अन्नदाता की बात सुनें और कृषि कानूनों पर पुनर्विचार करें – मुख्यमंत्री

DESCRIPTION

 

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
अन्नदाता की बात सुनें और कृषि कानूनों पर पुनर्विचार करें – मुख्यमंत्री
जयपुर, 29 नवम्बर। मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार द्वारा बनाये गये तीनों नये कृषि कानूनों, राजस्थान सरकार द्वारा उनमें किये गये संशोधनों और किसान आंदोलन को लेकर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।
श्री गहलोत ने लिखा है कि केंद्र सरकार द्वारा इन तीनों बिलों को किसानों और विशेषज्ञों से चर्चा किये बिना ही लाया गया। संसद में विपक्षी पार्टियों द्वारा इन बिलों को सिलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग को भी सरकार ने नजरअंदाज किया। इन अधिनियमों में न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नहीं है, जिसके कारण किसानों में अविश्वास पैदा हुआ है। इन कानूनों के लागू होने से किसान सिर्फ प्राइवेट प्लेयर्स पर निर्भर हो जायेगा। साथ ही, प्राइवेट मंडियों के बनने से दीर्घ काल से चली आ रहीं कृषि मंडियों का अस्तित्व भी खत्म हो जायेगा। इसके कारण किसानों को अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिलेगा।
मुख्यमंत्री ने राजस्थान सरकार द्वारा तीनों नये कृषि कानूनों और सिविल प्रक्रिया संहिता में किये गये संशोधनों के बारे में भी लिखा है। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि राज्य सरकार ने इन संशोधनों में किसानों के हित को सर्वोपरि रखा है और कृषि विपणन व्यवस्था को मजबूत बनाने का काम किया है। राजस्थान ने संविदा खेती (कॉन्ट्रैक्ट फामिर्ंग) में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रावधान किया है। किसी विवाद की स्थिति में पूर्ववत मंडी समितियों और सिविल न्यायालयों के पास सुनवाई का अधिकार होगा, जो किसानों के लिये सुविधाजनक है। मंडी प्रांगणों के बाहर होने वाली खरीद में भी व्यापारियों से मंडी शुल्क लिया जायेगा। संविदा खेती की शतोर्ं का उल्लंघन या किसानों को प्रताड़ित करने पर व्यापारियों और कंपनियों पर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना और सात साल तक की कैद का प्रावधान किया गया है। केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के अतिरिक्त दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 में संशोधन किया गया है, जिससे 5 एकड़ तक की भूमि वाले किसानों को कर्ज ना चुका पाने पर कुर्की से मुक्त रखा गया है।
श्री गहलोत ने अपने पत्र में किसान आंदोलन पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का ध्यान आकृष्ट किया है। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि 26 नवंबर को देश जब संविधान दिवस मना रहा था तभी देश के अन्नदाता पर लाठियां और वॉटर कैनन चलाई जा रही थीं। किसान अपनी मांगें रखने दिल्ली ना पहुंच सकें इसके लिये सड़कों को खोदा गया और अवरोधक भी लगाये गये। केंद्र सरकार ने किसानों के विरोध प्रदर्शन के हक को छीनने की कोशिश की जो न्यायोचित नहीं है। किसानों ने अपने खून पसीने से देश की धरती को सींचा है। केंद्र सरकार को उनकी मांगें सुनकर तुरंत समाधान करना चाहिये।
मुख्यमंत्री ने लिखा है कि वित्त वर्ष 2020-21 में जब जीडीपी विकास दर -7.5 प्रतिशत रही है तब भी कृषि क्षेत्र में 3.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस मुश्किल दौर में भी अर्थव्यवस्था में सकारात्मक योगदान दे रहे अन्नदाता को इस तरह का प्रतिफल नहीं देना चाहिये। मुख्यमंत्री ने मांग की है कि किसानों के हित और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिये प्रधानमंत्री श्री मोदी इन कानूनों पर पुनर्विचार करें।