Indian Railways : गरीबों से दूर होती ट्रेन, स्लीपर कोच घटाए, वातानुकूलित बढ़ाए

Indian Railways : गरीबों से दूर होती ट्रेन, स्लीपर कोच घटाए, वातानुकूलित बढ़ाए

Kota Rail News : रेलवे भले ही गरीब यात्रियों के लिए सस्ती और सुलभ यात्रा के नित नए वादे करती हो, लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट होती जा रही है। इसको इस बात से आसानी से समझा जा सकता है कि रेलवे ने अब ट्रेनों से स्लीपर घटाकर वातानुकूलित कोच बढ़ाने का निर्णय लिया है।
रैक मानकीकरण के नाम पर अब ट्रेनों में 2 स्लीपर, 2 जनरल कोच, 10 तृतीय श्रेणी वातानुकूलित / तृतीय श्रेणी इकोनॉमी, 4 द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित, 1 प्रथम श्रेणी वातानुकूलित, 1 पैंट्रीकार या पार्सल वेन, 1 गार्ड कम दिव्यांग कोच और 1 जनरेटर कार मिलाकर कुल 22 कोच होंगे।
2 साल पहले भी घटाए थे स्लीपर
यह पहला मौका नहीं है जब रेलवे द्वारा स्लीपर फोटो को कम किया जा रहा है। इससे पहले भी 2020 में भी ट्रेनों से स्लीपर कोच घटाए गए थे।
इसके तहत एक रैक में 1 फर्स्ट एसी, 2 सेकंड एसी, 6 थर्ड एसी, 7 स्लीपर, 4 जनरल, 1 गार्ड कम दिव्यांग तथा एक जनरेटर कोच किए गए थे।
पहले होते थे 12 स्लीपर
जबकि इससे पहले ट्रेनों में 1 फर्स्ट एसी, 1 या 2 सेकंड एसी, 3 या 4 थर्ड एसी, 4 जनरल, 2 गार्ड कम दिव्यांग, लेडिस और 10-12 स्लीपर कोच होते थे।
मानकीकरण के दो चेहरे
इस योजना से रेलवे के मानकीकरण के दो चेहरे नजर आ रहे हैं। इसे लागू किया गया था की एक कोचिंग डिपो से चलने वाली सारी रेलगाड़ियों की कोच संरचना एक जैसी रहे ताकि एक ट्रेन लेट होने से उसकी पेयरिंग ट्रेन लेट न हो। उसकी जगह वैसी की वैसी संरचना वाली दूसरी ट्रेन उसकी जगह लेले। साथ ही साथ रैक का पूरा उपयोग हो और किसी स्टेशन पर कम से कम लाइओवर-टर्न अराउंड टाइम (TOT) हो। पर यह तो सिर्फ बोलने की बात है। भारतीय रेल ने रैक मानकीकरण के नाम पर स्लीपर कोचों को बलिदान करना शुरू कर दिया है।
मानकीकरण के पहले जिस ट्रेन में 10-12 स्लीपर होते थे, अब दो रह जाएंगे। आम आदमी अभी इससे उबर भी नही पाया था की रेलवे ने तृतीय श्रेणी इकोनॉमी कोच और बना दिए। इससे रेलवे की भारतीय यात्रियों को धीरे-धीरे वातानुकूलित कोच में शिफ्ट करने की योजना के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि आने वाले कुछ वर्षो में कई सारी वंदे भारत ट्रेनें चलेंगी, जो की पूरी तरह से वातानुकूलित होंगी। रेलवे की मंशा चाहे जो कुछ भी रही हो, लेकिन सच यही है कि रेलवे अब आम आदमी की पहुंच से दूर होती चली जा रही है।