डब्‍ल्‍यूटीओ के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान ट्रिप्स वेवर के सह-प्रायोजकों के साथ बैठक में श्री पीयूष गोयल का वक्तव्य

केंद्रीय वाणिज्‍य एवं उद्योग, उपभोक्‍ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्री श्री पीयूष गोयल द्वारा जेनेवा में विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान आज ट्रिप्स वेवर के सह-प्रायोजकों के साथ बैठक में दिए गए वक्तव्य का मूल पाठ इस प्रकार है:

‘कोशिश करने एवं समाधान तलाशने के लिए विकसित दुनिया के साथ जुड़ने और मैं उनके अद्भुत नेतृत्व और दक्षिण अफ्रीका की राजदूत सुश्री जोलेलवा की वास्‍तव में सराहना करता हूं। मैं विभिन्‍न मंत्रियों और सरकारों के साथ चारपक्षीय और द्विपक्षीय बैठकों में और ग्रीन रूम में भी यह समझने की कोशिश करता रहा हूं कि यह किस ओर जा रहा है। मैं आपको कुछ परेशान करने वाली बातें बताता हूं जो मेरे लिहाज से काफी महत्‍वपूर्ण हैं क्‍योंकि कोई अंतिम निर्णय लेने से पहले हम सब की लगभग समान स्थिति है।

सबसे पहले, मुझे नहीं लगता कि यह बहुत मायने रखता है कि आइटम 1 और 2 को अंतिम रूप दिया गया है या नहीं। मेरी समझता हूं कि हम जो भी भाषा चाहते हैं वह हमें यहां आइटम 1 और 2 में धीरे-धीरे मिल जाएगी क्योंकि वे दुनिया और नागरिक समाज को यह दिखाने के लिए काफी उत्सुक हैं कि हमारे दिल में विकासशील देशों के लिए दर्द है, हम अफ्रीका की परवाह करते हैं, हम कम विकसित देशों की परवाह करते हैं, हम विकासशील दुनिया की परवाह करते हैं और वे अपने सीने पर लगे इस आरोप के निशान को मिटाना चाहते हैं कि विकसित दुनिया गरीब और कमजोर लोगों की चिंताओं के प्रति असंवेदनशील और अमानवीय है।

मुझे अपनी समझ से और जितनी बैठकें हो रही हैं, जितने ग्रीन रूम वार्तालाप हो रहे हैं और जितनी कोशिश की जा रही है, उन सब का उद्देश्‍य केवल दुनिया को यह दिखाना है कि हमें अद्भुत समाधान मिल गया है और हम 80 देशों के साथ सहमत हुए अथवा जो कुछ भी दिया वह ट्रिप्‍स वेवर है। अब आम आदमी यह नहीं समझता है कि इसमें ट्रिप्स वेवर जैसा कुछ भी नहीं है। आम आदमी यह नहीं समझता है कि यह अनिवार्य लाइसेंसिंग से थोड़ा ऊपर है। लेकिन जिस तरीके से चर्चा चल रही थी उस पर मेरे सहयोगी और मिस्र के राजदूत भी अपनी बात साझा करेंगे क्योंकि वह भी कमरे में थे। अपनी आवाज उठाने के लिए उन पर कई हमले हुए, लेकिन यह बिल्‍कुल स्पष्ट है कि वे अपने सीने को बोझ या दा‍यित्‍व को किसी भी तरह उतारने की कोशिश कर रहे थे और कुछ भी पारित करवाना चाहते थे। लेकिन वे जो नाइटपिकिंग कर रहे हैं उससे उनकी निष्‍ठा और इस तथ्‍य की झलक मिलती है कि एक भी कारखाना स्‍थापित नहीं होगा, एक भी नहीं, जिसके लिए हम इस समझौते पर अंतत: बातचीत करने का प्रयास कर रहे हैं और जिसे मंजूरी मिल सकती है।

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अल्‍पविराम, पूर्णविराम, एक शब्द यहां या वहां के लिए जिस प्रकार की लड़ाई चल रही है उससे पता चलता है कि यदि कोई इस समझौते का लाभ उठाने की कोशिश करता है तो यह लड़ाई 5 साल तक जारी रहेगी। इसलिए जो भी ऐसा प्रयास करेगा वह निराश होगा और ऐसे में एक भी टीका विनिर्माण संयंत्र स्‍थापित नहीं हो पाएगा।

