राजस्थान में एक हजार करोड़ रुपए वाली माइंस मात्र पांच करोड रुपए में देने के मामले की जांच क्या एसीबी करेगी?

राजस्थान में एक हजार करोड़ रुपए वाली माइंस मात्र पांच करोड रुपए में देने के मामले की जांच क्या एसीबी करेगी?
जयपुर ग्रेटर नगर निगम में 20 करोड़ की मांग करने के मामले में एसीबी ने सिर्फ सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो पर ही मुकदमा दर्ज कर लिया था।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो पहले ही कहा था कि साथ रहने वाले विधायकों को ब्याज सहित भुगतान करुंगा।
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19 जुलाई को दैनिक अख़बार के प्रथम पृष्ठ पर एक खोजपूर्ण खबर छपी है। इस खबर में बताया गया है कि प्रतापगढ़ जिले के पीपलखूंट और केला मेला क्षेत्र की दो माइंस ब्लॉकों को मार्बल पत्थर का बता कर मात्र पांच करोड़ रुपए में राकेश मोरदिया को आवंटित कर दिया गया, जबकि इन ब्लॉकों में सीमेंट बनाने के काम आने वाला लाइम स्टोन भरा पड़ा है। यदि इन ब्लॉको को लाइम स्टोन मान कर दिया जाता तो राजस्थान सरकार को एक हजार करोड़ रुपए के राजस्व की प्राप्ति होती।
कोई 85 हेक्टेयर वाले इन दोनों ब्लॉकों में लाइम स्टोन भरा है, यह बात दैनिक अख़बार ने अपनी मर्जी से नहीं लिखी। 1984 से 85 के बीच हुए सर्वे और 24 जुलाई 2019 को एक कमेटी की रिपोर्ट में भी माना गया कि इन ब्लॉको में लाइम स्टोन है। लेकिन 20 फरवरी 2020 को खान विभाग के अतिरिक्त निदेशक एसएन डोडिया को एपीओ करने के बाद 28 फरवरी 2020 को तीसरी रिपोर्ट में कहलाया गया कि दोनों ब्लॉक मार्बल की श्रेणी में ही आते हैं।
इस रिपोर्ट के मिलते ही लाइम स्टोन से भरे ब्लॉको का आवंटन मात्र पांच करोड़ रुपए में कर दिया गया। दैनिक अख़बार में छपी खबर का उल्लेख, मैंने अपने ब्लॉग में इसलिए किया है ताकि एसीबी के समक्ष इस मामले की जांच कराने की मांग की जा सके। दैनिक अख़बार प्रिंट मीडिया में आता है और प्रिंट मीडिया को सोशल मीडिया से ज्यादा विश्वसनीय और गंभीर माना जाता है। दैनिक अख़बार का प्रबंधन अपनी खबर के लिए जिम्मेदार भी हैं। ऐसे में एसीबी इस मामले में जांच में दैनिक अख़बार का सहयोग भी ले सकती है।
एक हजार करोड़ रुपए की प्राकृतिक संपदा की लूट की जांच की मांग इसलिए उठीए क्योंकि पिछले दिनों एसीबी ने जयपुर ग्रेटर नगर निगम में 20 करोड़ रुपए की मांग करने के मामले में भी मुकदमा दर्ज किया था। मुकदमे का आधार सोशल मीडिया पर एक वीडियो ही है। हालांकि यह वीडियो एसीबी ने अपनी ओर से नहीं बनवाया था, लेकिन सोशल मीडिया को गंभीरता से लेते हुए मुकदमा दर्ज कर लिया और निगम की मेयर सौम्या गुर्जर के पति राजाराम गुर्जर और बीवीजी कंपनी के कथित प्रतिनिधि संदीप चौधरी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।
जबकि इस मामले में एक रुपए का लेन देन भी नहीं हुआ है। बीवीजी कंपनी ने भी संदीप चौधरी के कंपनी का प्रतिनिधित्व होने से इंकार किया है, लेकिन फिर भी एसीबी और उसके डीजी बीएल सोनी की तारीफ की जानी चाहिए कि भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने वाला काम किया है। एसीबी ने जो हिम्मत जयपुर ग्रेटर निगम के मामले में दिखाई वो ही हिम्मत और तत्परता माइंस आवंटन के मामले में दिखानी चाहिए।
