तो क्या मानसिक तनाव के दौर से गुजर रहे हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत? सचिन पायलट के नाम से भी परहेज है, इसलिए कांग्रेस की रैली की तैयारियों की सरकारी खबर में पायलट का नाम तक नहीं लिखा।

तो क्या मानसिक तनाव के दौर से गुजर रहे हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत?
सचिन पायलट के नाम से भी परहेज है, इसलिए कांग्रेस की रैली की तैयारियों की सरकारी खबर में पायलट का नाम तक नहीं लिखा।
क्या पायलट के बगैर कांग्रेस 2023 का चुनाव जीत पाएगी?
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3 दिसंबर को मंत्रिपरिषद की बैठक में एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि यदि मैं 100 विधायकों को एकजुट नहीं रखता तो आज मंत्रि परिषद की यह बैठक नहीं हो पाती। मंत्री विश्वेंद्र सिंह, हेमाराम चौधरी और रमेश मीणा का नाम लेकर गहलोत ने कहा कि ये तो हमें छोड़कर चले गए थे। इसमें मंत्रियों के साथ ही कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल और अजय माकन भी मौजूद थे। मंत्रि परिषद की बैठक 12 दिसंबर को होने वाली कांग्रेस की राष्ट्रव्यापी रैली की तैयारियों को लेकर थी। बैठक में ऐसा कोई संदर्भ नहीं था, जिसमें गहलोत पुरानी घटनाओं का जिक्र करते, लेकिन गत 21 नवंबर के मंत्रिमंडल फेरबदल के बाद से ही देखा जा रहा है कि सीएम गहलोत हर बार गत वर्ष के राजनीतिक संकट का उल्लेख करते हैं। शायद 21 नवंबर का फेरबदल गहलोत को अभी भी रास नहीं आ रहा है। उन्हें इस बात से नाराजगी है कि जिन विधायकों की वजह से 34 दिनों तक होटलों में रहना पड़ा उन्हीं विधायकों को फिर से मंत्री बनाना पड़ा है। सचिन पायलट को लेकर गहलोत के मन में कितनी नाराजगी है, इसका अंदाजा 3 दिसंबर को गहलोत द्वारा सोशल मीडिया पर की गई पोस्ट से भी लगाया जा सकता। 12 दिसंबर को होने वाली रैली का जायजा लेने के लिए जब गहलोत अपने मंत्रियों और कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ रैली स्थल विद्याधर नगर के स्टेडियम पर पहुंचे तो जयपुर विकास प्राधिकरण के आयुक्त गौरव गोयल ने मानचित्र के आधार पर रैली के मंच आदि की जानकारी दी। इस मौके का एक फोटो अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री की हैसियत से सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है। इस फोटो में सचिन पायलट भी साफ नजर आ रहे हैं, लेकिन गहलोत ने अपनी पोस्ट में केसी वेणु गोपाल, अजय माकन और गोविंद सिंह डोटासरा का नाम तो लिखा, लेकिन पायलट का नहीं। शायद गहलोत को पायलट की मौजूदगी भी पसंद नहीं आ रही थी, लेकिन वेणु गोपाल और अजय माकन के बुलावे पर पायलट रैली स्थल पर पहुंचे थे। सीएम गहलोत के ताजा कथनों से लगता है कि वे मानसिक तनाव के दौर से गुजर रहे हैं, इसलिए नकारात्मक बातें कह रहे हैं। सचिन पायलट के साथ दिल्ली जाने वाले 18 विधायकों में से पांच को मंत्री बनाने पर गहलोत भले ही नाराज हों, लेकिन गहलोत को दिसंबर 2018 के वे दिन याद करने चाहिए, जब कांग्रेस हाईकमान ने सचिन पायलट की जगह उन्हें (गहलोत) को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। तब पायलट की क्या मानसिक स्थिति थी, इसका अंदाजा गहलोत को लगाना चाहिए। गहलोत तो पायलट गुट के पांच मंत्रियों से ही खफा है, जबकि पायलट से तो मुख्यमंत्री का पद ही छीन लिया गया। सवाल यह भी है कि क्या सचिन पायलट के बगैर अशोक गहलोत 2023 में विधानसभा का चुनाव जीत लेंगे? सब जानते हैं कि गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। गत दो बार में जब जब भी गहलोत मुख्यमंत्री बने तब तब कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा। 2013 के चुनाव में तो कांग्रेस को मात्र 21 सीटें मिली। गहलोत कभी भी कांग्रेस की सरकार रिपीट करने में सफल नहीं रहे। पूरा प्रदेश जानता है कि 2018 में सचिन पायलट की वजह से ही कांग्रेस को बहुमत मिला था। अशोक गहलोत का मानसिक तनाव कैसे दूर होगा, यह कांग्रेस आला कमान ही जानता है। शायद सचिन पायलट की शक्त देखते ही गहलोत तनाव में आ जाते हैं।