जिन लोगों ने सरकार गिराने का कुप्रयास किया, उन्होंने ही जयपुर में भाजपा का जिला प्रमुख बनवाया-मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।

जिन लोगों ने सरकार गिराने का कुप्रयास किया, उन्होंने ही जयपुर में भाजपा का जिला प्रमुख बनवाया-मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।
तो फिर सचिन पायलट और उनके समर्थकों की लगातार उपेक्षा क्यों की जा रही है? कांग्रेस की स्थिति सचिन पायलट के जन्मदिन पर देखी जा सकती है।
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राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार कैसे चलाएं यह कांग्रेस का आंतरिक मामला है। लेकिन 6 सितम्बर को हुए जयपुर जिला प्रमुख के चुनाव में कांग्रेस की हार पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जो टिप्पणी दी है, उससे सरकार चलाने का मामला सार्वजनिक हो जाता है। सब जानते हैं कि गत वर्ष जुलाई में जब सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस के 18 विधायक दिल्ली चले गए थे, तब सीएम गहलोत ने पायलट को धोखेबाज निकम्मा, नकारा आदि कहा और भाजपा पर हार्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया। हालांकि एक माह बाद पायलट और 18 विधायक वापस आ गए और गहलोत की सरकार बनी रही। अब 14 माह बाद एक बार फिर गहलोत ने भाजपा पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया है। सवाल उठता है कि आखिर सीएम गहलोत कांग्रेस में हॉर्स ट्रेडिंग को रोकने का काम क्यों नहीं करते है? जयपुर जिला प्रमुख के चुनाव के संदर्भ में दिया गया गहलोत का बयान सचिन पायलट पर सीधा हमला है। कांग्रेस की रमादेवी चोपड़ा जो भाजपा के समर्थन से जयपुर की जिला प्रमुख बनीं, वे पायलट गुट की बताई जा रही हैं। जयपुर जिला परिषद के 51 वार्डों के चुनाव में कांग्रेस के 27 सदस्य जीते थे, लेकिन दो सदस्य रमादेवी और जेकी कुमार कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में आ गए। भाजपा ने रमादेवी को अपना उम्मीदवार बना कर कांग्रेस को मात दे दी। अब इस राजनीतिक समीकरण को ही सीएम गहलोत भाजपा की हॉर्स ट्रेडिंग से जोड़ रहे हैं। जबकि यह मामला पूरी तरह कांग्रेस का आंतरिक खींचतान से जुड़ा है। सब जानते हैं कि मंत्रिमंडल फेरबदल और राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर गहलोत पर कांग्रेस हाईकमान का भी दबाव है, लेकिन विभिन्न चुनाव से लेकर सीएम की एंजियोप्लास्टी तक के कारण बदलाव को टाला जाता रहा है। सचिन पायलट बार बार कह रहे हैं कि कांग्रेस के जिन कार्यकर्ताओं ने भाजपा के शासन में संघर्ष किया, उन्हें कांग्रेस सरकार में सम्मान मिलना चाहिए। लेकिन पायलट की एक नहीं सुनी जा रही है। जब पायलट और उनके समर्थकों की लगातार उपेक्षा हो रही है, तब उन्हीं से सहयोग की उम्मीद क्यों रखी जाती है? क्या पायलट और उनके समर्थक विधायक व कार्यकर्ता सिर्फ सरकार और संगठन का सम्मान बढ़ाने के लिए हैं? आखिर पायलट के समर्थक कब तक धैर्य दिखाएं? 6 सितम्बर को पायलट समर्थक विधायक वेद प्रकाश सोलंकी को अवसर मिला तो जयपुर में कांग्रेस की हार हो गई। अब इस हार का ठीकरा भाजपा और पायलट पर फोड़ा जा रहा है। जहां तक सचिन पायलट की लोकप्रियता का सवाल है तो 7 सितम्बर को जन्मदिन वाले दिन प्रदेश भर में देखी गई है। समर्थकों ने प्रदेशभर में 10 लाख पौधे लगाकर रिकॉर्ड बनाया है तो कांग्रेस के अधिकांश कार्यकर्ताओं ने पायलट जिंदाबाद के नारे लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह तब है, जब पिछले 14 माह से पायलट और उनके समर्थकों को राजनीतिक आधार पर दबाया और कुचला जा रहा है। उल्टे पायलट समर्थकों से चुन चुन कर बदला लिया जा रहा है। 7 सितम्बर को अखबारों में पायलट के जन्मदिन के बड़े बड़े विज्ञापन छपे हैं। ग्राम पंचायत के सरपंच से लेकर पंचायत समिति के प्रधान तक ने पायलट के जन्मदिन का विज्ञापन छपवाए हैं। जन्मदिन के जश्न का माहौल किसी एक जिले में नहीं बल्कि प्रदेशभर में देखा गया। जयपुर स्थित आवास पर पायलट को

बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। सीएम अशोक गहलोत को जयपुर में जिला प्रमुख के चुनाव में कांग्रेस की हार और 7 सितम्बर को पायलट के जश्न के माहौल से सबक लेना चाहिए। शायद गहलोत को उम्मीद थी कि कुछ दिनों में पायलट और उनके समर्थकों का जोश ठंडा पड़ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पायलट की लोकप्रियता अभी भी बनी हुई है तथा समर्थक अपनी उपेक्षा का बदला लेने की स्थिति में है। यह सही है कि पायलट के 18 विधायकों के बगैर भी गहलोत अपनी सरकार चला सकते हैं, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को नुकसान होगा। हार का ट्रेलर जयपुर के जिला प्रमुख के चुनाव में देखने को मिल गया है। अब देखना है कि कांग्रेस का हाईकमान राजस्थान के मौजूदा राजनीतिक हालातों को किस तरह लेता है।