जिनेवा में आयोजित 12वें विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में जी-33 मंत्रिस्तरीय बैठक में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल का संबोधन

बहुत-बहुत धन्यवाद अध्यक्ष महोदय। मंत्रीगण, महामहिम, गणमान्‍य प्रतिनिधिगण, देवियो और सज्‍जनो। मैं एमसी-12 की शुरुआत में जी-33 बैठक आयोजित करने के लिए इंडोनेशिया को धन्यवाद देना चाहता हूं जिसकी वजह से हमें अपनी एकजुटता को फिर से मजबूत करने का अवसर मिला। यह स्पष्ट है कि इस बार के एजेंडे में शामिल मुख्य रूप से दो बिन्दुओं सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग के समाधान और विशेष सुरक्षा तंत्र पर विचार करेंगे, जिसके बारे में मेरे पहले के कई वक्ताओं ने चर्चा की है।

सबसे पहले, मैं यह कहना चाहूंगा कि बेहतर होता अगर महानिदेशक भी विकासशील देशों की चिंताओं को सुनने के लिए उपस्थित होतीं और मुझे लगता है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपनी संक्षिप्त टिप्पणियों में उन्होंने एक ऐसे निर्णय का उल्लेख किया है जोकि एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि तीन बार सिर्फ एक पुनरावृत्ति के रूप में किया गया है और मैं अध्यक्ष से यह बताने का आग्रह करूंगा कि क्या यहां उपस्थित हमारे सभी मित्र इससे सहमत हैं कि यह एक घोषणा नहीं थी, बल्कि एक निर्णय था जो 2013 में, फिर 2015 में और फिर 2018 में किया गया था, जिसके बारे में हम यहां चर्चा करने के लिए बैठे हैं।

भारत के पास एक खाद्यान्न की कमी वाले राष्ट्र से खाद्यान्न के मामले में व्यापक पैमाने पर एक आत्मनिर्भर खाद्य राष्ट्र बनने का अनुभव रहा है। सब्सिडी एवं अन्य सरकारी उपायों के रूप में हमारे राजकीय समर्थन ने इस आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हम अपनी यात्रा एवं अपने अनुभवों के आधार पर सामूहिक रूप से एलडीसी सहित सभी विकासशील देशों के हितों के लिए लड़ रहे हैं।

आइए अब तक की कहानी पर नजर डालते हैं। यह कहानी उरुग्वे दौर से शुरू होती है, जहां मेरी समझ से 1994 तक आठ साल की लंबी बातचीत के बाद मारकेश समझौते पर अंततः निर्णय लिया गया और विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई। कृषि के साथ अनुचित व्यवहार हुआ- असंतुलित नतीजे मिले और जो लोग आयात सब्सिडी देकर बाजारों को खराब कर रहे थे, वे कृषि संबंधी समझौते (एओए) के तहत निर्यात सब्सिडी जारी रखने की सुविधा पा गए। उस समय हम में से कई, बल्कि हम में से अधिकांश कम विकसित या सबसे कम विकासशील देश होने के कारण सब्सिडी नहीं दे रहे थे, इसलिए चूंकि हम आधार अवधि में सब्सिडी नहीं दे रहे थे, इसलिए हमने भविष्य में महत्वपूर्ण सब्सिडी देने का अधिकार खो दिया। इसके अलावा, समझौते के नियम बड़े पैमाने पर विकसित देशों के सामाजिक-आर्थिक संरचना के अनुकूल थे। विकसित दुनिया के लिए सब्सिडी के उच्च अधिकार को संस्थागत रूप दे दिया गया था और उस समय बाजार मूल्य समर्थन की गणना की विधि बेहद ही त्रुटिपूर्ण और ठहरी हुई थी।

एलडीसी सहित विकासशील देशों को हमेशा परेशानी झेलनी पड़ती हैं, हमें समझौता करने के लिए मजबूर किया जाता है, कभी-कभी एक ही विषय पर कई बार बहस होती है और कई मौकों पर जिस विषय पर पहले ही सहमति हो चुकी होती है, उसे फिर से चर्चा के लिए खोल दिया जाता है जिससे पहले के अधिदेश पृष्ठभूमि में खिसक जाते हैं। मैं समझाता हूं कि इससे मेरा क्या आशय है। 11 दिसंबर 2013 के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में, यह निर्णय लिया गया और बार-बार निर्णय लिया गया कि सभी सदस्य 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन द्वारा अंगीकरण के स्थायी समाधान के लिए एक समझौते पर बातचीत करने के लिए एक अंतरिम तंत्र स्थापित करने के लिए सहमत हैं। प्रक्रिया तय हो चुकी थी और हम व्यापार सुविधा संबंधी समझौते, जिसे विकसित दुनिया अपनाने के लिए बेहद उत्सुक थी, के बदले इस पर सहमत हुए।

