आखिर पांच राज्यों के चुनाव प्रचार से दूर क्यों है राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत?

आखिर पांच राज्यों के चुनाव प्रचार से दूर क्यों है राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत?
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के समर्थन में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की उपस्थिति बहुत मायने रखती है।
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सब जानते हैं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कांग्रेस की राजनीति का थिंक टैंक माना जाता है। अशोक गहलोत कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार के भी मुख्य सलाहकार हैं। मौजूदा समय में देश में तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी अपने प्रदेश में चुनाव की बागडोर संभाले हुए हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सक्रिय हैं। लेकिन अकेले अशोक गहलोत ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनकी पांच राज्यों के चुनाव प्रचार में अभी तक भी कोई भूमिका नजर नहीं आई है। जबकि यूपी में पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होगा। 14 फरवरी को उत्तराखंड और गोवा में एक ही चरण में मतदान हो जाएगा। 20 फरवरी को पंजाब में मतदान हो जाएगा। उत्तर प्रदेश में 20 फरवरी तक मतदान के 3 चरण पूरे हो जाएंगे। जब अशोक गहलोत को कांग्रेस की राजनीति का थिंक टैंक माना जाता है, तब सवाल उठता है कि अशोक गहलोत पांच राज्यों के चुनाव प्रचार से दूर क्यों हैं? इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों में अशोक गहलोत सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं। कई मौकों पर गहलोत को दूसरे राज्यों में प्रचार के लिए ले जाया गया है। गहलोत उत्तर प्रदेश के भी प्रभारी रहे हैं। लेकिन मौजूदा समय में पांच राज्यों के चुनावों में गहलोत की कोई भूमिका नजर नहीं आ रही है। निकट भविष्य में भी गहलोत का पांच राज्यों में चुनाव प्रचार का कोई प्रोग्राम नहीं है। 6 और 7 फरवरी को सीएम गहलोत कांग्रेस और समर्थक विधायकों के साथ जयपुर की एक होटल में रहेंगे। 9 फरवरी से विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है। दो दिवसीय विधायकों के शिविर को चिंतन शिविर का नाम दिया गया है। लेकिन सब जानते हैं कि राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में गहलोत का एक छत्र राज है। गहलोत के नेतृत्व को चुनौती देने वाला अब कोई भी नहीं है। जो 13 निर्दलीय विधायक गहलोत समर्थन दे रहे हैं उनमें भी कोई नाराजगी नहीं है। भले ही एक भी निर्दलीय विधायक को अभी तक भी मंत्री अथवा किसी संस्था का अध्यक्ष न बनाया हो। असल में सीएम गहलोत को वो तौर तरीके आते हैं जिनमें विधायकों को खुश रखा जा सकता है। राजनीति के जानकार कुछ लोगों का कहना है कि विधायकों में एकजुटता बनाए रखने के लिए चिंतन शिविर का आयोजन किया गया है। लेकिन ऐसा पूरी तरह सही नहीं है। चिंतन शिविर से पहले कांग्रेस अथवा समर्थन देने वाले विधायकों ने किसी भी स्तर पर नाराजगी जाहिर नहीं की है। विधायकों पर गहलोत पूरी पकड़ है। दो दिन के चिंतन शिविर में सीएम गहलोत एक एक विधायक से संवाद कर सकते हैं। अधिकांश विधायक इस बात से ही खुश हो जाएंगे कि सीएम ने सीधे उनसे बात कर ली है। निर्दलीय विधायक भी जानते हैं कि सरकार के समर्थन की वजह से ही उनके निर्वाचन क्षेत्रों में विकास के काम हो रहे हैं। कांग्रेस के विधायक इसलिए खुश है कि थाना अधिकारी से लेकर डीएसपी और एसडीएम तक की नियुक्ति उन्हीं की सिफारिश पर हो रही है।
ममता की उपस्थिति:
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने भले ही अभी तक उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार न किया हो, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 8 फरवरी को समाजवादी पार्टी को अपना समर्थन देने के लिए लखनऊ आ रही हैं। तय कार्यक्रम के अनुसार ममता बनर्जी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव संयुक्त रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करेंगे। यूपी में ममता की उपस्थिति राजनीतिक दृष्टि से बहुत मायने रखती है। गत वर्ष पश्चिम बंगाल के चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन ममता बनर्जी को मिला। कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का बंगाल में पूरी तरह सफाया हो गया। असल में मुसलमानों के जो परंपरागत वोट कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी को मिलते रहे वे वोट ममता की पार्टी के उम्मीदवारों को मिले। हालांकि भाजपा को 75 सीटें मिली, लेकिन बंगाल में सरकार बनाने का सपना भाजपा का पूरा नहीं हो सका। ममता बनर्जी चाहती हैं कि जिस प्रकार बंगाल में मुसलमानों का समर्थन उनकी पार्टी को मिला, उसी प्रकार उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन समाजवादी पार्टी को मिले। हालांकि यूपी में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान पहले ही सपा के साथ हैं, लेकिन इस रुझान में कोई कमी न रहे, इसके लिए ममता बनर्जी उत्तर प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं। कांग्रेस की ओर से यूपी चुनाव की कमान राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के हाथों में है।