जन अनुशासन पखवाड़े में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भावनाओ को समझा जाए।

जन अनुशासन पखवाड़े में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भावनाओ को समझा जाए।
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राजस्थान में कोरोना संक्रमण की भयावह स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 19 अप्रैल से 3 मई तक लॉकडाउन घोषित किया है। लॉकडाउन के इन 15 दिनों को गहलोत ने जन अनुशासन पखवाड़े का नाम दिया है। गहलोत चाहते तो सख्त लॉकडाउन लागू करवा सकते थे, लेकिन गहलोत ने लोगों को घर से बाहर निकलने के अनेक कारण दे दिए हैं। इसके पीछे गहलोत का मकसद लोगों को कम से कम परेशान करने का है। गत वर्ष के लॉकडाउन में लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल पाए थे, जबकि इस बार बिल्डिंग मटेरियल से लेकर मिठाई की दुकानें तक खुली हैं। अजमेर के पड़ाव बाजार में अधिकांश दुकानें किराना की है, इसलिए यहां लॉकडाउन नजर ही नहीं आ रहा। कोई व्यक्ति जेब में बैंक की पासबुक या डॉक्टर का लिखा दवाई का पर्चा लेकर भी घर से बाहर निकल सकता है। डेयरी से दूध लाना हो या मंडी से सब्जी तो भी घर से बाहर निकला जा सकता है। अब तो प्रदेश के 80 हजार ई-मित्र कियोस्क को भी खोलने की अनुमति दे दी है। जब इतना सब कुछ खुला है तो अब सर्राफा, कपड़ा इलेक्ट्रॉनिक्स, बर्तन आदि के व्यापारी भी दुकानें खोलने की मांग कर रहे हैं। असल में लॉकडाउन में हमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भावना को समझना होगा। इस लॉकडाउन का मतलब है कि स्वयं अनुशासन में रहना। भले ही सरकार ने घर से बाहर निकलने के सौ उपाय दे दिए हों, लेकिन हमें अत्याधिक जरुरत होने पर ही घर से बाहर निकलना चाहिए। सवाल उठता है कि आखिर सरकार किसके लिए लॉकडाउन लगाया है? इस लॉकडाउन से अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार को तो राजस्व की भारी क्षति होगी। लॉकडाउन का फायदा यदि किसी को मिलेगा तो वह प्रदेश की जनता है। हम आए दिन अखबारों और न्यूज चैनलों पर कोरोना संक्रमित मरीजों की दुर्दशा देख रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में मरीजों को भर्ती करने के पलंग नहीं है। बरामदों या अस्पताल के बाहर कुर्सी पर बैठा कर मरीजों को ऑक्सीजन दिया जा रहा है। यह ऐसी बीमारी है कि संक्रमित मरीज के पास रिश्तेदार तक नहीं आते हैं। जब संक्रमित मरीज को परिवार के सदस्य हाथ लगाने से भी मना कर रहे हैं तब हम सरकार के स्वास्थ्य कर्मियों से उम्मीद करते हैं कि वे सेवा का कार्य करें। क्या स्वास्थ्य कर्मी इंसान नहीं है? इन सब बातों को लोगों को समझना पड़ेगा। भले ही लॉकडाउन में अनेक छूट मिली हों, लेकिन हमें मुख्यमंत्री गहलोत की भावना के अनुरूप अनुशासन का परिचय दिखाना होगा। यदि प्रदेश में कोरोना मरीजों की संख्या इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो मुख्यमंत्री को मजबूरन सख्ती करनी पड़ेगी। यदि हम 15 दिनों के इस लॉकडाउन में अनुशासन में नहीं रहे तो खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ेगा। जो लोग अभी भी मुख्यमंत्री की भावना को नहीं समझ रहे हैं उनसे मेरा आग्रह कि वे एक बार अपने निकटतम सरकारी अस्पताल में दो घंटे गुजार लें। उन्हे संक्रमित मरीजों और परिवार के सदस्यों की परेशानी का पता चल जाएगा हो सकता है कि दो घंटे में चार संक्रमित मरीजों की मृत्यु भी हो जाए। जान लेना कोरोना से सिर्फ घर पर रह कर ही बचा जा सकता है।