राजस्थान में ब्लैक फंगस बीमारी को भी मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल करने के आदेश, लेकिन सरकार पहले इस योजना में निजी अस्पतालों में इलाज तो सुनिश्चित करवाए।

राजस्थान में ब्लैक फंगस बीमारी को भी मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल करने के आदेश, लेकिन सरकार पहले इस योजना में निजी अस्पतालों में इलाज तो सुनिश्चित करवाए।
अभी तो भामाशाह योजना का ही 200 करोड़ रुपया बकाया है। ऐसे में चिरंजीवी योजना में निजी अस्पताल गरीब मरीजों का इलाज क्यों करेंगे? आखिर न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी में ही सरकार की रुचि क्यों हैं?
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इसमें कोई दो राय नहीं की कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए ब्लैक फंगस (आंख की बीमारी) जानलेवा साबित हो रहा है। यदि कोई मरीज बच भी जाता है तो उसकी एक या दोनों आंख बंद हो जाती है। ब्लैक फंगस को नियंत्रित करने वाला इंजेक्शन भी नहीं मिल रहा है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ब्लैक फंगस बीमारी को मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल करने के आदेश दिए हैं। ताकि गरीब आदमी का निजी अस्पतालों में अच्छा इलाज हो सके। चिरंजीवी योजना में प्रदेश के लगभग 40 लाख परिवारों ने रजिस्ट्रेशन करवा लिया है। प्रदेश में यह योजना एक मई से लागू हो गई है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या प्रदेश के निजी अस्पतालों में चिरंजीवी योजना के अंतर्गत किसी गरीब व्यक्ति का नि:शुल्क इलाज हो रहा है? ऐसे मरीजों की संख्या प्रदेश में तीन अंकों में भी नहीं होगी। असल में निजी अस्पताल चिरंजीवी योजना में न तो कोविड का और न किसी सामान्य बीमारी का इलाज कर रहे हैं। योजना की क्रियान्विति को लेकर सरकार और निजी अस्पतालों में तो तालमेल है ही नहीं, साथ ही योजना में बीमा करने वाली न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी का व्यवहार भी नकारात्मक है। राजस्थान प्राइवेट हॉस्पिटल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष विशेष व्यास का कहना है कि अभी तो भामाशाह योजना की ही 200 करोड़ रुपया बकाया है। बार बार तकाजे के बाद न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी भुगतान नहीं कर रही है। जब निजी अस्पतालों को पिछला भुगतान ही प्राप्त नहीं हुआ है तो चिरंजीवी योजना में इलाज कैसे करें? गंभीर बात तो यह है कि इसी न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को ही चिरंजीवी योजना का काम दे दिया गया है। सरकार एक ही इंश्योरेंस कंपनी में रुख क्यों दिखाती है, यह जांच का विषय हो सकता है, लेकिन निजी अस्पतालों को सरकार की योजनाओं में जरूरतमंद मरीज का निशुल्क इलाज करने पर कोई एतराज नहीं है। निजी अस्पताल सरकार के मापदंडों पर इलाज करते भी हैं, लेकिन अस्पतालों को इलाज की राशि का भुगतान तो होना ही चाहिए। सरकार जब ऐसी योजना बनाए, तब निजी अस्पतालों के प्रतिनिधि भी होने चाहिए, ताकि इलाज की राशि तर्कसंगत निर्धारित हो सके। चिरंजीवी योजना देखने और सुनने में तो अच्छी है, लेकिन हकीकत यह है कि प्रदेश के अधिकांश निजी अस्पताल इस योजना में मरीज का इलाज करने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। अबकी बार सीएम गहलोत अपनी इस योजना की प्रशंसा करें तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि एक मई से अब तक कितने गरीब मरीजों को निजी अस्पतालों में निशुल्क इलाज हुआ है।