देश में जब नागरिकता संशोधन कानून लाया गया, तब कांग्रेस सहित अनेक राजनीतिक दलों ने विरोध किया। दिल्ली के शाहीन बाग में लगे बेमियादी धरने पर राजनीतिक दलों के नेता भी पहुंचे और सीएए कानून का विरोध किया, लेकिन अफगानिस्तान के ताजा हालातों से सीएए का महत्व समझा जा सकता है। अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन ने घोषणा कर दी है कि शरीयत के तहत शासन चलेगा। पुरुषों को दाढ़ी बढ़ानी होगी तो महिलाओं पर अनेक पाबंदियां होंगी। पिछले 15 दिनों से तालिबान जिस तरीके से शासन कर रहा है उसका खबरें अखबारों और न्यूज चैनलों पर देखने को मिल रही है। ऐसे में अफगानिस्तान में रह रहे हिन्दू और सिक्ख परिवार भी दहशत में है। यही वजह है कि ऐसे हिन्दू और सिक्ख परिार सब कुछ छोड़कर भारत में आ रहे हैं। हिन्दू सिक्ख परिवारों को पता है कि तालिबान के शासन में अफगानिस्तान में नहीं रहा जा सकता है। ऐसे हिन्दू सिक्ख शरणार्थियों को ही सीएए कानून में भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। सवाल उठता है कि तालिबान से प्रताडि़त हिन्दू सिक्ख परिवार आखिर कहां जाए? क्या ऐसे सिक्ख-हिन्दू परिवारों को तालिबानियों के भरोसे छोड़ दिया जाए? इन सवालों का जवाब उन लोगों को देना चाहिए जो सीएए कानून का विरोध करते हैं। पूरी दुनिया देख रही है कि भारत में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों को तो ला ही रही है, साथ ही मुस्लिम परिवारो को सुरक्षित लाया जा रहा है। मुस्लिम परिवार भी काबुल एयरपोर्ट पर भारतीय अधिकारियों के समक्ष मिन्नतें कर रहे हैं। सीएए का विरोध करने वाले देख लें कि बिना किसी भेदभाव के मुस्लिम परिवारों को भी भारत लाया जा रहा है। भारतीय वायुसेना ने अफगानिस्तान से लोगों को निकालने का बहुत बड़ा अभियान चला रखा है। सिक्ख हिन्दू परिवार ही नहीं बल्कि मुस्लिम परिवार भी भारत में सुकून महसूस कर रहे हैं। अफगानिस्तान के मुस्लिम परिवारों को आज सबसे ज्यादा सुरक्षित देश भारत की लग रहा है। जबकि पड़ौस में पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे मुस्लिम राष्ट्र हैं। जिन लोगों ने शाहीन बाग पर धरना दिया वे बताएं कि क्या हिन्दू सिक्ख परिवारों को तालिबान के भरोसे अफगानिस्तान में छोड़ दिया जाए? यह भारत सरकार की कूटनीति ही है कि भारतीयों को बड़ी संख्या में तालिबान के चंगुल से निकाल कर लाया जा रहा है।
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