एनएमसीजी ने ‘प्रज्वलित युवा मस्तिष्क, नदियों का कायाकल्प’ विषयवस्तु पर ‘विश्वविद्यालयों के साथ मासिक वेबिनार सीरिज’ का 7वां संस्करण आयोजित किया

एपीएसी न्यूज नेटवर्क की सहभागिता में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने ‘प्रज्वलित युवा मस्तिष्क, नदियों का कायाकल्प’ विषयवस्तु पर आज ‘विश्वविद्यालयों के साथ मासिक वेबिनार सीरिज’ के सातवें संस्करण का वर्चुअल रूप से आयोजन किया। इस वेबिनार की उप-विषयवस्तु ‘जैव विविधता’ थी। इस सत्र की अध्यक्षता एनएमसीजी के महानिदेशक श्री जी. अशोक कुमार ने की। वहीं इस कार्यक्रम में कई प्रमुख शिक्षकों ने हिस्सा लिया था। मोहाली स्थित रायत बाहरा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. परविंदर सिंह, पुणे स्थित डीवाई पाटिल विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. सयाली गणकर, सूरत स्थित पीपी सवानी यूनिवर्सिटी के प्रोवोस्ट (महाविद्यालय अध्यक्ष) डॉ. पराग संघानी और पटना स्थित चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान के निदेशक, प्रोफेसर व डीन अकादमिक डॉ. राणा सिंह उपस्थित थे। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश स्थित शूलिनी विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी इस वेबिनार में हिस्सा और एनएमसीजी के जैवविविधता विशेषज्ञ डॉ. संदीप बेहरा के साथ ‘गंगा की जैव विविधता’ के मुद्दे पर बातचीत की।

श्री जी. अशोक कुमार ने अपने प्रमुख भाषण में वर्षा जल संचयन के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने संस्थानों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि “परिसरों में वर्षा जल की एक बूंद भी बर्बाद न हो।” श्री कुमार ने राष्ट्रीय जल मिशन की ओर से संचालित ‘कैच द रेन’ अभियान के बारे में बात की और कहा कि आगामी मानसून के मौसम में वर्षा जल संचयन के लिए पानी की प्राकृतिक बाल्टी (विभिन्न जल निकाय) तैयार रहना चाहिए। श्री कुमार ने गंगा नदी में जैव विविधता संरक्षण की दिशा में उठाए जा रहे विभिन्न कदमों की जानकारी दी। इनमें गंगा की डॉल्फिन का संरक्षण, मत्स्यपालन, रुद्राक्ष जैसे औषधीय पौधों का रोपण आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि किसी नदी की जैव विविधता, उसके स्वास्थ्य को जानने का सबसे अच्छा संकेतक है। श्री कुमार ने युवा पीढ़ी को वृत्तीय अर्थव्यवस्था की 5R अवधारणा का अनुपालन करने का आह्वाहन किया. इसमें अपव्यय को कम करना, जल पुनर्चक्रण, जल का फिर से उपयोग, नदियों का कायाकल्प और सबसे महत्वपूर्ण-  जल का सम्मान करना शामिल है। उन्होंने कहा कि नदी कायाकल्प जैसे मुद्दों पर कॉलेज स्तर पर रुचि विकसित हो सकती है और यह महत्वपूर्ण है कि युवा पीढ़ी में जागरूकता होनी चाहिए, जो कि हमारे “परिवर्तन के दूत” हैं।

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डॉ. परविंदर सिंह ने नमामि गंगे जैसे कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए तीन पहलुओं- नीतिगत हस्तक्षेप, व्यवहार परिवर्तन और जन भागीदारी पर ध्यान केंद्रित किया. इसके अलावा उन्होंने कहा कि यह कार्य केवल एक एजेंसी की जिम्मेदारी नहीं है और राज्य व स्थानीय स्तर पर स्वामित्व जरूरी है।

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वहीं, डॉ. सयाली गणकर ने नदी कायाकल्प और जल संरक्षण के पहलुओं पर युवा पीढ़ी की ओर से रचनात्मक व अभिनव समाधानों की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि युवा मस्तिष्कों को इन क्षेत्रों का पता लगाने और विश्वविद्यालयों में प्रयोगात्मक केंद्र व अभिनव समाधान बनाने के मामले में सभी को एक साथ आने की जरूरत है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नदियों से संबंधित नैतिक मूल्यों का अनुपालन किया जाना चाहिए और नदियों को सम्मान के साथ देखा जाना चाहिए।

 

 

डॉ. पराग संघानी ने जल और नदी प्रदूषण की समस्याओं के सस्ते समाधान के लिए शैक्षणिक संस्थानों का उपयोग करने की संभावना को रेखांकित किया। उन्होंने स्थानीय मानकों को विकसित करने और स्थानीय समस्याओं के स्थानीय समाधान खोजने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने युवा पीढ़ी से जुड़ने और ऐसे कार्यक्रमों को जन आंदोलनों में बदलने के लिए डिजिटल मंच के उपयोग की भी पैरवी की।

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एमजी/एमए/एचकेपी