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मैं इस घोषणा से उद्धृत कर रहा हूं, मेरा मानना ​​है कि यह कार्य संबंधी कार्यक्रम के पैरा 8 का एक महत्वपूर्ण तत्व था। एक पैरा 8 है, जो कहता है और मैं उद्धृत करता हूं “सभी सदस्य स्थायी समाधान के लिए सिफारिशें करने के उद्देश्य से इस मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए कृषि से संबंधित समिति में एक कार्य कार्यक्रम स्थापित करने के लिए सहमत हैं।”  पैरा 9 कहता है, “सभी सदस्य इस कार्य कार्यक्रम को 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के पहले ही पूरा करने के उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध हैं” और पैरा 10 “सामान्य परिषद 10वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन को रिपोर्ट करेगी… कार्य कार्यक्रम पर हुई प्रगति के बारे में।” मैं आपको इसलिए याद दिला रहा हूं क्योंकि इस सम्मेलन में जो किया जाना है, उसी पटकथा को मंत्रिस्तरीय सम्मेलन13 को फिर से लिखना है।

28 नवंबर 2014 को, सामान्य परिषद ने सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग सुरक्षा उद्देश्यों से संबंधित 27 नवंबर 2014 के निर्णय को दोहराया और फिर विकासशील देशों के लिए खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग के महत्व को पहचानते हुए अपनी बात रखी। इसके अलावा यह एक स्थायी समाधान के लिए सहमति बनने और उसे अपनाए जाने तक का एक निर्णय था… सुरक्षा प्रस्तावों में सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग कार्यक्रमों के अनुसरण के प्रति सहमति व्यक्त की गई तथा यह निर्णय लिया गया और स्थायी समाधान को अंतिम रूप दिए जाने तक जिसे हम शांति संबंधी उपनियम कहते हैं, वह जारी रहेगा। उन्होंने फिर कहा कि यदि 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में कोई स्थायी समाधान स्वीकृत और अंगीकृत नहीं किया जाता है तो पैरा 1 में निर्दिष्ट तंत्र तब तक बना रहेगा जब तक कि स्थायी समाधान पर सहमति नहीं हो जाती और उसे अपनाया नहीं जाता है और जिसके लिए वे फिर से कहते हैं, स्थायी समाधान के लिए बातचीत खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग के मुद्दे पर प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा, यह 2014 की स्थिति है। साथ ही, उन्होंने कहा कि दोहा विकास एजेंडा के तहत कृषि वार्ता के उलट इस विषय पर बातचीत कृषि संबंधी समिति में एक विशेष अधिवेशन में समर्पित सत्र और त्वरित समय अवधि में आयोजित की जाएगी।

यही नहीं, 2015 में दसवें सत्र में मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में रिपोर्ट करते हुए, उन्होंने अब तक की प्रगति पर गौर किया और यह निर्णय लिया कि वे 2014 के सदस्यों के सामान्य परिषद के इस निर्णय की पुष्टि करते हैं कि वे बातचीत के लिए रचनात्मक रूप से संलग्न होंगे और अब तक हुई प्रगति को स्वीकार करने और उसे अपनाने के लिए सभी ठोस प्रयास करेंगे। मैं यह सब इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस बात के पीछे क्या तर्क है कि नए सिरे से कार्य कार्यक्रम होगा और एमसी12 में मंत्रिस्तरीय घोषणा होगी। यह पहले से ही स्पष्ट है, यह पहले से ही एक सतत प्रक्रिया है। क्या यह वार्ता को फिर से शुरू करने और इसे उन सभी विभिन्न विषयों के बराबर लाने का मुद्दा है जो आज अंतिम रूप दिए जाने की जरूरत के अनुरूप वार्ता के विभिन्न चरणों में हैं?  क्या यह एक कार्य कार्यक्रम की पेशकश करके मत्स्यपालन के क्षेत्र में एक समझौते का प्रयास करने और उसे अंतिम रूप देने के लिए किया जा रहा है?  मुझे अब भी लगता है कि हम सभी को इस बात पर चिंतन करने की आवश्यकता है कि इस बार क्या तय किया जाना चाहिए और इसमें क्या शामिल किया जाना चाहिए या क्या एक बार फिर से एक कार्य कार्यक्रम के लिए सहमत होना चाहिए और क्या प्रारंभिक समझौते के आठ साल या नौ साल बाद हमें वापस वहीं पहुंच जाना चाहिए, जहां से हमने शुरुआत की थी?

