अजमेर के रुद्रदत्त मिश्र जैसे क्रांतिकारियों के संघर्ष के कारण ही देश को आजादी मिली। चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ काम किया।

अजमेर के रुद्रदत्त मिश्र जैसे क्रांतिकारियों के संघर्ष के कारण ही देश को आजादी मिली। चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ काम किया।
अजमेर में बना रुद्रदत्त मिश्रा सर्किल। बेटी स्नेहलता मिश्रा को पिता के संघर्ष पर गर्व है।
31 जुलाई को 110वीं जयंती पर विशेष।
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अजमेर के महावीर सर्किल के निकट रहने वाली सुप्रसिद्ध गायकोनॉलोजिस्ट डॉ. स्नेहलता मिश्रा को इस बात पर गर्व है कि उनके पिता स्वर्गीय रुद्रदत्त मिश्रा की देश को आजाद करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर मिश्रा ने भी क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। स्वर्गीय मिश्रा की 110वीं जयंती पर मोबाइल नम्बर 9261237999 पर डॉ. स्नेहलता मिश्रा की हौसला अफजाई की जा सकती है। रुद्रदत्त मिश्रा का जन्म 31 जुलाई 1911 को अजमेर जिले के ब्यावर में हुआ था। सात वर्ष की उम्र में ही मिश्रा के पिता का निधन हो गया। 17 साल की उम्र में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। अजमेर में रामचन्द्र, जगदीश दत्त व्यास आदि के साथ मिलकर युवा क्रांतिकारियों का एक दल बनाया और अंग्रेज सरकार के खिलाफ कार्यवाही शुरू की। अर्जुनलाल सेठी जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आने के बाद हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन भी किया। इस आर्मी का संपर्क तब चन्द्रशेखर आजाद, कैलाशपति, विमल प्रसाद जैन, प्रो. नंदकिशोर निगम सरीखे क्रान्तिकारियों से रहा। देश के प्रमुख क्रांतिकारी संगठन के कामकाज से जब अजमेर आते तो रुद्रदत्त मिश्रा से ही संवाद करते। मिश्रा 1930 में जब राजकीय महाविद्यालय में विद्यार्थी थे, तब उन्हें निर्देश मिले की दिल्ली आकर क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करें। मिश्रा ने कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर दिल्ली चले गए और अंग्रेज सरकार को भगाने के लिए पिस्तौल, गोला बारूद आदि सामग्री क्रांतिकारियों को इधर से उधर पहुंचाने लगे। चूंकि अंग्रेजों के शासन में अजमेर को क्रांतिकारियों के लिए सुरक्षित स्थल माना जाता था, इसलिए क्रांतिकारियों का आना जाना लगा रहता था। इस बीच कैलाशपति को अंग्रेजी शासन में गिरफ्तार कर सरकारी गवाह बना लिया। कैलाशपति ने जो जानकारी दी, उसके आधार पर ही 11 नवम्बर 1930 गिरफ्तार कर लिया। मिश्रा की यह पहली गिरफ्तारी थी। इस गिरफ्तारी के आद अन्य क्रांतिकारियों के साथ साथ मिश्रा पर भी दिल्ली षडय़ंत्र केस के नाम से मुकदमा चला। इस मुकदमें में मिश्रा के अलावा, धनवंतरि, सच्चिदानंद, हीरानंद वत्स्यान, बीजी वैशम्पायन, विद्याभूषण शुक्ल, प्रो. नंद किशोर निगम, विमल प्रसाद जैन, डॉ. रामबाबू राम, गजानंद शिव पोद्दार, मास्टर हरकेश, ख्यालीराम गुप्त, मास्टर हरद्वारीलाल, कपूरचंद जैन, भागीरथ आदि आरोपी बनाए गए। इस मुकदमे में चन्द्रशेखर आजाद, भवानी सहाय, भवानी सिंह, विशम्भर नाथ, सुशीला दीदी, दुर्गा भाभी, यशपाल