 समारोह, जो संयोग से 11 मई, 1998 को पोखरण में परमाणु विस्फोट के बाद भारत के परमाणु संपन्न देश बनने के अवसर पर मनाया जाता है, को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत पहले से ही उदय की ओर उन्मुख है और विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार अगले 25 वर्ष में जब हम आजादी के 100 साल का उत्सव मनाएंग तब तक के रोडमैप के प्रमुख निर्धारक हैं। उन्होंने कहा कि स्टार्ट-अप्स के लिए ’इनोवेशन इकोसिस्टम’ बनाने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि देश में प्रतिभा और संसाधनों की कोई कमी नहीं है। इसके लिए मंत्री ने साइलो में अर्थात अलग-अलग काम करने के बजाय एकीकरण के दृष्टिकोण को अपनाने पर जोर दिया।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने क्वांटम डेटा सुरक्षा, कोविड परीक्षण किट, इलेक्ट्रॉनिक असेंबली के लिए एआई संचालित रोबोट, क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकियों और साइबर सुरक्षा प्रणालियों जैसे क्षेत्रों में अपने पथप्रदर्शक काम के लिए 7 सबसे सफल स्टार्ट-अप को भी पुरस्कार प्रदान किए। यह पुरस्कार व्यावसायीकरण की क्षमता के साथ स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास के लिए  प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप को दिया जाता है और पुरस्कार में ट्रॉफी के अलावा 15 लाख रुपये का नकद पुरस्कार शामिल है। डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने ट्रांसलेशनल रिसर्च में महिला वैज्ञानिकों और महिला उद्यमियों को भी पुरस्कार दिए। इसके अलावा स्वदेशी प्रौद्योगिकी के सफल व्यावसायीकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार और एमएसएमई श्रेणी के तहत भी पुरस्कार प्रदान किए।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के लिए स्टार्ट-अप और महिला उद्यमियों दोनों की काफी उच्च प्राथमिकता है और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग उनकी पूरी क्षमता से उन्हें बढ़ावा देने के लिए सभी कदम उठा रहा है। स्टार्ट-अप्स के पास सक्रिय रूप से पहुंचकर उन्हें पूर्ण समर्थन देने का वचन देते हुए डॉ. सिंह ने पूर्ण वित्तीय सहायता देने का वादा किया और समर्थन प्रणाली को मजबूत करने के लिए नियमों को बदलने की भी पेशकश की।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस अवसर पर एसएसआर और श्रीमान दिशानिर्देशों भी लांच किए। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक सामाजिक जिम्मेदारी यानी एसएसआर एक संस्थागत तंत्र के रूप में, ज्ञान, मानव संसाधन और बुनियादी ढांचे के साथ विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के हितधारकों के व्यापक विस्तार तक पहुंचने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। समाज के लाभ के लिए मौजूदा संपत्ति का प्रभावी उपयोग करना। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक सेवा के लिए कुछ लाभ निर्धारित करने के लिए सीएसआर की भावना के अनुरूप, एसएसआर ज्ञान और बुनियादी ढांचे को साझा करने में सक्षम करना होगा।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने याद दिलाई कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 2017 में तेलंगाना स्थित तिरुपति में 104वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन भाषण के दौरान सामाजिक कल्याण के लिए विज्ञान को शामिल करने के लिए वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (एसएसआर) की वकालत की थी।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (एसएसआर) दिशानिर्देशों का व्यापक उद्देश्य विज्ञान और समाज के संबंधों को मजबूत करने के लिए स्वैच्छिक आधार पर वैज्ञानिक समुदाय की गुप्त क्षमता का दोहन करना है और इस तरह एस एंड टी इकोसिस्टम को सामाजिक जरूरतों के लिए उत्तरदायी बनाना है। इसमें मुख्य रूप से विज्ञान-समाज, विज्ञान-विज्ञान और समाज-विज्ञान की खाई को पाटना शामिल है, जिससे सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में विज्ञान के प्रति विश्वास, साझेदारी और जिम्मेदारी त्वरित गति से आती है। उन्होंने कहा कि एसएसआर गतिविधियों से ज्ञान कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत के माध्यम से समुदायों, समूहों, संस्थाओं या व्यक्तियों को लाभ हो रहा है।

