गैंगरेप की पीडिताएं अब कानूनी कार्यवाही नहीं चाहती हैं। सवाल अब अंधा कानून क्या करेगा?

गैंगरेप की पीडिताएं अब कानूनी कार्यवाही नहीं चाहती हैं। सवाल अब अंधा कानून क्या करेगा?
प्रियंका जी! राजस्थान में नहीं लड़ सकती है लड़की।
प्रतापगढ़ के धरियावद की घिनौनी घटना को देखते हुए कानून में बदलाव हो-एडवोकेट उमरदान लखावत।
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राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य प्रतापगढ़ जिले के धरियावद क्षेत्र में 18 जनवरी को पुलिस ने ऐसे बदमाश गिरोह को पकड़ा है जो सुनसान इलाकों में वाहनों को रोककर लूटपाट करते थे। यदि किसी वाहन में महिला होती थी तो उसके साथ गिरोह के सदस्य बलात्कार भी करते थे। गैंगरेप का वीडियो बना कर धमकाया जाता था कि यदि पुलिस में शिकायत की तो वीडियो को वायरल कर दिया जाएगा। बदनामी से बचने के लिए पीड़ित परिवार पुलिस में शिकायत भी नहीं करता था।
18 जनवरी को गिरफ्तार चार युवकों के मोबाइल फोन से पुलिस ने गैंगरेप के कई वीडियो जब्त किए।

पुलिस ने वीडियो देखकर जब पीड़ित महिलाओं से संपर्क किया तो उन्होंने एक बार फिर कानूनी कार्यवाही से इंकार कर दिया।
पीड़िता और उनके परिजनों ने पुलिस से भी आग्रह किया कि उनकी पहचान को उजागर नहीं किया जाए। पुलिस यदि कोई कानूनी कार्यवाही करेगी तो परिवार की बदनामी होगी। कोई भी पीड़ित महिला अब अदालत के चक्कर नहीं काटना चाहती। समाज में इससे ज्यादा कोई घिनौनी घटना नहीं हो सकती।
टीवी चैनलों पर नारी सशक्तिकरण का उपदेश देने वाली महिलाएं कह सकती है कि बदमाशों को सजा दिलाने के लिए पीड़िताओं को आगे आना चाहिए। कहना आसान है, लेकिन करना बहुत मुश्किल है। जो बदमाश पकड़े गए हैं, उनका सामाजिक स्तर कुछ नहीं है, जबकि पीड़ित महिलाएं सभ्य परिवारों की हैं। उल्टे यह मामला उजागर होने के बाद पीड़ित महिलाओं को बदनामी का डर हो गया है।

सवाल उठता है कि जब महिलाएं शिकायत नहीं करेगी तो फिर बदमाशों को सजा कैसे मिलेगी?
इस सवाल का जवाब देश के अंधे कानून को देना होगेा। न्याय की मूर्ति की आंखों पर तो पट्टी बंधी है। जो सबूत होंगे, उसी आधार पर सजा मिलेगी। राजस्थान के प्रतापगढ़ के धरियावद की घटना को देखते हुए क्या कानून में बदलाव नहीं होना चाहिए? सवाल यह भी है कि आखिर राजस्थान में यह क्या हो रहा है? बेबस, लाचार परिवारों की मजबूरी देखिए कि गैंगरेप जैसी वारदात हो के बाद भी चुप बैठना पड़ रहा है।
क्या ऐसे अपराधियों के साथ हैदराबाद जैसी कार्यवाही नहीं होने चाहिए?
जब धरियावद के अपराधी कानून की आड़ लेकर बच रहे हैं, तब हैदराबाद जैसा सलूक ही होना चाहिए। ऐसे अपराधी एक प्रतिशत भी रहने के लायक नहीं है। यदि धरियावद के अपराधियों को सजा नहीं मिलती है तो समाज में अपराधों को बढ़ावा मिलेगा। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए। यह कोई सामान्य घटना नहीं है।
राजस्थान में चल रही कांग्रेस की सरकार माने या नहीं लेकिन इससे पूरे देश में राजस्थान की बदनामी हो रही है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में नारा दिया है, लड़की हंू, लड़ सकती हंू। लेकिन कांग्रेस शासित राजस्थान में तो लड़की लड़ भी नहीं सकती है। प्रतापगढ़ के धरियावद की घटना ने तो प्रदेश में कानून व्यवस्था की पोल खोल कर रखी दी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि धरियावद की इस घटना पर प्रियंका गांधी राजस्थान की कांग्रेस सरकार से जवाब तलब करेगी। लड़की हंू लड़ सकती हंू का नारा सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहना चाहिए।
कानून में बदलाव हो-लखावत:
राजस्थान के सुविख्यात कानूनविद और मशहूर एडवोकेट उमरदान लखावत ने माना कि शिकायतकर्ता के अभाव में अपराधी को सजा नहीं मिल सकती। धरियावद के प्रकरण में यदि पीडि़ताएं शिकायत दर्ज नहीं करा रही है तो इसका फायदा अपराधियों को मिलेगा, लेकिन उनका मानना है कि यह घिनौना कृत्य शरीर पर हमला नहीं, बल्कि आत्मा पर हमला है। जो महिलाएं धरियावद में गैंगरेप की शिकार हुई है, उनकी पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसे भारतीय कानून की मजबूरी ही कहा जाएगा कि घटना की पुष्टि होने के बाद भी अपराधी कानून के शिकंजे से बच रहे हैं। लखावत ने कहा कि विदेशों में ऐसे कई उदाहरण है जिनमें घटना विशेष को लेकर कानून से हटकर कार्यवाही की गई है। धरियावद का मामला भी ऐसा ही है जिसमें कानून से हटकर कार्यवाही किए जाने की जरूरत है। लखावत ने माना कि जब हमारे संविधान विशेषज्ञों ने अपराधों को लेकर कानून बनाए, तब प्रतापगढ़ के धरियावद के अपराध की कल्पना भी नहीं की होगी। लेकिन अब जब ऐसे अपराध सामने आ रहे हैं, तब कानून में बदलाव की जरूरत है। जहां तक धरियावद प्रकरण में पीडि़ताओं की मजबूरी का सवाल है तो पूरे समाज को इससे सबक लेना चाहिए। आखिर हम अपनी युवा पीढ़ी को संभाल क्यों नहीं पा रहे हैं? क्यों परिवारों के लड़के गिरोह बनाकर लूटपाट और रेप जैसी वारदात कर रहे हैं? समाज को ऐसे सवालों पर भी मंथन करना होगा। धरियावद के प्रकरण में भले ही पीडि़त महिलाएं शिकायत नहीं कर रही हों, लेकिन पुलिस के पर्याप्त सबूत हैं। इन सबूतों को देखते हुए ही कानून में बदलाव की जरूरत है।