आखिर अस्पताल में भर्ती 15 वर्षीय मूक बधिर बालिका के बयान क्यों छुपाए?

तीन दिनों तक हंगामे के बाद अलवर के कलेक्टर, एसपी ने कहा कि निर्भया के साथ गैंगरेप नहीं हुआ।

आखिर अस्पताल में भर्ती 15 वर्षीय मूक बधिर बालिका के बयान क्यों छुपाए?

11 जनवरी को राजस्थान के अलवर शहर में जब एक 15 वर्षीय मूक बधिर बालिका जख्मी हालत में मिली, तब राजस्थान और देशभर में हंगामा हुआ। आरोप रहा कि तीन चार व्यक्तियों ने बालिका के साथ गैंगरेप किया और फिर उसे सड़क पर फेंक दिया। 11 जनवरी को ही अलवर की पुलिस अधीक्षक तेजस्वनी गौतम ने माना था कि बालिका के प्राइवेट पार्ट में जख्म है। इस घटना को लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के समक्ष रणथंभौर पर्यटन स्थल पर विरोध प्रदर्शन भी कियागया। भाजपा ने भी विपक्ष की भूमिका निभाते हुए चार सदस्यीय जांच कमेटी बना दी। कमेटी के सदस्यों ने भी जयपुर के जेके लोन अस्पताल में जाकर किशोरी की कुशलक्षेम जानी। इतना ही नहीं बल्कि राज्य की कांग्रेस सरकार की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री ममता भूपेश और महिला आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने भी अस्पताल जाकर किशोरी के स्वास्थ्य की जानकारी ली। तब किसी ने भी नहीं कहा कि किशोरी के साथ गैंगरेप नहीं हुआ है। सरकार की खबरों में भी कहा गया कि सर्जरी के बाद किशोरी स्वस्थ है और मोबाइल पर गेम खेल रही है। स्वाभाविक है कि चिकित्सकों से लेकर विपक्ष के नेता, मंत्रियों आदि ने पीड़ित किशोरी से इशारों में संवाद किया। तब भी सभी का यह मानना रहा कि किशोरी गैंगरेप की शिकार हुई है। सरकार की मंत्री ममता भूपेश और महिला आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने भी यह नहीं कहा कि किशोरी के साथ रेप नहीं हुआ है। इस बीच राजस्थान की कानून व्यवस्था को लेकर राष्ट्रीय मीडिया में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने सवाल खड़े किए गए। तब गहलोत ने भी यह नहीं कहा कि बालिका के साथ रेप नहीं हुआ है। सवाल उठता है कि जब गैंगरेप की खबरें मीडिया में प्रमुखता से प्रकाशित होती रही, तब किसी ने भी अस्पताल में भर्ती किशोरी से रेप के बारे में जानकारी नहीं ली? क्या 11 जनवरी से लेकर 13 जनवरी तक यानी तीनों दिनों तक सरकार बेवजह अपनी बदनामी करवाती रही? यदि किशोरी के साथ रेप नहीं हुआ था तो यह बात पहले दिन ही सामने आ जानी चाहिए थी। किशोरी की सर्जरी तो 11 जनवरी को ही हो गई थी और 12 जनवरी को किशोरी मोबाइल पर गेम खेल रही थी। क्या तब भी पुलिस अथवा सरकार के किसी अधिकारी ने पीड़िता से रेप के बारे में जानकारी नहीं ली? लेकिन 14 जनवरी को अलवर के कलेक्टर ननूमल पहाडिय़ा और पुलिस अधीक्षक तेजस्वी गौतम ने पत्रकारों को बताया कि अब तक कि विभिन्न मेडिकल जांच में मूक बधिर बालिका के साथ रेप की पुष्टि नहीं हुई है। कलेक्टर, एसपी के बयान के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी राजनेताओं को नसीहत दी है कि वे किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले प्रतिक्रिया नहीं दे। यानी जो मुख्यमंत्री तीन दिनों तक बचाव की मुद्रा में थे वे चौथे दिन विपक्ष पर हमलावर हो गए। अब जब कलेक्टर और एसपी रेप की घटना से इंकार कर रहे हैं तब यह मामला स्वत: ही समाप्त हो जाता है। अब यह तर्क भी कोई मायने नहीं रखता कि पीडि़ता के प्राइवेट पार्ट में जख्म होना भी यौन दुराचार की श्रेणी में आता है। जब तीन दिन बाद रेप से इंकार किया जा सकता है तो फिर प्राइवेट पार्ट में जख्म की कहानी भी बदली जा सकती है। इतने गंभीर मामले में अभी तक भी पीड़िता के परिजन का कोई बयान सामने नहीं आया है। पुलिस और प्रशासन भले ही रेप की घटना से इंकार कर रहा हो, लेकिन यह बात भी गंभीर है कि पांच दिन गुजर जाने के बाद भी कोई आरोपी नहीं पकड़ा गया है। पुलिस अपनी कहानी को आगे कैसे बढ़ायेगी यह आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि राजस्थान में गृहमंत्री का प्रभारी भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास ही है।