Rajasthan : गहलोत की राजनीतिक नियुक्तियों की गाजर से दिग्गज हुए दूर

Rajasthan : गहलोत की राजनीतिक नियुक्तियों की गाजर से

दिग्गज हुए दूर, अन्दरखाने की नाराजगी भारी पड़ेगी कांग्रेस

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राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार की ओर से 3 साल के लंबे इंतजार के बाद अब राजनीतिक नियुक्तियों का तोहफा खोला गया और 50 से ज्यादा नेताओं और कार्यकर्ताओं को बोर्ड-निगम और आयोगों में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। खास बात यह कि पहली बार 15 विधायकों को भी बोर्ड निगमों और आयोगों में एडजस्ट किया गया है।इसके बावजूद प्रदेश कांग्रेस में दो दर्जन से ज्यादा दिग्गज नेता ऐसे हैं जिन्हें राजनीतिक नियुक्तियों से दूर रखा गया है।

इनमें कई नेता तो ऐसे हैं जो काफी प्रभावशाली और जनाधार वाले माने जाते हैं और पार्टी में मंत्री विधायक और सांसद तक रह चुके हैं। बड़े चेहरों की राजनीतिक नियुक्तियों में अनदेखी को लेकर सियासी गलियारों में भी चर्चाएं खूब हैं। आपको बता दें, कि जिन प्रमुख नेताओं की राजनीतिक नियुक्तियों में अनदेखी को लेकर चर्चाएं तेज हैं उनमें गिरजा व्यास, बीना काक, दुर्रू मियां, अश्क अली टांक, राजेंद्र चौधरी और सुभाष महरिया जैसे बड़े नाम शामिल है।

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गिरिजा व्यास जहां प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष और केंद्र में दो बार केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं तो वहीं बीना काक भी कई बार विधायक और मंत्री रह चुकी हैं। दुर्रू मियां और अश्क अली टांक राज्यसभा सांसद और प्रदेश में मंत्री रह चुके हैं। सुभाष महरिया भी सांसद और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। राजेंद्र चौधरी भी गहलोत सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रह चुके हैं इसके अलावा शंकर पन्नू बीकानेर से सांसद रह चुके हैं। ऐसे में इन बड़े चेहरों की अनदेखी की चर्चाएं जोरों पर हैं। इसके अलावा जिन बड़े चेहरों की राजनीतिक नियुक्तियों में अनदेखी की गई उनमें विजयलक्ष्मी विश्नोई, कृष्ण मुरारी गंगावत, शिवचरण माली, अजीत सिंह शेखावत, के. के. हरितवाल, राजकुमार जयपाल, रामचंद्र सराधना, सुरेश चौधरी, सत्येंद्र भारद्वाज, नसीम अख्तर इंसाफ, गोपाल केशावत और गोपाल बाहेती का नाम भी शामिल है।

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वहीं राजनीतिक नियुक्तियों में बोर्ड-निगम के चेयरमैन नहीं बनाए जाने से इन नेताओं में अंदर खाने नाराजगी बढ़ती जा रही है। इस मामले को लेकर प्रदेश प्रभारी अजय माकन और कांग्रेस आलाकमान तक भी बात पहुंचाई गई है। लेकिन माना जा रहा है कि आने वाली तीसरी सूची में भी इन इन नेताओं का नंबर आने की संभावना भी कम ही है। चूंकि प्रमुख बोर्ड-निगम और आयोगों में नियुक्तियां हो चुकी हैं अब जो निगम- बोर्ड बचे हैं वो इनके कद के लायक नहीं है। ऐसे में इन नेताओं को राजनीतिक नियुक्तियों से इस बार खाली ही रहना पड़ सकता है।