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मित्रों, भारत और इस जी33 समूह में हम सभी सदस्य लंबे समय से सुलभ और प्रभावी विशेष सुरक्षा तंत्र (एसएसएम) की मांग कर रहे हैं ताकि विकसित सदस्यों द्वारा दिए जाने बड़े पैमाने पर भारी सब्सिडी के कारण होने वाली आयात में वृद्धि तथा कीमतों में गिरावट के अस्थिर व पंगु कर देने वाले प्रभावों से निपटा जा सके। उनके पास पहले से ही सहायता की पात्रता का एक समग्र उपाय उपलब्ध है जोकि काफी विशाल है क्योंकि पहले से ही बहुत बड़ी सब्सिडी उपलब्ध थी जिसे कई साल पहले, लगभग पांच साल पहले, रोक रखा गया था। ऐसा इसलिए है क्योंकि विशेष रूप से महामारी के बाद की परिस्थितियों में कीमतों में पाई गई अस्थिरता के मद्देनजर निकला एक नतीजा कई सदस्यों के लिए उनके कृषि पैकेज का एक महत्वपूर्ण तत्व बना हुआ है।

इसी तरह, आप मुझसे सहमत होंगे कि कृषि संबंधी समझौता पहले से ही गहरे असंतुलन से भरा हुआ है और उन विकसित देशों के पक्ष में है जिन्होंने कई विकासशील देशों के खिलाफ नियम बनाए हैं और यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जो कुछ हो रहा है उससे काफी स्पष्ट है।

यह बेहद महत्वपूर्ण है कि कृषि सुधार के पहले चरण के रूप में ऐतिहासिक विषमताओं और असंतुलनों को ठीक किया जाना चाहिए ताकि एक नियम आधारित निष्पक्ष एवं न्यायसंगत व्यवस्था सुनिश्चित हो सके। हमें सबके लिए एक जैसा प्रावधान करना चाहिए और अपने किसानों व अपने लोगों को सुरक्षा प्रदान करने का मौका देना चाहिए। हमें विकासशील देशों के लिए मौजूदा एस एंड डीटी को संरक्षित करना जारी रखना चाहिए, जो हमारे संघर्षरत किसानों, विशेषकर उन लोगों को जो किसी तरह अपना निर्वाह कर रहे हैं, की मदद करेगा। कृषि संबंधी समझौते के अनुच्छेद 6.2 के अंतर्गत विकास संबंधी उपनियमों के तहत प्रदान की गई लचीलेपन को घरेलू सहायता संबंधी सुधार के नाम पर नहीं छेड़ा जाना चाहिए।

अंत में, मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हम सभी को इस गठबंधन के सामंजस्य को बनाए रखने के लिए सामूहिक रूप से काम करना चाहिए एवं अन्य समान विचारधारा वाले देशों तक पहुंचकर इसे और मजबूत करना चाहिए तथा एक निष्पक्ष, संतुलित एवं विकास केंद्रित नतीजों, जिसमें सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग और विशेष सुरक्षा तंत्र (एसएसएम) का स्थायी समाधान का समावेश हो, के लिए उनका समर्थन हासिल करना चाहिए।

देवियो एवं सज्जनो और अध्यक्ष महोदय, आपका मेरी बातों पर ध्यान देने के लिए धन्यवाद। लेकिन, मैं पूरे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को इसलिए दोहराना चाहता था ताकि हम में से हरेक अपने नेतृत्व की भूमिका में आ सके तथा निर्धारित परिणामों को प्राप्त करने में सक्षम होने के लिए और अधिक मजबूत हो सके।         

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एमजी/एमए/आर