प्रकाशवती आदि को फरार घोषित किया। इन सभी पर आरोप लगाया गया कि इन्होंने वायसराय की स्पेशल ट्रेन में बम रखने का काम किया है। इस कार्य को भारत के सम्राट के तख्त हो उलटने वाला बताया गया। मिश्रा पर दिल्ली में यह मुकदमा चल ही रहा था कि एक और मुकदमा दर्ज हो गया। इस मुकदमे में मिश्रा पर कोर्ट में पुलिस अधिकारी सरदार बहादुर बाघसिंह को जूतों और घूंसों से पीटने का आरोप लगाया गया। इस मुकदमे में मिश्रा को दो वर्ष की सजा हुई। जेल से बाहर आने के बाद मिश्रा फिर से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। मिश्रा ने दिखाने के लिए लाहौर के डीएवी कॉलेज में प्रवेश ले लिया। लेकिन अंग्रेज सरकार को जल्द ही पता चल गया कि मिश्रा एक क्रांतिकारी हैं। पंजाब के गवर्नर ने मिश्रा को चौबीस घंटे में लाहौर छोड़ने के आदेश दिए। लाहौर से निकलने के बाद मिश्रा बनारस आ गए और यहां के विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया। मिश्रा ने अपने कुछ साथियों के लिए शम्भू नारायण सक्सेना के साथ एक पिस्तौल भेजी थी, लेकिन दुर्भाग्यवश शम्भू नारायण अजमेर के रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार हो गए। इसके बाद मिश्रा को भी बनारस से गिरफ्तार कर लिया गया। अजमेर में चले मुकदमे में मिश्रा को दो वर्ष की सजा सुनाई गई। दो वर्ष की सजा भुगतने के बाद मिश्रा फिर से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। अंग्रेज अधिकारी डोगरा को गोली मारने और खलील गोरी को जख्मी करने के आरोप में मिश्रा को फिर गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन सबूतों के अभाव में मिश्रा जमानत पाने में सफल रहे। बनारस में रहते हुए मिश्रा ने आधुनिक चिकित्सा पद्धति का छह वर्षीय कोर्स भी किया। 1941 में मिश्रा ग्वालियर के राजकीय आयुर्वेद कॉलेज में प्राध्यापक बन गए, लेकिन पारिवारिक कारणों से 1942 में अलवर आना पड़ा। अलवर में राजकीय डूंगराज हाईस्कूल में शिक्षक की नौकरी की। लेकिन अंग्रेजी शासन के दबाव के कारण मिश्रा को नौकरी से निकाल दिया गया। मिश्रा एक बार फिर अपने गृह जिले अजमेर में आ गए। 1947 में देश जब आजाद हुआ तो मिश्रा को अलवर में औषद्यालय अधिकारी के पद पर नौकरी मिल गई। मिश्रा अजमेर में भी जिला आयुर्वेद अधिकारी के पद पर कार्यरत रहे। मिश्रा 31 जुलाई 1971 तक राजकीय सेवा में रहे। लंबे संघर्ष के कारण मिश्रा हृदय रोग से पीड़ित हो गए। 4 जनवरी 1980 को मिश्रा की जीवन यात्रा समाप्त हो गई। मिश्रा ने देश की आजादी के लिए जो संघर्ष किया, उस पर पूरे देश को गर्व है। आज ऐसे क्रांतिकारियों की वजह से ही हम सब आजाद माहौल में सांस ले रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी को बोलने की आजादी है। पिछले 70 सालों में देश के चहुंमुखी विकास भी किया है। मिश्रा के संघर्ष को देखते हुए ही अजमेर नगर निगम ने मेडिकल कॉलेज के सर्किल का नाम स्वर्गीय रुद्रदत्त मिश्रा सर्किल रखा है। आज इस सर्किल को स्वर्गीय मिश्रा के नाम से ही जाना जाता है।
अजमेर के रुद्रदत्त मिश्र जैसे क्रांतिकारियों के संघर्ष के कारण ही देश को आजादी मिली। चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ काम किया।