राजस्थान में कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों का इलाज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कर रखा है, इसलिए तो इस्तीफे के बाद भी हेमाराम चौधरी से बात नहीं की।

राजस्थान में कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों का इलाज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कर रखा है, इसलिए तो इस्तीफे के बाद भी हेमाराम चौधरी से बात नहीं की।
असंतोष को संभालने की जिम्मेदारी अब सचिन पायलट की है। अशोक गहलोत ने तो सरकार को संभाल कर रखा हुआ है।
सुरेश टाक जैसे निर्दलीय विधायक मजबूती के साथ मुख्यमंत्री के साथ खड़े हैं।
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राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक हेमाराम चौधरी के इस्तीफे और तीन चार अन्य कांग्रेसी विधायकों के असंतोष के बीच मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि इसे कांग्रेस के हाईकमान माने जाने वाले राहुल गांधी नाराज हैं। राहुल ने संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से ताजा घटनाक्रम पर रिपोर्ट भी तलब की है। ऐसी खबरें अखबारों की सुर्खियां या न्यूज चैनलों की हेडलाइंस बन सकती है, लेकिन सवाल उठता है कि कौन से असंतोष के किस इलाज की जरूरत हैं? मुख्यमंत्री ने असंतुष्ट विधायकों का पहले ही इलाज कर रखा है, इसीलिए तो इस्तीफे के बाद भी हेमाराम चौधरी से न तो फोन पर और बुलाकर बात की है। वेदप्रकाश सोलंकी और मदन प्रजापत जैसे विधायकों की सार्वजनिक नाराजगी पर भी मुख्यमंत्री ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लोकतंत्र में सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों के असंतोष का महत्व तभी होता है, जब सरकार गिरने का खतरा हो। सीएम गहलोत ने अपनी सरकार को तभी मजबूत कर लिया था, जब गत वर्ष अगस्त में कांग्रेस के 18 विधायक सचिन पायलट के नेतृत्व में एक माह के लिए दिल्ली चले गए थे। देखा जाए तो गहलोत ने असंतुष्ट विधायकों का इलाज एक वर्ष पहले ही कर दिया था। उस एक माह में जिन 100 से भी ज्यादा विधायकों और अधिकारियों ने गहलोत का साथ दिया वो आज सत्ता की मलाई ही नहीं खा रहे, बल्कि मलाई को बांट भी रहे हैं। रिटायर आईएएस और आईपीएस अफसरों की आयोगों में नियुक्ति से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गहलोत ने अपनी सरकार को किस तरह संभाल रखा हुआ है। चूंकि इस्तीफा देने पर भी असंतुष्ट विधायकों की परवाह नहीं की जा रही है। अशोक गहलोत तो अब सचिन पायलट से बात भी नहीं करते हैं। पायलट को ताजा असंतोष पर प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से ही वार्ता करनी होती है। गहलोत ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से असंतोष से निपटने की जिम्मेदारी पायलट पर ही डाल दी है। अब पायलट और उनके समर्थक राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर कितने भी आरोप लगा लें, लेकिन यह सही है कि नियुक्तियों में उन्हें ही महत्व दिया जा रहा है जिन्होंने गत वर्ष सरकार को गिरने से बचाया। सीएम गहलोत 20 विभागों का बोझ अकेले ढो रहे हैं, लेकिन गहलोत समर्थक कोई भी विधायक मंत्रिमंडल विस्तार की मांग नहीं कर रहा। असल में गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों को रुतबा मंत्री से भी ज्यादा कर रखा है। यही वजह है कि किशनगढ़ के निर्दलीय विधायक सुरेश टाक भी मजबूती के सााि सरकार के पक्ष में है। सीएम गहलोत भले ही टाक को मंत्री न बनाए, लेकिन अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बना कर राज्यमंत्री की सुविधा उपलब्ध करवा सकते हैं। अजमेर के जो कांग्रेसी प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर नजरें गढ़ाए बैठे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि अभी वफादार नेताओं की नहीं बल्कि सरकार को टिकाए रखने वाले विधायकों की जरूरत है। राजस्थान में 200 विधायकों की विधानसभा हैं, जब तक गहलोत के पास 100 से ज्यादा विधायकों का जुगाड़ है, तब कांग्रेस के असंतोष का कोई महत्व नहीं है। मौजूदा समय में गहलोत के 110 विधायकों का जुगाड़ बताया जा रहा है।