अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। कुछ इसी तर्क पर राजस्थान के चित्तौड़ में चंदेलिया प्लांट के लिए घोसुंडा बांध से पानी ले रहा है वेदांता समूह। चांदी के जूते के नीचे दबी रहती हैं, सरकारें और अधिकारी व जनप्रतिनिधि।

अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। कुछ इसी तर्क पर राजस्थान के चित्तौड़ में चंदेलिया प्लांट के लिए घोसुंडा बांध से पानी ले रहा है वेदांता समूह।
चांदी के जूते के नीचे दबी रहती हैं, सरकारें और अधिकारी व जनप्रतिनिधि।
वेदांता की कारगुजारियों के कारण चित्तौड़वासी प्यासे मर रहे हैं।
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राजस्थान के चित्तौड़ जिले के चंदेलिया में हिन्दुस्तान जिंक (अब वेदांता समूह) का बहुत बड़ा प्लांट है। प्रदेश के विभिन्न स्थानों से जो कच्चा खनिज निकलता है उसेचंदेलिया के प्लांट में ही गुणवत्तायुक्त बनाया जाता है। इसमें अभ्रक और ताम्बा जैसा कीमती धातु भी शामिल हैं। सब जानते हैं कि सोने का अंडा देने वाली सरकारी हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड पर अब वेदांता समूह का कब्जा हो गया है, इसलिए जिंक की संपत्तियों का मालिकाना हक वेदांता के पास ही है। पूर्व में जिंक और राज्य सरकार के बीच एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार चित्तौड़ के घोसुंडा गांव में जिंक एक बांध का निर्माण करेगा। बांध के भराव क्षेत्र में आने वाले गांवों के ग्रामीणों को मुआवजा भी जिंक ही देगा। बांध का जलस्तर 426 मीटर तक रखा गया हैद्व लेकिन शर्तों में बांध के पानी पर प्राथमिकता वेदांता समूह को दी गई। बांध के 424 मीटर तक के जल स्तर पर चंदेलिया प्लांट को पानी की सप्लाई की जाएगी। 424 मीटर के बाद घोसुंडा बांध के आसपास के ग्रामीणों और 20 किलोमीटर दूर चित्तौड़ शहर के नागरिकों को पेयजल की सप्लाई होगी। लेकिन इसे वेदांता समूह की कारगुजारी ही कहा जाएगा कि बांध के निर्माण के बाद से अब तक बांध का जलस्तर 424 मीटर से अधिक हुआ ही नहीं। आज तक भी बांध की क्षमता 426 मीटर नहीं हो पाई है। ऐसे में वेदांता समूह तो अपने चंदेलिया प्लांट के लिए पर्याप्त मात्रा में बांध से पानी ले रहा है और चित्तौड़ की जनता प्यासी मर रही है। यानी अपना काम बनता तो भाड़ में जाए जनता। जो वेदांता समूह अखबारों और टीवी पर बड़े बड़े विज्ञापन देकर स्वयं को समाजसेवी और विकास में भागीदार बताता है वही वेदांता समूह चित्तौड़ के लोगों के साथ विश्वासघात कर रहा है यदि बांध की क्षमता 424 मीटर से ज्यादा की जाती है तो वेदांता समूह को 15 गांवों के लोगों को मुआवजा देना होगा। यह मुआवजा नहीं देना पड़े, इसलिए बांध की भराव क्षमता को नहीं बढ़ाया जा रहा है। क्षेत्रवासियों का आरोप है कि वेदांता समूह ने ही अपने प्रभाव से बांध के भराव क्षेत्र वाली भूमि पर 11 किलोमीटर का राष्ट्रीय राजमार्ग भी बना दिया है7 इससे अब बांध की भराव क्षमता में वृद्धि करना और मुश्किल हो गया है। राजस्थान में सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की। दोनों दलों की सरकारें वेदांता समूह के चांदी के जूते के नीेच दबी रहती है। प्रशासनिक अधिकारी और जनप्रतिनिधि तो वेदांता के चांदी के जूतों को स्वयं ही अपने सिर पर रख लेते हैं। चांदी के जूतों का ही असर है कि आज वेदांता समूह तो घोसुंडा बांध से अपने प्लांट के लिए भरपूर मात्रा में पानी ले रहा है और चित्तौड़ के लोग प्यासे मर रहे हैं। चित्तौड़ वासियों की कोई सुनने वाला नहीं है। उन अड़चनों को हटाने को कोई तैयार नहीं है जो बांध के जलस्तर को बढ़ाने में बाधक है। जब तक बांध का जल स्तर 426 मीटर नहीं होगा, तब तक चित्तौड़ के लोगों को पानी नहीं मिलेगा। वेदांता समूह भी बांध के जल स्तर को 424 मीटर से नीचे ही रखता है, ताकि चित्तौड़ के लोगों को पानी नहीं देना पड़े। यानी जो बांध सरकारी जमीन पर बना है उसके पानी पर वेदांता समूह का एकाधिकार है7 वेदांता समूह जलदाय विभाग के नाम मात्र का पानी दे रहा है ताकि किसी आरोप से बचा जा सके। यदि बांध की भराव क्षमता बढ़ती है तो वेदांता समूह को 15 गांवों की दो हजार बीघा भूमि का मुआवजा देना पड़ेगा। ऐसे प्राकृतिक संसाधनों का मुफ्त में उपयोग कर ही वेदांता समूह मालामाल हो रहा है। पूर्व में वेदांता समूह ने चित्तौड़ के हसनपुरा, रूपाखेड़ी, तेजपुरा और पचदेवरा गांव के विस्थापित ग्रामीणों के लिए बस्तियों का निर्माण करवाया था, लेकिन आज इन बस्तियों में मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है। विस्थापितों को सुनने वाला भी कोई नहीं है। वेदांता समूह के विज्ञापनों में नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाने का तो दवा किया जा रहा है, लेकिन ऐसे दावों की हकीकत चित्तौड़ में आकर देखी जा सकती है। घोसुंडा बांध से जुडे मामले की जानकारी मोबाइल नम्बर 9950484730 पर सरपंच कालूराम जाट से ली जा सकती है।