कलराज मिश्र और अशोक गहलोत के बीच इतने मधुर संबंध होने के बाद भी राजभवन और सीएमओ में इतना झूठ-फरेब!

कलराज मिश्र और अशोक गहलोत के बीच इतने मधुर संबंध होने के बाद भी राजभवन और सीएमओ में इतना झूठ-फरेब!
कृषि भूमि की नीलामी बिल को लेकर राजस्थान में टकराव।
=========
राजस्थान के राजभवन का कहना है कि किसानों की कृषि भूमि की नीलामी पर रोक से संबंधित कोई भी बिल राजभवन में लंबित नहीं है, जबकि मुख्यमंत्री कार्यालय का दावा है कि ऐसा बिल पिछले दो वर्ष से राजभवन में लंबित पड़ा है। राजभवन और मुख्यमंत्री कार्यालय दोनों ही संविधान के संरक्षक है और दोनों की स्थिति कानून के पवित्र मंदिर की तरह है। एक मंदिर के पुजारी राज्यपाल कलराज मिश्र हैं तो दूसरे मंदिर के पुजारी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं। सब जानते हैं कि मिश्र और गहलोत के बीच बेहद मधुर संबंध हैं। मिश्र द्वारा लिखी पुस्तक का विमोचन अशोक गहलोत ही करते हैं तथा जब गहलोत अस्वस्थ्य होते हैं तो कलराज मिश्र उत्तर प्रदेश की यात्रा बीच में छोड़कर जयपुर आ जाते हैं। सार्वजनिक समारोह में दोनों को एक दूसरे की तारीफ करने से कोई गुरेज नहीं है। सीएम गहलोत जब चाहें तब राज्यपाल से मुलाकात कर लेते हैं। मुख्यमंत्री को सिर्फ राजभवन में आने की सूचना देनी होती है। सीएम गहलोत ने कहा कि कलराज मिश्र मुझ से ज्यादा शिष्टाचार निभाते हैं। मिश्र और गहलोत के बीच इतने मधुर संबंध होने के बाद भी राजभवन और सीएमओ के बीच झूठ और फरेब की खबरें आ रही है। दोनों संस्थाओं के अलग अलग कथनों से जाहिर है कि एक संस्थान झूठ बोल रहा है। सवाल यह भी है कि लंबित बिल के बारे में सीएम गहलोत ने आखिर अपने मित्र राज्यपाल मिश्र से दो वर्ष की अवधि में बात क्यों नहीं की? क्या सरकार की नजर में किसानों की भूमि की नीलामी का मामला कोई महत्व नहीं रखता? विधानसभा में बिल स्वीकृत करने के बाद भी अशोक गहलोत की सरकार के अधीन काम करने वाले एडीएम और एसडीएम स्तर के अधिकारियों ने कमर्शियल बैंकों को किसानों की भूमि नीलाम करने के आदेश जारी कर दिए। क्या गहलोत सरकार की जिम्मेदार सिर्फ बिल स्वीकृत करने की थी? सरकार जब विधानसभा में बिल स्वीकृत करवा सकती है, तब बिल की भावना के अनुरूप एसडीएम और एडीएम को निर्देश देकर नीलामी की अनुमति देने से रोका जा सकता था, लेकिन सरकार ने अपना दायित्व नहीं निभाया और अब अपनी गलती को राजभवन पर डाला जा रहा है। एक बार यह मान भी लिया जाए कि सरकार का बिल राजभवन में लंबित है तो क्या राज्यपाल को दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं में संशोधन का अधिकार है? सीएम गहलोत इस संवैधानिक प्रक्रिया को समझते हैं। आखिर गहलोत तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं। तीन बार केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं और तीन बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, सत्ता और राजनीति के सारे गुर जानते हैं, इसलिए जब राजस्थान में किसानों की भूमि की नीलामी के विरोध में आवाज उठने लगी तो बुराई का ठीकरा अपने मित्र कलराज मिश्र पर फोड़ दिया। इससे कलराज मिश्र को भी मित्रता का अर्थ समझ में आ जाना चाहिए। राजभवन और सीएमओ के बीच जो झूठ फरेब सामने आया है, उससे किसानों को भी सबक लेना चाहिए। तीन कृषि कानूनों की वापसी तो कांग्रेस ने साथ दिया, लेकिन कांग्रेस शासित राज्य में किसानों की भूमि की नीलामी को नहीं रोका जा रहा है। राजस्थान के प्रकरण में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत भी चुप है। ऐसी स्थिति यदि भाजपा शासित राज्य में होती तो राकेश टिकैत नेशनल हाइवे पर तंबू तान कर बैठ जाते।