दूसरा, बड़ी मुश्किल से हमें 5 साल की अवधि मिली है लेकिन हम सब जानते हैं कि जब तक हमें कोई निवेशक मिलेगा और हम रकम जुटाएंगे, योजना तैयार करेंगे, उपकरण हासिल करेंगे और संयंत्र स्थापित करेंगे, तब तक शायद 2.5 से 3 साल गुजर चुके होंगे। उसके बाद आप उत्पादन शुरू कर देंगे और दो साल के भीतर आपको अपने निर्यात को सामान्य अनिवार्य लाइसेंस स्तर तक लाना होगा और आपकी क्षमता बेकार रहेगी। आज, भारत में हमारे पास काफी ऐसे टीके हैं जो एक्‍सपायर हो रहे हैं, हमारे पास टीकों की क्षमता है जो बेकार पड़ी है। ऐसे में निवेशकों के लिए इस ओर आगे बढ़ना आसान नहीं होगा।

हम उम्‍मीद करते थे और हमारी इच्छा थी कि यह शुरुआत होगी और 6 महीने में हम थेराप्‍यूटिक और डायग्‍नोस्टिक निर्णय लेंगे। मुझे आपको यह बताते हुए खेद हो रहा है कि विकसित देशों के साथ मेरी कुछ द्विपक्षीय वार्ताओं में उन्होंने लगभग स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि आईपी अधिकार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, हम अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण हवा के रुख में आगे बढ रहे हैं लेकिन थेराप्‍यूटिक और डायग्‍नोस्टिक में ऐसा कोई रास्‍ता नहीं है जिससे हमें कुछ मिलने वाला है। इसमें कुछ ऐसे देश भी शामिल हैं जो एक तरह से इसका विरोध कर रहे हैं।

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उनकी अपेक्षा बिल्‍कुल वैसी ही है जैसी यहां लिखी गई है कि कोविड-19 का तेजी से प्रबंधन किया जा रहा है और यह मुद्दा अपनी प्रासंगिकता खो देगा जैसा वे उम्‍मीद कर रहे हैं।

वे चाहते हैं कि आज आपके ऊपर कोई अपराधबोध न रहे और वे दुनिया को यह दिखाना चाहते हैं कि आज हम कितने उदार हैं, थेराप्‍यूटिक एवं डायग्‍नोस्टिक के मामले को आगे बढाएं जो वास्‍तव में आवश्‍यक हैं, टीके की कहानी अब लगभग खत्‍म हो चुकी है। उन्‍होंने हमारे कई देशों पर काफी महंगा होने का भी आरोप लगाया है। भारत में एक टीके का उत्‍पादन 1.5 डॉलर में होता है ज‍बकि दुनिया के कई हिस्‍सों में इसके लिए 38 से 40 डॉलर का भुगतान किया जाता है। आप में से कुछ लोगों ने अनुदान प्राप्‍त किया है लेकिन टीके का मूल्य 38 या 40 डॉलर पर जिसे आप बड़ा उपकार मानते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि जो हमें मिल रहा है वह पूरी तरह से अधपका है और यह हमें कोई टीका बनाने की इजाजत नहीं देगा। उनका थेराप्‍यूटिक और डायग्‍नोस्टिक की अनुमति देने का कोई इरादा नहीं है। यदि वे यह कहने की कोशिश करते हैं कि इसे टूटने का कारण हम हैं तो मुझे लगता है कि हमें एकसाथ दुनिया से बात करनी चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि हम थेराप्‍यूटिक और डायग्‍नोस्टिक सहित एक समग्र समाधान चाहते हैं।

टीकों ने पहले ही प्रासंगिकता खो दी है, उन्होंने बिना किसी समाधान के 2 साल बिता दिए और अब बहुत देर हो चुकी है। अब ऐसी स्थिति भी नहीं है जहां आप कह सकें कि देर आए लेकिन दुरुस्‍त आए। अब काफी देर हो चुकी है क्‍योंकि टीकों की कोई मांग नहीं दिख रही है। इसलिए, आइए हम अंतिम निर्णय, सामूहिक एवं समग्र निर्णय के लिए रास्‍ता तैयार करें और सब-ऑप्टिमल स्‍टेज 1 को स्‍वीकार न करें क्‍योंकि हमें पता है कि स्‍टेज 2 कभी नहीं आएगा।’ 

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