साइंटिफिक रिसर्च इन्फ्रास्ट्रक्चर शेयरिंग मेंटेनेंस एंड नेटवक्र्स (श्रीमान) दिशानिर्देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि वैज्ञानिक बुनियादी ढांचा अनुसंधान और नवाचार की नींव है और इसकी उपलब्धता, पहुंच तथा साझेदारी की सुविधा को विशेष रूप से भारत जैसे सीमित संसाधनों वाले देशों का एक प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि एक नया दृष्टिकोण अपनाने के उद्देश्य से, जो सभी हितधारकों के लिए अनुसंधान अवसंरचना (आरआई) उपलब्ध करा सके, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने विस्तृत हितधारक परामर्श के माध्यम से वैज्ञानिक अनुसंधान अवसंरचना साझा रखरखाव और नेटवर्क (श्रीमान) दिशानिर्देशों का एक मसौदा तैयार किया। श्रीमान दिशानिर्देशों का उद्देश्य प्रासंगिक हितधारकों का एक नेटवर्क बनाकर देशभर के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और उद्योग के पेशेवरों के लिए अनुसंधान बुनियादी ढांचे (आरआई) के कुशल उपयोग और व्यापक पहुंच को बढ़ावा देना है।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत ने हाल के वर्षों में अनुसंधान उपकरणों की खरीद में बढ़ोतरी की है और 90 फीसदी से अधिक उच्च स्तर के उपकरण आयात होने लगे हैं। इस तरह के अधिकांश उपकरणों साझा नहीं किए जाते हैं और रखरखाव की समस्याओं और पुर्जों की कमी से खराब होते हैं जिससे आरआई लागत का बोझ बढता है। इसके अलावा, उपकरण तक पहुंच और इसके उचित उपयोग पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्‍होंने कहा कि आरआई के संचालन और प्रबंधन के लिए मानव संसाधन विकास के साथ-साथ आयात पर निर्भरता कम करने के लिए स्वदेशी उपकरणों का निर्माण भी आवश्यक है।

डॉ. एस. चंद्रशेखर, सचिव, डीएसटी ने कहा कि दिशानिर्देशों का दायरा सभी सरकारी वैज्ञानिक विभागों, अनुसंधान संगठनों और अनुदान प्राप्त करने वाली एजेंसियां तक है जो वैज्ञानिक आरआई और अनुसंधान तथा विकास के संचालन के लिए धन प्राप्त करने वाले सभी संगठनों के विकास का समर्थन करती हैं। निजी संस्थान भी आपसी सहमति के आधार पर ऐसे प्रयासों में भागीदार और/या लाभार्थी हो सकते हैं।

श्री राजेश कुमार पाठक, आईपी एंड टीएएफएस, सचिव, ने कहा कि 11 मई 1998 को भारत ने भारतीय सेना की पोखरण रेंज में सफलतापूर्वक परमाणु मिसाइल परीक्षण करने की एक गौरवपूर्ण उपलब्धि हासिल की थी। वर्ष 1998 के इस गौरवपूर्ण अवसर के बाद हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को परमाणु संपन्न देश घोषित किया। तब से 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शामिल वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, इंजीनियरों और अन्य सभी की उपलब्धियों को याद करना है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार की वैधानिक निकाय टीडीबी अपने अधिदेश के आधार पर उन तकनीकी नवाचारों का सम्मान करता है जिनसे वर्ष 1999 से राष्ट्रीय पुरस्कारों के तत्वावधान में राष्ट्रीय विकास में मदद मिली है।

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