सचिन पायलट इस बार दिल्ली में अकेले बैठ कर ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं।

सचिन पायलट इस बार दिल्ली में अकेले बैठ कर ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं।
गत वर्ष जिस हथियार से गहलोत ने पायलट को जख्मी किया वही हथियार अब पायलट के हाथ में है।
सब कुछ गहलोत की मर्जी से ही होता तो कुमारी शैलजा को रातों रात जयपुर नहीं आना पड़ता। 26 जुलाई को भी इसी तरह केसी वेणुगोपाल भी जयपुर आए थे।
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एक अगस्त को देर रात हरियाणा कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की विश्वासपात्र कुमारी शैलजा जयपुर आई और दो घंटे तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से वार्ता करने के बाद दिल्ली लौट गई। बताया जा रहा है कि कुमारी शैलजा ने गहलोत को सोनिया गांधी का संदेश दिया है। 1 अगस्त को जिस तरह कुमारी शैलजा जयपुर आईं उसी तरह 26 जुलाई को भी कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल भी सीएम गहलोत से मिलने के लिए जयपुर आए थे। वेणुगोपाल को भी गांधी परिवार का विश्वस्त माना जाता है। प्रदेश की राजनीति में यदि सब कुछ सीएम गहलोत की मर्जी से हो रहा होता तो केसी वेणुगोपाल और कुमारी शैलजा को इस तरह जयपुर नहीं आना पड़ता। सब जानते हैं कि गत वर्ष जुलाई-अगस्त माह में ही सचिन पायलट कांग्रेस के 18 विधायकों को लेकर दिल्ली चले गए थे। तब पायलट के दिल्ली प्रवास को बगावत माना गया और पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से बर्खास्त कर दिया गया। लेकिन इस बार जुलाई अगस्त माह में सचिन पायलट अकेले ही दिल्ली में बैठे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार पायलट का संपर्क गांधी परिवार से बना हुआ है। पायलट की लगातार दिल्ली में मौजूदगी की वजह से ही जयपुर में सीएम गहलोत के लिए मुसीबत खड़ी हो रही है। इस बार गांधी परिवार का भरोसा सचिन पायलट पर भी है। गत वर्ष जुलाई अगस्त में ही जो भरोसा टूटा था उसे पायलट ने दोबारा हासिल कर लिया है। सूत्रों के अनुसार गांधी परिवार चाहता है कि राजस्थान में संगठन और सरकार में पायलट की भी भूमिका हो। लेकिन इस पर गहलोत की ओर से सहमति नहीं हो रही है। यही वजह है कि गांधी परिवार के दूत बार बार जयपुर आ कर गहलोत से मुलाकात कर रहे हैं।
यह कहा जा सकता है कि गत वर्ष जिस हथियार से गहलोत ने पायलट को जख्मी किया इस वर्ष वह हथियार पायलट के हाथ में आ गया है। पायलट दिल्ली में अकेले बैठ कर राजस्थान में हलचल कर रहे हैं। वैसे तो गहलोत को ही गांधी परिवार का सबसे भरोसेमंद नेता माना जाता रहा है। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में प्रतीत हो रहा है कि अब गहलोत पर पहले जैसा भरोसा नहीं है। यह सही है कि सरकार चलाने के लिए गहलोत ने 100 से भी ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल कर रखा है। लेकिन गांधी परिवार चाहता है कि ढाई वर्ष बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत दोबारा से हो। गांधी परिवार इस बात को मानता है कि वर्ष 2018 के चुनावों में कांग्रेस की सरकार बनाने में सचिन पायलट की अहम भूमिका रही है। ऐसे में पायलट को अलग थलग नहीं किया जा सकता है। पायलट ने गहलोत के समक्ष तब समस्याएं खड़ी की है, जब हाल ही में गहलोत के समर्थन में 100 से भी ज्यादा विधायकों ने राय प्रकट की और चुनाव घोषणा कमेटी के अध्यक्ष ताम्रध्वज साहू ने भी माना कि गहलोत सरकार ने 64 प्रतिशत चुनावी वायदे पूरे कर दिए हैं। लेकिन प्रतीत होता है कि गहलोत की इस कवायद पर दिल्ली में पायलट ने पानी फेर दिया है। अब देखना है कि अशोक गहलोत सरकारी विमान से कब दिल्ली जाते हैं। वैसे राजनीतिक दृष्टि से गहलोत ने स्वयं को 15 अगस्त तक क्वारंटाइन कर रखा है।