एनडीटीवी की पत्रकारिता चाहे जैसी हो लेकिन इस न्यूज़ चैनल के उत्तर प्रदेश के इंचार्ज और वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान की पत्रकारिता अलग हट कर थी। ऐसे कई दर्शक होंगे जो एनडी टीवी पर सिर्फ कमाल खान की रिपोर्टिंग को देखना पसंद करते हैं। लेकिन अब एनडीटीवी पर कमाल खान नजर नहीं आएंगे। क्योंकि कमाल खान का इंतकाल 13 जनवरी को हो गया है। मैं कमाल खान से कभी नहीं मिला, लेकिन मैंने एनडीटीवी पर कई बार कमाल खान के विश्लेषण को सुना है। मैंने यह महसूस किया कि कमाल खान निष्पक्ष तौर पर रिपोर्टिंग करते थे। मुसलमानों के मुद्दे पर अखिलेश यादव की भी आलोचना मैंने कमाल खान के मुंह से सुनी है। प्रियंका गांधी को जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेता के तौर पर लॉन्च किया गया तो कमाल खान उन पत्रकारों में शामिल थे, जिन्होंने प्रियंका गांधी के नाम पर उत्तर प्रदेश में भीड़ नहीं जुटने की खबरें भी चलाईं। जिन लोगों ने कमाल खान को सुना है वह कह सकते हैं कि कमाल के शब्द बेहद ही सरल और आसानी से समझने वाले होते थे। वे अपनी खबर में शेर और कविताओं का भी उल्लेख करते थे। कमाल जब अयोध्या से रिपोर्टिंग करते थे, तब उनकी भाषा हिन्दी धर्मशास्त्र के ज्ञाता वाली होती थी। कमाल को कबीर के दोहे पर याद थे तो रामायण की चौपाई भी। पत्रकारिता में ऐसे बहुत कम पत्रकार होते हैं जिनकी पहचान निष्पक्ष पत्रकार के तौर पर होती है। कहा जा सकता है कि कमाल खान एनडीटीवी में रहते हुए भी निष्पक्ष पत्रकार बने रहे। कमाल की पत्रकारिता को देखते हुए अन्य न्यूज चैनलों ने भी कमाल के समक्ष प्रस्ताव रखे, लेकिन कमाल खान ने आखिरी दम तक एनडीटीवी को नहीं छोड़ा कमाल चाहते तो दिल्ली आकर एनडीटीवी में बड़े पद पर आसीन हो सकते थे। लेकिन उन्होंने अपने लखनऊ का मोह नहीं छोड़ा, लेकिन लखनऊ में रहते हुए भी कमाल खान ने राष्ट्रीय स्तर की पत्रकारिता की। कमाल खान हमेशा से हिन्दू मुस्लिम एकता का पक्षधर रहे। कमाल खान ने कोई 30 वर्षों तक पत्रकारिता की। युवा पत्रकार कमाल खान की पत्रकारिता से प्रेरणा ले सकते हैं।
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