राजनीति में तकदीर हो तो अशोक गहलोत जैसी हो। मंत्रिमंडल में फेरबदल और राजनीतिक नियुक्तियों का मामला फिर टला।

राजस्थान में धरियावद और वल्लभनगर विधानसभा के उपचुनाव 30 अक्टूबर को होंगे।
राजनीति में तकदीर हो तो अशोक गहलोत जैसी हो। मंत्रिमंडल में फेरबदल और राजनीतिक नियुक्तियों का मामला फिर टला।
निर्दलीय और बसपा के विधायकों के ख्वाब भी पूरे नहीं हो रहे।
बसपा के 6 विधायकों को सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखने का अंतिम अवसर।
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केंद्रीय चुनाव आयोग ने 28 सितंबर को देश की 30 विधानसभाओं के उपचुनावों की घोषणा की है। इनमें राजस्थान के उदयपुर क्षेत्र की धरियावद और वल्लभनगर की विधानसभा भी शामिल हैं। इन में 8 अक्टूबर तक नामांकन और फिर 30 अक्टूबर को मतदान होगा। परिणाम 2 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। वल्लभनगर की सीट पर कांग्रेस के विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत थे जबकि धरियावद सीट पर भाजपा विधायक गौतम लाल मीणा थे। शक्तावत का निधन 20 जनवरी 2021 तथा मीणा का निधन 19 मई 2021 को कोरोना संक्रमण से हुआ। उपचुनाव की घोषणा होने से राजस्थान की राजनीति खासकर कांग्रेस के संदर्भ में यह डायलॉग फिट बैठता है कि तकदीर हो तो अशोक गहलोत जैसी हो। अशोक गहलोत को जादू आता है या नहीं यह तो पता नहीं, लेकिन राजनीति में गहलोत तकदीर के धनी हैं। गहलोत दिसंबर 2018 में मुख्यमंत्री बने थे और तभी से सचिन पायलट से उनकी प्रतिद्वंदिता चल रही है। इस प्रतिद्वंदिता का इंटरवल जुलाई 2020 में तब हुआ, जब सचिन पायलट कांग्रेस के 18 विधायकों को लेकर दिल्ली चले गए। दिल्ली से लौटे तो कहा गया कि दोनों में समझौता हो गया है। हालांकि तब तक पायलट के पास से कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद छीन चुका था। पिछले एक वर्ष से गहलोत मंत्रिमंडल में फेरबदल का दबाव रहा। लेकिन किसी न किसी कारण से फेरबदल टलता रहा। पिछले एक पखवाड़े में दो बार पायलट की मुलाकात राहुल गांधी से हुई है। तभी से यह माना जा रहा है कि अब मंत्रिमंडल फेरबदल और राजनीतिक नियुक्तियां हो जाएंगी। लेकिन 28 सितंबर को केंद्रीय चुनाव आयोग ने राजस्थान के दो उपचुनावों की घोषणा कर दी। स्वाभाविक है कि फेरबदल और नियुक्तियों का मामला एक बार फिर टल जाएगा। 30 अक्टूबर को मतदान होने से जाहिर है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान मंत्रिमंडल का फेरबदल और नियुक्तियां संभव नहीं है। कहा जा सकता है कि गहलोत से दबाव अपने आप हट गया है। गहलोत जवाब दें या नहीं, लेकिन कई मौकों पर गहलोत के प्रतिद्वंदी अपने आप हार जाते हैं। प्रतिद्वंदियों की लाख कोशिश के बाद भी फेरबदल नहीं करवाया जा सका है, अब गहलोत सरकार के तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं।
विधायकों के ख्वाब पूरे नहीं:
प्रदेश के सभी 13 निर्दलीय विधायक गहलोत सरकार के समर्थन दे रहे हैं। इसी प्रकार बसपा के 6 विधायकों ने अपनी पार्टी को छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ली है। यह सभी 19 विधायक मंत्री पद अथवा सरकार में अन्य कोई पद प्राप्त करने के इच्छुक हैं, लेकिन सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट में चल रही खींचतान की वजह से इन विधायकों के ख्वाब भी पूरे नहीं हो रहे हैं। इसे सीएम गहलोत का मैनेजमेंट ही कहा जाएगा कि कोई भी विधायक सार्वजनिक तौर पर बयान नहीं दे रहा है। लेकिन सीएम गहलोत भी ऐसे विधायकों की इच्छा को जानते हैं। जो निर्दलीय और बसपा वाले विधायक सरकार को समर्थन दे रहे हैं, उन्हें अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में पूरी छूट मिली हुई है। एसडीएम और डीएसपी स्तर तक के अधिकारी इन्हीं विधायकों की सिफारिश से नियुक्त हो रहे हैं। विकास के कार्यों में भी इन 19 विधायकों को प्राथमिकता मिली हुई है।
अंतिम अवसर:
बसपा के 6 विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने का विवाद सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इन विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए बसपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर रखी है। इन विधायकों ने अभी तक भी अपना पक्ष नहीं रखा है। 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान इन सभी 6 विधायकों को पक्ष रखने के लिए अब अंतिम अवसर दिया गया है। यदि अगले चार सप्ताह में विधायकों की ओर से पक्ष नहीं रखा गया तो एक तरफा निर्णय भी हो सकता है। बसपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले विधायक हैं, लखन सिंह, राजेंद्र सिंह गुढा, दीपचंद खेडिय़ा, जोगेंद्र सिंह अबाना, संदीप कुमार यादव और वाजिद अली।