Rajasthan : राजस्थान फिर होगा कांग्रेस के नए इतिहास का साक्षी।

Rajasthan : राजस्थान फिर होगा कांग्रेस के नए इतिहास का साक्षी।

पांच राज्यों में हार की वजह तलाशने और भविष्य की रणनीति को लेकर कांग्रेस पार्टी अगले माह मई में एक चिंतन शिविर का आयोजन करेगी। ये चिंतन शिविर कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान के उदयपुर में हो सकता है। मई मध्य में संभावित, पांच राज्यों की हार के बाद तीन दिन तक चलने वाले इस शिविर में नेताओं व कार्यकर्ताओं से हार के कारण जानने की कोशिश की जाएगी।

साथ ही कांग्रेस गुजरात, हिमाचल प्रदेश के साथ ही अगले वर्ष होने वाले कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर रणनीति बनाएगी। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले के लिए गठबंधन की नई सियासत शुरू करने पर भी चर्चा हो सकेगी। इस शिविर में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता व महासचिव भाग लेंगे। हालांकि इस शिविर पर अंतिम फैसला कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में लिया जाएगा।

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उम्मीद ये लगाई जा रही है कि कांग्रेस पार्टी के इस चिंतन शिविर में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी मौजूद रह सकते हैं। हालांकि उनके कांग्रेस में शामिल होने को लेकर अब तक तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। पार्टी के कुछ नेता अन्य राजनीतिक दलों से उनके करीबी संबंध होने के चलते इसका विरोध कर रहे हैं।

वहीं पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, तारीख और जगह तय होने के बाद भी कम से कम से 15 से 20 दिनों का समय चिंतन शिविर की तैयारियों के लिए लगेगा। उम्मीद है कि मई के मध्य में शिविर आयोजित होगा। इससे पहले महासचिवों की एक तैयारी बैठक भी बुलाई जाएगी।

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दरसअल, पिछले दिनों कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में फैसला लिया गया था कि संसद सत्र समाप्त होते ही पार्टी चिंतन शिविर आयोजित कर पूरे देश के नेताओं को बुलाकर उनके सुझाव, हार के कारणों की समीक्षा, शिकायतों और आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर रणनीति तय करेगी।

खासबात ये है कि 9 साल पहले कांग्रेस का चिंतन शिविर राजस्थान में आयोजित किया गया था। इसी तरह का चिंतन शिविर साल 2013 में जयपुर हुआ था। उस समय शिविर में 2014 के लोकसभा चुनाव में जाने की तैयारियों और रणनीति को लेकर चर्चा की गई थी। तब राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष भी बनाया गया था। संयोग है कि तब भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही थे।