राष्ट्रीय योजना स्वीकृति समिति ने स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के अंतर्गत राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों की वार्षिक क्रियान्वयन योजना पर विचार किया

स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम-जी) चरण-II के अंतर्गत राष्ट्रीय योजना स्वीकृति समिति (एनएसएससी) की आज तीसरी बैठक में वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सभी राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों की वार्षिक क्रियान्वयन योजनाओं पर विचार किया गया। जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल तथा स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) की सचिव श्रीमती विनी महाजन की अध्यक्षता में हुई वर्चुअल बैठक में सभी राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। बैठक में एनएसएससी के सदस्य-श्री चंडी चरण डे, समन्वयकर्ता, रामकृष्ण मिशन, श्रीकांत एम. नावरेकर, निर्मल ग्राम निर्माण केन्द्र, श्री रोहित कुमार, संयुक्त सचिव एमजीएनआरईजीएस, ग्रामीण विकास मंत्रालय तथा डॉक्टर वी.के. चौरसिया, संयुक्त सलाहकार-पीएचईई (पब्लिक हेल्थ एंड इन्वायर्नमेंटल इंजीनियरिग) आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय भी उपस्थित थे।

वार्षिक क्रियान्वयन योजना तथा उसके लक्ष्यों की चर्चा करते हुए पेयजल तथा स्वच्छता विभाग की सचिव ने राज्यों से जिन घरों की ‘खुले में शौच मुक्त’ सुविधा तक अभी पहुंच नहीं है उनको प्राथमिकता देते समय ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) कार्यक्रम को बनाए रखना सुनिश्चित करने को कहा। उन्होंने पुनःसंयोजन (रेट्रोफिटिंग), कॉमन सर्विस सेंटरों के निर्माण, व्यवहार परिवर्तन संचार तथा स्वच्छता गतिविधियां चलाने को कहा ताकि सभी गांव स्वच्छ दिखें, जिससे गांव के वातावरण में नाटकीय सुधार होगा।

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श्रीमती महाजन ने बायोडिग्रेडेबल (जैवनिम्निकरणीय) अपशिष्ट प्रबंधन, धुसर जल प्रबंधन, गोबरधन, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन तथा गाद प्रबंधन के महत्व और उससे जुड़ी गतिविधियों मे तेजी लाने पर बल दिया।   

     

 

      विचार-विमर्श प्रारंभ करते हुए विशेष सचिव पेय जल तथा स्वच्छता और एसबीएम-जी के मिशन निदेशक तथा जेजेएम श्री अरुण बरोका ने एक व्यापक प्रजेंटेशन दिया जिसमें एसबीएम-जी चरण-II का विवरण दिया गया। उन्होंने ठोस तथा तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम) के लिए धन पोषण के तरीकों, महत्वपूर्ण नीतिगत कदमों तथा स्वच्छ सर्वेक्षण-ग्रामीण, फिल्म प्रतियोगिताओं, सरपंच संवादों, स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज तथा सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी जैसे प्रमुख कार्यक्रमों पर भी अपनी राय व्यक्त की।

यह सिफारिश की गई कि जिन गांवों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और तरल अपशिष्ट प्रबंधन व्यवस्था है उन्हें आसानी से ओडीएफ-पल्स मॉडल श्रेणी में बदला जा सकता है। इसके अतिरिक्त उन गांवों पर प्राथमिकता के साथ विचार किया जा सकता है जो या तो आकांक्षी हैं या जिनकी आबादी 5,000 से अधिक है। सिफारिशों में विस्तृत रूप से बायोग्रेडेबल अपशिष्ट प्रबंधन, गोबरधन, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन, धूसर जल प्रबंधन तथा गाद प्रबंधन की रणनीतियां दी गई हैं।

      वार्षिक क्रियान्वयन योजना (एआईपी) के बारे में उन्होंने विशेष रूप से आईएचएचएल, सीएससी, ओडीएफ प्लस, गांवों तथा जिलों के लिए भौतिक लक्ष्यों की एनएसएससी की स्वीकृति चाहने वाली योजना मूल्यांकन समिति (पीएसी) की टिप्पणियों और सुझावों को रेखांकित किया।

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       ग्रामीण विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री रोहित कुमार ने बायो गैस संयंत्रों, सोखने वाले गड्डों, सामुदायिक सेनेटरी परिसरों के संदर्भ में पूरे किए गए कार्यों की जानकारी दी और कहा कि सभी कार्यों के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा एमजीएनआरईजीएस के अंतर्गत धन दिए गए। दूसरी ओर, डॉक्टर चौरसियां ने सलाह दी कि राज्यों को पहले से अपनी धुसर जल प्रबंधन गतिविधियों के लिए जमीन अधिग्रहण करना चाहिए ताकि शहरी क्षेत्र के आसपास के गांव में बाधा रहित रूप से कार्य किए जा सकें।

       श्री नावरेकर ने स्थानीय भाषा में तकनीकी साहित्य प्रदान करने, किए जा रहे सभी कार्यों के बारे में उपयोगकर्ताओं को समझाने, योजनाओं को लागू करने वाले लोगों को तकनीकी प्रशिक्षण देने, राज्यस्तरीय क्षमता सृजन करने तथा प्रौद्योगिकी का ठोस क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए तीसरे पक्ष द्वारा त्वरित मूल्यांकन करने की आवश्यकता की चर्चा की।

राज्यों के प्रतिनिधियों ने आश्वासन दिया कि वे अपनी-अपनी वार्षिक क्रियान्वयन योजनाओं में निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करेंगे।

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एमजी/एएम/एजी/ओपी