माइंस वाले मामले में भ्रष्टाचार की खुशबू इसलिए भी आती है कि आवंटन में सिर्फ मार्बल निकालने की शर्त नहीं लगाई गई है। यदि ईमानदारी होती तो मार्बल पत्थर ही निकालने की शर्त लगाई जाती। असल में खान विभाग के प्रमुख शासन सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव सुबोध अग्रवाल को भी पता था कि प्रतापगढ़ के दोनों ब्लॉकों में लाइम स्टोन भरा पड़ा है। माल भरा होने के कारण ही सुबोध अग्रवाल अपने से जूनियर मुख्य सचिव निरंजन आर्य के अधीन काम करने को तैयार हो गए। आमतौर पर जब किसी जूनियर आईएएस को सीएस बनाया जाता है तो सीनियर आईएएस सचिवालय छोड़ कर अन्य राज्य स्तरीय प्राधिकरण मंडल आदि में तैनात हो जाते हैं। 70 साल की प्रशासनिक व्यवस्था को तोड़ कर सुबोध अग्रवाल खान विभाग के प्रमुख शासन सचिव बने। अग्रवाल खान विभाग में सिर्फ मार्बल पत्थर के लिए तो नहीं आएघ् एसीबी के पास इस मामले में जांच के बहुत से आधार है और ये आधार जयपुर नगर निगम से ज्यादा मजबूत हैं। सब जानते हैं कि एसीबी के डीजी बीएल सोनी किसी के भी दबाव में नहीं आते हैं। उनकी ईमानदारी पर भी किसी को शक नहीं है। राजस्थान से भ्रष्टाचार मिटाने की धुन सोनी पर सवार है। इसलिए बड़े बड़े लोगों को पकड़ा जा रहा है। सोनी राजनीतिक नजरिए से भी कोई काम नहीं करते हैं। प्रदेशवासियों को उम्मीद है कि इस एक हजार करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार के मामले में भी एसीबी मुकदमा दर्ज करेगी।
ब्याज सहित भुगतान:
प्रतापगढ़ जिले में जो एक हजार करोड़ रुपए वाली माइंस मात्र पांच करोड़ रुपए में दी है, वह कांग्रेस विधायक परसराम मोरदिया के पुत्र राकेश मोरदिया की है। गत वर्ष इन्हीं दिनों में जब राजस्थान में कांग्रेस पार्टी और सरकार पर राजनीतिक संकट आया था, तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि जो विधायक उनके साथ खड़े हैं, उन्हें ब्याज सहित भुगतान करुंगा। सब जानते हैं कि गहलोत ने एक माह तक जयपुर और जैसलमेर की होटलों में 100 से भी ज्यादा विधायकों को अपने साथ रखा था। इन विधायकों में परसराम मोरदिया भी शामिल थे। राज्य सरकार की मोरदिया परिवार पर कितनी मेहरबानी है, इस बात का पता इससे भी चलता है कि 273 करोड़ रुपए के बकाया के मामले में अब हाईकोर्ट की डबल बेंच में अपील नहीं की जा रही है। यानी सिंगल बेंच ने जो फैसला सरकार के विरुद्ध दिया है उसे ही स्वीकार किया जा रहा है। यदि यह मामला मोरदिया परिवार का नहीं होता तो राज्य सरकार डबल बेंच में पराजित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट तक जाती। ऐसे कई मामलों में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची है। 273 करोड़ रुपए की राशि कोई कम नहीं होती हैए लेकिन जब किसी को ब्याज सहित भुगतान करना हो तो हजार दो हजार करोड़ कोई मायने नहीं रखते हैं। सरकार बचाने वालों का हक तो बनता ही है।