मनमर्जी से चुने जा रहे रेल कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारी, लोकतंत्र की उड़ रही धज्जियां

मनमर्जी से चुने जा रहे रेल कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारी, लोकतंत्र की उड़ रही धज्जियां-गंगापुर सिटी
विभिन्न रेल कर्मचारी संगठनों के चुनाव में लोकतंत्र की जमकर धज्जियां उड़ रही हैं। चुनाव की औपचारिकता के बीच आला कमान की मनमर्जी से पदाधिकारियों को चुना जा रहा है। मान्यता प्राप्त से लेकर पंजीकृत सभी छोटे-बड़े कर्मचारी संगठनों का यही हाल है। इन संगठनों में छोटे-बड़े सभी पदाधिकारियों का चुनाव आकाओं की मर्जी पर निर्भर है। हालात यह है कि कई संगठनों के पदाधिकारी वर्षों से एक ही पद टिके हुए हैं और कई संगठनों के पदाधिकारियों को दो-चार साल में बदल दिया जाता है। कई पदाधिकारी मंडल और जोनल स्तर से लेकर फेडरेशनों तक के पद जमे हुए हैं।
कर्मचारियों ने बताया कि कई प्रमुख संगठनों के चुनाव में सदस्यों के हाथ उठाने की औपचारिकता तक नहीं निभाई जाती। प्रमुख पदाधिकारी की घोषणा के साथ ही सदस्य को चुना हुआ मान लिया जाता है। संगठन चुनावों में सबकुछ पहले से ही फिक्स होता है। नामांकन उन्हीं सदस्यों से भरवाया जाता है, जिसे चुना जाना है। नामांकन भरने के साथ ही सरस्य का चुनाव जीतना निश्चित होता है, क्योंकि विरोध में कोई दूसरा मैदान में नहीं होता। कई चुनावों में तो मौके पर ही या चुने जाने के बाद बाद में नामांकन-पत्र भरने की औपचारिकता निभाई जाती है। चुनाव लड़ने के इच्छुक कर्मचारियों को नामांकन तक नहीं भरने दिया जाता। अगर कोई सदस्य जबरन नामांकन भर भी देता है तो
उसका हारना निश्चित होता है। नामांकन भरने वाले सदस्य को फिर संगठन में रहने नहीं दिया जाता। उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाती है। इसके बाद उसका नौकरी करना तक मुश्किल हो जाता है।
कर्मचारी करते हैं विरोध
कई कर्मचारी और सदस्य इस मनमर्जी से चुनाव का जमकर विरोध भी करते हैं। लेकिन सदस्या खोने और बाद में नौकरी करना दुश्वार करने के चलते खुलकर कहने से बचते हैं। हालांकि चुनावों कई बार यह विरोध देखने को भी मिला है। लेकिन अंदर ही अंदर इस विरोध को कुचल दिया जाता है। बाहर कुछ सामने नहीं आता।
 इन कर्मचारियों का कहना है कि संगठन चुनाव में लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। चुनाव लड़ने के इच्छुक सभी से नामांकन भरवाया जाना चाहिए।
सुख-सुविधा नहीं छोड़ना चाहते कर्मचारी
सूत्रों ने बताया कि कर्मचारी संगठन में लोकतंत्र लागू नहीं होने देने का मुख्य कारण पदाधिकारियों का सुविधा भोगी होना है। लोकतंत्र लागू होते ही अधिकतर पदाधिकारियों की सुख-सुविधा छिनना निश्चित है। पदाधिकारियों को डर है कि लोकतंत्र लागू होते ही वर्षों से जमी उनकी कुर्सी जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि विभिन्न संगठनो के साथ कर्मचारियों का हर साल लाखों रुपए का चंदा आता है। सदस्यता शुल्क के अलावा सदस्यता बने रहने के लिए कर्मचारी हर साल चंदा देते हैं। इसके अलावा विभिन्न सुख-सुविधाएं और मनमर्जी से ड्यूटि पर आने-जाने की अघोषित छूट मिलती है।
सूत्रों ने बताया कि पिछले दिनों कराए एक सर्वे में सामने आया कि विभिन्न कर्मचारी संगठनों के अधिकांश पदाधिकारी वर्ष भर अपने कार्य स्थलों से गायब रहते हैं। पिछले दिनों कोटा मंडल के एक पदाधिकारी को कर्मचारियों को समय पर आॅफिस आने के लिए पाबंद करना भारी पड़ गया। संगठन पदाधिकारियों अधिकारी के खिलाफ नारेबाजी शुरु कर दी।