ACB Trap : तो राजस्थान में सिर्फ मेडिकल स्टोरों से होती है 100 करोड़ रुपए की वार्षिक वसूली, रिश्वत लेना मज़बूरी

तो राजस्थान में सिर्फ मेडिकल स्टोरों से होती है 100 करोड़ रुपए की वार्षिक वसूली।
50 हजार रिटेल और होलसेल मेडिकल स्टोरों का निरीक्षण का काम करते हैं 116 ड्रग इंस्पेक्टर।
जयपुर की ड्रग इंस्पेक्टर सिंधु कुमारी को 5 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ने के लिए एएसपी बजरंग सिंह शेखावत को

शाबाशी मिलनी चाहिए।
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भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बजरंग सिंह शेखावत ने जयपुर की ड्रग इंस्पेक्टर सिंधु कुमारी को 5 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में फैले भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया है। इसके लिए एएसपी शेखावत को शाबाशी मिलनी चाहिए।
एसीबी की अब तक की जांच पड़ताल में सामने आया है कि मेडिकल स्टोर के निरीक्षण के नाम पर स्टोर मालिकों से ड्रग इंस्पेक्टर रिश्वत वसूलते हैं। सरकार के नियमों में ऐसी पेचीदगियां हैं, जिनके कारण स्टोर मालिकों को रिश्वत देनी ही पड़ती है। स्टोर पर दवाइयां देने वाले युवक भी फार्मासिस्ट होने चाहिए। लेकिन आमतौर पर देखा गया है कि अधिकांश मेडिकल स्टोर पर दवाइयां देने वाले युवक गैर फार्मासिस्ट होते हैं। यदि कोई युवक फार्मासिस्ट है तो वह स्वयं का मेडिकल स्टोर खेलेगा, लेकिन यदि किसी मजबूरी में अपना स्टोर नहीं खोल पाता है तो वह किसी स्टोर पर काम करने के कम से कम 30 हजार रुपए का मासिक वेतन लेगा।
ऐसे में मेडिकल स्टोर का मालिक अधिकतम 8 हजार रुपए मासिक पर गैर फार्मासिस्ट को नौकरी पर रखते हैं। अनिवार्य रूप से डॉक्टर की पर्ची पर जो दवाइयां बेची जाती है, उनका ब्यौरा अलग से रखना होता है। सरकार के सख्त कायदे कानूनों के अंतर्गत कोई रिटेल या होलसेल का मेडिकल चलाना मुश्किल है। इसलिए स्टोर मालिक प्रतिवर्ष एक मोटी राशि ड्रग इंस्पेक्टर को देते हैं, ताकि कोई परेशानी नहीं हो। 4 मार्च को जब जयपुर के एक मेडिकल स्टोर के मालिक से ड्रग इंस्पेक्टर सिंध कुमारी रिश्वत की दूसरी किस्त के तौर पर 5 हजार रुपए की रिश्वत ले रही थी, तभी एसीबी ने रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया।
सिंधु कुमारी का कहना रहा कि रिश्वत लेना उनकी मजबूरी है।
रिश्वत की राशि विभाग में ऊपर तक पहुंचाई जाती है। यदि बड़े अफसरों को रिश्वत न दी जाए तो तबादला कर देते हैं। सिंधु कुमारी के इस बयान से राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में फैले भ्रष्टाचार की पोल खुल गई है। स्वाभाविक है कि बड़े अफसरों को सरकार में बैठे प्रभावशाली व्यक्तियों तक राशि पहुंचानी पड़ती है। राजस्थान में रिटेल मेडिकल स्टोरों की संख्या 25 हजार है। इसी प्रकार होलसेल स्टोर भी करीब 25 हजार ही है। होलसेल स्टोर के निरीक्षण की रिश्वत करीब 20 हजार रुपए बताई जाती है। यानी होलसेल स्टोर के मालिकों से 50 करोड़ रुपए की वसूली होती है। इसी प्रकार 25 हजार रिटेल मेडिकल स्टोरों से 10 हजार के हिसाब से 25 करोड़ रुपए वसूले जाते हैं। दोनों राशि करीब 75 करोड़ रुपए होती है। इसके अतिरिक्त होली, दीवाली एवं अन्य अवसरों पर अलग से गिफ्ट आदि लिया जाता है। यह राशि करीब 25 करोड़ रुपए की मानी जा रही है। यानी मेडिकल स्टोर के निरीक्षण के नाम पर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में 100 करोड़ रुपए वसूले जा रहे हैं। प्रदेश में पात्र 116 ड्रग इंस्पेक्टर हैं।

इससे इन ड्रग इंस्पेक्टरों की आय का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह वसूली तो सिर्फ साधारण निरीक्षण की है। मेडिकल स्टोर संचालकों से अन्य तरीकों से भी राशि वसूली जाती है। इसमें बड़ा खेल नशीली दवाओं की बिक्री से जुड़ा है। नशीली दवाएं सस्ती खरीद कर बहुत ऊंची कीमत पर बेची जाती है। लाइसेंस के अनुरूप नशीली दवा बेचने वाले मेडिकल स्टोरों और ड्रग इंस्पेक्टरों का चोली दामन का साथ होता है। जब कोई मेडिकल स्टोर का मालिक रोज रोज की वसूली से तंग आ जाता है, तभी एसीबी के पास पहुंचता है। अधिकांश मेडिकल स्टोर के मालिक चुपचाप भुगतान करते रहते हैं।