Rajasthan : भगवान राम के जन्मदिन पर हिंसा उचित नहीं। राम राज तो भाई चारे का संदेश ही देता है।

Rajasthan : भगवान राम के जन्मदिन पर हिंसा उचित नहीं। राम राज तो भाई चारे का संदेश ही देता है।

जेएनयू में रामनवमी की पूजा पर विवाद।
मुसलमानों द्वारा रामनवमी के जुलूस पर फूल बरसाने वाला फोटो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पोस्ट किया।
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गत 2 अप्रैल को करौली ङ्क्षहसा के मामले में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चाहे जैसे बयान दिए हों, लेकिन 10 अप्रैल को गहलोत ने सोशल मीडिया पर एक फोटो पोस्ट किया है, जिसमें कुछ मुसलमान रामनवमी के जुलूस पर फूल बरसा रहे हैं। इस जुलूस में भगवा झंडे भी लहरा रहे हैं। गहलोत ने लिखा है कि यही हमारी संस्कृति एवं तहजीब का प्रतीक है। यह सुखद बात है कि राजस्थान में रामनवमी पर किसी भी स्थान से अप्रिय समाचार नहीं मिले, लेकिन गुजरात, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल के कुछ स्थानों के साथ दिल्ली के जेएनयू में हिंसा, मारपीट आदि खबरें सामने आई हैं। रामनवमी का मतलब है भगवान राम का जन्मदिन। श्रीराम का चरित्र बताता है कि वे हमेशा मर्यादा में रहे। उन्होंने कभी भी सामाजिक, धार्मिक और परिवार की मर्यादा को भंग नहीं किया। इसीलिए रामराज्य की कल्पना की गई। रामराज का मतलब ही भाईचारा है। ऐसे भगवान राम के जन्मदिन पर हिंसा हो तो उचित नहीं है। रामराज होगा तो सभी लोग सम्मान के साथ रह सकेंगे। लेकिन यदि रामराज नहीं होगा तो देश में अनेक विसंगतियां होंगी। आज हम अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका आदि के हालात देख रहे हैं, जहां आम नागरिक सुरक्षित नहीं है। भगवान राम का तो सभी को सम्मान करना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ऐसे शासन का उदाहरण पेश किया जिसमें सभी वर्गों के लाग सम्मान के साथ रह सके। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फूल बरसाने वाला जो फोटो पोस्ट किया है, वह दर्शाता है कि मुस्लिम समुदाय भी भगवान राम का सम्मान करता है। ऐसे में सवाल उठता है कि वे कौन से तत्व है जो रामनवमी के जुलूस पर पत्थर बरसाते हैं। ऐसे तत्वों से सभी को सावधान रहने की जरूरत है। रामनवमी पर जुलूस हिंदुस्तान में नहीं निकलेगा तो क्या पाकिस्तान में निकाला जाएगा? पाकिस्तान में हिंदुओं की दुर्दशा भारत के मुसलमानों से छिपी नहीं है। जो थोड़े बहुत हिन्दू बचे हैं, वे भी पाकिस्तान छोड़ना चाहते हैं। पाकिस्तान के मुस्लिम कट्टरपंथी हिंदुओं को कोई धार्मिक गतिविधियां करने ही नहीं देते हैं। जबकि भारत में सभी लोगों को अपने धर्म के अनुरूप रहने की स्वतंत्रता है। यह स्वतंत्रता भगवान राम के जमाने से चली आ रही है। जो तत्व रामनवमी के जुलूस पर पत्थर बरसाते हैं, उन्हें एक बार पड़ोसी देशों के हालात देख लेने चाहिए।
जेएनयू में विवाद:
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी का विवादों से हमेशा नता रहा है। यहां अफजल गुरु की बरसी भी बनाई जाती है तो देश विरोधी नारे भी लगते हैं। सरकार की सब्सिडी से चलने वाली इस यूनिवर्सिटी के हाल किसी से छिपे नहीं है। 10 अप्रैल को भी जब कुछ छात्र-छात्राएं रामनवमी पर हवन पूजा कर रहे थे, तभी वामपंथी विचारधारा के विद्यार्थियों ने विरोध किया। यह विरोध मारपीट तक पहुंच गया। पूजा हवन करने वाले अनेक छात्राओं का कहना है कि वामपंथी विद्यार्थियों ने हवन के दौरान ही भद्दी गालियां भी दी। वहीं वामपंथी विचारधारा के विद्यार्थियों का कहना था कि 10 अप्रैल को रविवार था। प्रत्येक रविवार को यूनिवर्सिटी के मैस में नॉनवेज (मांसाहार) भी बनता है। विद्यार्थियों को मांसाहार का इंतजार रहता है, लेकिन विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र-छात्राएं चाहते थे कि रामनवमी पर यूनिवर्सिटी में नॉनवेज न खाया जाए। इसके लिए मेस इंचार्ज को भी पाबंद किया गया। 10 अप्रैल को मांसाहार भोजन ही विवाद का कारण बना है। जेएनयू के माहौल में वामपंथी विद्यार्थियों से एक रविवार को मांसाहार नहीं खाने की उम्मीद करना बेमानी है। यदि कुछ छात्रों को मांसाहार खाने से रोका गया तो विवाद तो होगा ही। रामराज में भले ही सभी को सम्मान किया जाता हो,लेकिन रामनवमी पर किसी को मांस खाने से नहीं रोका जा सकता।